अपने चमत्कारों के लिए भी जाने जाते हैं साईंबाबा

शुभा दुबे । Feb 8 2017 12:15PM

गुरु पूर्णिमा के दिन साईं बाबा की पूजा का विशेष महत्व है। इस दिन श्रद्धालु दूर−दूर से आते हैं और बाबा के दर्शन कर फल प्राप्त करते हैं। महाराष्ट्र का पंढरपुर शिरडी अब तीर्थ स्थान बन चुका है।

अपने भक्तों के हर दुख दर्द को दूर करने के लिए विख्यात हैं शिरडी के साईं बाबा। साईं बाबा ने अपना पूरा जीवन मानव कल्याण को समर्पित किया और एक ईश्वर की अवधारणा का लोगों को संदेश दिया। उनके मंदिरों में सभी धर्मों और जातियों के श्रद्धालु आते हैं और साईं बाबा आशीर्वाद देकर सभी भक्तों की मनोकामना पूर्ण करते हैं। साईं बाबा की प्रसिद्धि देश में ही नहीं अपितु विदेशों में भी है। 

माना जाता है कि सन् 1854 में साईं बाबा शिरडी आए थे। वह दिव्य शक्ति के महात्मा थे। जब साईं बाबा शिरडी आए, उस समय वह एक छोटा सा गांव था। बाद में बाबा के चमत्कार से शिरडी की ख्याति दूर−दूर तक फैलती गई जिससे इस क्षेत्र का विकास होता चला गया। साईं बाबा शिरडी में एक पुरानी मस्जिद में रहा करते थे। उनके भक्तों को उनसे मिलने यहीं आना पड़ता था। साईं बाबा ने इस मस्जिद का नाम द्वारका भाई रखा था। शिरडी में कई नई इमारतें बनने के बावजूद साईं बाबा द्वारका भाई में ही रहना पसंद करते थे।

साईं बाबा ने शिरडी में आने के बाद अपनी योग शक्ति से एक अग्नि जलाई थी जिसे धुनी कहा जाता है। इस धुनी में दिन−रात आग जलती रहती है। इस धुनी की राख को उदी कहा जाता है। साईं बाबा भक्तों को उदी दिया करते थे, इसी उदी से भक्तों के रोग दूर होते थे और उनके कष्टों का निवारण होता था। आज भी साईं बाबा के मंदिरों में भक्तों को यह उदी दी जाती है। साईं बाबा अंतर्यामी भी थे उन्हें अपने भक्तों पर आने वाले संकट का आभास हो जाया करता था। कई बार तो साईं बाबा अपने भक्तों के कष्ट स्वयं अपने ऊपर ले लिया करते थे।

साईं बाबा स्वयं को ईश्वर का बंदा और उसका सेवक कहा करते थे। साईं बाबा के चमत्कारों में से एक घटना के अनुसार, एक लोहार साईं बाबा का भक्त था। एक दिन शिरडी में धधकती धुनी की आग में साईं बाबा ने हाथ डाला और ऐसा लगा जैसे उन्होंने उसमें से कुछ निकाला हो। हाथ बाहर निकालने के बाद बाबा बोले कि यदि मैं जरा भी देर करता तो बच्ची जल जाती। इस घटना के कुछ दिन बाद शिरडी में यह जानकारी मिली कि लोहार की बेटी सच में उस वक्त आग में गिर गई थी लेकिन उसे निकाल लिया गया। उस लड़की को तो खरोंच नहीं आई लेकिन उसको बचाते हुए बाबा का हाथ जल गया था।

साईं बाबा शिरडी के सभी मंदिरों में रोज दिये जलाया करते थे। दिये जलाने के लिए तेल वह तेली और बनिए से मांग कर लाया करते थे। तेली और बनिए ने कुछ दिनों तक तो तेल दिया लेकिन बाद में वह कतराने लगे और आखिरकार एक दिन दोनों ने साईं बाबा को तेल देने से इंकार कर दिया इस पर साईं बाबा बिना कुछ कहे द्वारका भाई लौट आए। जिस टिन के डिब्बे में साईं बाबा तेल लाया करते थे उसमें साईं बाबा ने थोड़ा पानी डाला और वह पानी पी गए। उसके बाद बाबा ने वह डिब्बा फिर से पानी से भर दिया और फिर डिब्बे में से पानी निकालकर दीयों में डाल दिया और दीयों को जला दिया। लोगों ने देखा कि जिस तरह तेल में दिये जलते थे उसी तरह से पानी में भी जल रहे हैं, यह देखकर सब हतप्रभ हो गए।

गुरु पूर्णिमा के दिन साईं बाबा की पूजा का विशेष महत्व है। इस दिन श्रद्धालु दूर−दूर से आते हैं और बाबा के दर्शन कर फल प्राप्त करते हैं। महाराष्ट्र का पंढरपुर शिरडी अब तीर्थ स्थान बन चुका है। रोज यहां भक्तजनों का तांता लगा रहता है। लंबी कतारों में भक्तजन आठ−दस घंटे खड़े रहकर भी साईं बाबा के दर्शन करते हैं। कहा जाता है कि सन् 1918 में दशहरे के दिन साईं बाबा ने शिरडी में ही समाधि ली थी। साईं बाबा ने अपने भक्तों को अपने पिछले के कई जन्मों के बारे में भी बताया था साथ ही साईं बाबा ने कहा था कि मैं सिर्फ यह शरीर छोड़कर जा रहा हूं लेकिन जब भी कोई मुझे सच्चे मन से बुलाएगा, मैं भागा चला आऊंगा।

शुभा दुबे

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