काव्य रूप में पढ़ें श्रीरामचरितमानस: भाग-10
विभिन्न हिन्दू धर्मग्रंथों में कहा गया है कि श्रीराम का जन्म नवरात्र के अवसर पर नवदुर्गा के पाठ के समापन के पश्चात् हुआ था और उनके शरीर में मां दुर्गा की नवीं शक्ति जागृत थी। मान्यता है कि त्रेता युग में इसी दिन अयोध्या के महाराजा दशरथ की पटरानी महारानी कौशल्या ने मर्यादा पुरूषोत्तम श्रीराम को जन्म दिया था।
नर-नारी व्याकुल हुए, लगा तीव्र आघात
तभी जनकजी ने कही, ऐसी कड़वी बात।
ऐसी कड़वी बात, नहीं अब शान दिखाओ
खाली हुई धरा वीरों से, सब घर जाओ।
कह ‘प्रशांत’ यह देख लखन गुस्से में बोले
सुन उनकी फुंकार, सभी के आसन डोले।।101।।
-
जनकराज कैसे कही, बातें बिना विचार
रघुकुलभूषण हों जहां, ये सब है बेकार।
ये सब है बेकार, आज्ञा उनकी पाऊं
शिव धनु के ही साथ अखिल ब्रह्मांड हिलाऊं।
कह ‘प्रशांत’ श्रीरामचंद्र ने शांत कराया
और प्रेम से उनको अपने पास बिठाया।।102।।
-
तभी रामजी को दिया, गुरुवर ने आदेश
वह शुभ वेला आ गयी, मेटो सभी कलेश।
मेटो सभी कलेश, धनुष को तोड़ दिखाओ
और जनक राजा के सब संताप मिटाओ।
कह ‘प्रशांत’ राघव ने गुरु को शीश नवाया
चले धनुष की ओर, सभी का मन हर्षाया।।103।।
-
सीता थी शंकित बड़ी, कैसे होगा काम
शिव का धनुष कठोर है, छोटे हैं श्रीराम।
छोटे हैं श्रीराम, देवता सभी मनाए
करो कृपा कुछ ऐसी ये हल्का हो जाए।
कह ‘प्रशांत’ राघव ने दुख सीता का जाना
और धनुष को देख भेद उसका पहचाना।।104।।
-
परिक्रमा कर धनुष की, झुका उसे निज माथ
मात-पिता-गुरु यादकर, उसे लगाया हाथ।
उसे लगाया हाथ, उठाया तोड़ा ऐसे
देखा नहीं किसी ने चमत्कार हो जैसे।
कह ‘प्रशांत’ दो टुकड़े कर धरती पर छोड़ा
शोर मचा सब ओर, राम ने शिव-धनु तोड़ा।।105।।
-
आसमान गुंजित हुआ, बजे नगाड़े घोर
मंगल ध्वनि होने लगी, नाचे मन के मोर।
नाचे मन के मोर, देवता देवी-किन्नर
बरसाते थे फूल सभी राघव के ऊपर।
कह ‘प्रशांत’ क्या बोले सीता, बस हर्षाई
जनक-सुनयना की आंखें बरबस भर आईं।।106।।
-
उठी जानकी ले चली, हाथों में जयमाल
सखियां मंगल गा रहीं, मंद-मंद थी चाल।
मंद-मंद थी चाल, नहीं उत्साह समाता
था शरीर रोमांचित, पर कुछ कहा न जाता।
कह ‘प्रशांत’ फिर हाथ उठा माला पहनायी
पुलकित हुए लोग सब, गाने लगे बधाई।। 107।।
-
परशुराम पहुंचे तभी, ज्यों आया भूचाल
धनुष भंग का सुन चुके, थे वे सारा हाल।
थे वे सारा हाल, हाथ में उनके फरसा
सभी लोग डर गये, देखकर उनका गुस्सा।
कह ‘प्रशांत’ फिर जनकराज सिय सहित पधारे
कर प्रणाम दोनों ने उनके चरण पखारे।।108।।
-
आये विश्वामित्र फिर, राम-लखन के साथ
दोनों ने उनके धरा, चरणों पर निज माथ।
चरणों पर निज माथ, सुनो श्री परशूरामा
दशरथ की संतान, नाम है लक्ष्मण-रामा।
कह ‘प्रशांत’ आशीष दिया तज करके गुस्सा
लेकिन अगले ही क्षण लगे हिलाने फरसा।।109।।
-
किसने तोड़ा है धनुष, मुझे बताओ आज
नष्ट करूंगा मैं अभी, वरना तेरा राज।
वरना तेरा राज, जनक जल्दी बतलाओ
या भोगो परिणाम, परशु के नीचे आओ।
कह ‘प्रशांत’ भयकंपित हुए जनक बेचारे
आगे आये राम और ये वचन उचारे।।110।।
- विजय कुमार
अन्य न्यूज़