काव्य रूप में पढ़ें श्रीरामचरितमानस: भाग-30
श्रीराम चरित मानस में उल्लेखित अरण्य कांड से संबंधित कथाओं का बड़ा ही सुंदर वर्णन लेखक ने अपने छंदों के माध्यम से किया है। इस श्रृंखला में आपको हर सप्ताह भक्ति रस से सराबोर छंद पढ़ने को मिलेंगे। उम्मीद है यह काव्यात्मक अंदाज पाठकों को पसंद आएगा।
सीताजी व्याकुल हुईं, सुनकर यह आवाज
बोली मेरे रामजी, संकट में हैं आज।
संकट में हैं आज, लखन तुम जल्दी जाओ
जैसे भी हो प्राणनाथ के प्राण बचाओ।
कह ‘प्रशांत’ लक्ष्मण बोला हे सीता माई
चिंतित ना हों आप, सुरक्षित हैं रघुराई।।41।।
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जिनके भ्रुकुटि विलास से, संचालित है सृष्टि
किसकी हिम्मत जो करे, उन पर टेढ़ी दृष्टि।
उन पर टेढ़ी दृष्टि, मगर सीता अकुलाई
जाने-अनजाने कुछ कड़वी बात सुनाई।
कह ‘प्रशांत’ सुनकर लक्ष्मण ने धनुष उठाया
और ढूंढने चले कहां पर हैं रघुराया।।42।।
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देखा राक्षसराज ने, सूना है घर-बार
संन्यासी के वेश में, पहुंचा उनके द्वार।
पहुंचा उनके द्वार, घुसा अंदर तक आया
सीता ने यह देख बहुत गुस्सा दिखलाया।
कह ‘प्रशांत’ हे दुष्ट खड़ा हो बाहर जाकर
कुछ क्षण में आने वाले हैं मेरे रघुवर।।43।।
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इतना धीरज था किसे, था वह भी लंकेश
झपटा-पकड़ा हाथ फिर, भागा अपने देश।
भागा अपने देश, रूप असली दिखलाया
और जानकी को अपने रथ पर बैठाया।
कह ‘प्रशांत’ था रावण आगे बढ़ता जाता
करो राम हे रक्षा, रोती सीता माता।।44।।
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गगनमार्ग से जा रहा, था लंका की ओर
उसके मन में था बसा, जैसे कोई चोर।
जैसे कोई चोर, जटायू ने ललकारा
रावण का रथ रोक, धरा पर उसे उतारा।
कह ‘प्रशांत’ श्री रामचंद्र से बैर न ठानो
सीता को दो छोड़, बात मेरी तुम मानो।।45।।
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लेकिन रावण दुष्ट ने, नहीं सुनी यह बात
गीधराज ने चोंच से, किये कई आघात।
किये कई आघात, धरा पर उसे गिराया
था बूढ़ा पर जोश जवानों जैसा पाया।
कह ‘प्रशांत’ रावण ने बड़ी कटार निकाली
काटे उसके पंख, देह घायल कर डाली।।46।।
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सीता को लेकर चला, पुनः दुष्ट लंकेश
कैसे पहुंचे राम तक, मेरा यह संदेश।
मेरा यह संदेश, जानकी चिंतित भारी
सारे रस्ते करती रही विलाप बिचारी।
कह ‘प्रशांत’ नीचे पर्वत पर देखे वानर
रामनाम लेकर कुछ कपड़े फेंके उन पर।।47।।
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देखा जब श्रीराम ने, लखनलाल को आत
बोले सीता छोड़कर, क्यों आये हो तात।
क्यों आये हो तात, लखन ने बात बताई
व्याकुल होकर वापस दौड़े दोनों भाई।
कह ‘प्रशांत’ कुटिया देखी जानकी विहीना
हुए राम मानुष की भांति आकुल-दीना।।48।।
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आश्रम अपना छोड़कर, निकले दोनों भ्रात
राम सभी से पूछते, थे सीता की बात।
थे सीता की बात, पेड़-पौधो बतलाओ
वन पर्वत तालाब-नदी, मत चुप रह जाओ।
कह ‘प्रशांत’ थी खोजबीन ऐसे ही जारी
मिला जटायु रस्ते में था घायल भारी।49।।
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देखा उसने राम को, लौटे मानो प्राण
बोला रावण ले गया, सीता को श्रीमान।
सीता को श्रीमान, गया है दक्षिण दिश को
उधर ढूंढिये जाकर अपनी प्राण प्रिया को।
कह ‘प्रशांत’ फिर देखा उनको आंखें भरकर
छोड़े अपने प्राण, टिकाया सिर धरती पर।।50।।
- विजय कुमार
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