‘पद्मावती’ का विरोध कर रहे लोगों को इतिहास की समझ ही नहीं

People opposing padmavati have no understanding of history kamal sawrup filmmaker

‘पद्मावती’ को लेकर जारी विवाद के बीच प्रतिष्ठित फिल्मकार कमल स्वरूप ने कहा कि फिल्म को लेकर हो रहे विरोध प्रदर्शन दुखद हैं और प्रदर्शन कर रहे लोगों को असल में इतिहास की समझ ही नहीं है।

पणजी। ‘पद्मावती’ को लेकर जारी विवाद के बीच प्रतिष्ठित फिल्मकार कमल स्वरूप ने कहा कि फिल्म को लेकर हो रहे विरोध प्रदर्शन दुखद हैं और प्रदर्शन कर रहे लोगों को असल में इतिहास की समझ ही नहीं है। उन्होंने कहा कि कलाकारों एवं रचनात्मक लोगों के संरक्षण के लिए सरकारी नीतियां एवं कानून बने हुए हैं लेकिन इससे बेपरवाह लोग तब भी उन्हें अपना शिकार बनाते हैं क्योंकि उन्हें “एक तरह का संरक्षण” मिला हुआ है। गत 21 नवंबर को स्वरूप की डॉक्यूमेंट्री ‘पुष्कर पुराण’ की स्क्रीनिंग के साथ गोवा में 48वें भारतीय अंतरराष्ट्रीय फिल्म महोत्सव (आईएफएफआई) के भारतीय पैनोरमा खंड की शुरूआत हुई थी।

पणजी में 20 से 28 नवंबर के बीच महोत्सव का आयोजन हो रहा है। फिल्मकार ने भाषा से खास बातचीत में कहा, ‘‘यह दुखद है.. जो भी फिल्म (पद्मावती) के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे हैं, असल में इतिहास को लेकर उनमें समझ ही नहीं है। वे जाहिल हैं। वे केवल अपना महत्व दिखाने के लिए और खबरों में आने के लिए विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं और फिल्म से जुड़े लोगों को धमकियां दे रहे हैं। 1988 में बनी युगांतकारी फिल्म ‘ओम दर बदर’ के लिए पहचाने जाने वाले स्वरूप ने मलयाली फिल्म ‘एस दुर्गा’ और मराठी फिल्म ‘न्यूड’ को महोत्सव के पैनोरमा खंड से हटाने से जुड़े विवाद को लेकर कहा, ‘‘मुझे पता नहीं कि दोनों फिल्मों में क्या है, क्या नहीं है। अदालत (‘एस दुर्गा’ पर केरल उच्च न्यायालय का फैसला) से सकारात्मक निर्देश आया है। सरकार के कुछ पूर्वाग्रह हैं, कुछ विचार हैं।उन्हें लगता है कि ये होना चाहिए, ये नहीं होना चाहिए। अदालत एक सहारा है। जो भी दल सत्ता में होता है, उसके कुछ पूर्वाग्रह होते हैं, कांग्रेस में भी थे।

मेरी फिल्म ‘ओम दर बदर’ कांग्रेस के कार्यकाल में रूकी थी। दो साल तक मुझे सेंसर बोर्ड से प्रमाणपत्र नहीं मिला था।’’ ‘ओम दर बदर’ 1988 में बनी थी लेकिन यह दशकों बाद 2014 में रिलीज हुई। फिल्म को 1989 में सर्वश्रेष्ठ फिल्म का फिल्मफेयर क्रिटिक्स अवार्ड मिला था। साथ ही इसे अंतरराष्ट्रीय फिल्म महोत्सवों में काफी सराहना मिली थी।  दो राष्ट्रीय पुरस्कार जीत चुके निर्देशक, पटकथाकार ने अपनी फिल्म ‘पुष्कर पुराण’ और पौराणिक कथाओं के प्रति अपने रूझान की बात करते हुए कहा, ‘‘मैं अजमेर में पला बढ़ा, जो पुष्कर से लगा हुआ है। मैं पिछले 40 सालों से पुष्कर जाता रहा हूं, इसलिए मैं पुष्कर और भगवान ब्रह्मा की कहानियां जानता हूं।

मैंने पुष्कर पर कई लघु फिल्में बनायी हैं। ‘ओम दर बदर’ भी पुष्कर और अजमेर की पृष्ठभूमि पर आधारित थी। इतालवी लेखक रॉबर्टो कलासो ने ‘का: स्टोरीज ऑफ द माइंड एंड गॉड्स ऑफ इंडिया’ किताब लिखी है, मैंने उसमें से दो हिस्से लिए और उसपर यह डॉक्यमेंट्री बनायी। एक हिस्सा ब्रह्मा और दूसरा अश्वमेध यज्ञ से जुड़ा है।’’ अपनी अगली फिल्म के बारे में पूछे जाने पर ‘सलाम बांबे’ फिल्म के संवाद लेखक ने कहा, ‘‘मेरी अगली फिल्म ‘ओमनियम’ है जो आयरिश उपन्यासकार फ्लैन ओ’ब्रायन की किताब ‘द थर्ड पुलिसमैन’ पर आधारित है।

फिल्म को आईएफएफआई के फिल्म बाजार में हिस्सा लेने के लिए चुना गया है। साथ ही मैं कश्मीरी पंडितों के कश्मीर से पलायन पर एक फिल्म बना रहा हूं। यह 19 जनवरी, 1990 की काली रात की कहानी है जब समुदाय को कश्मीर से भागने पर मजबूर किया गया था।’’ 

डिस्क्लेमर: प्रभासाक्षी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।


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