औद्योगिक इकाईयों में कचरा शोधन संयंत्र जरूरी: सुप्रीम कोर्ट

[email protected] । Feb 22 2017 4:50PM

उच्चतम न्यायालय ने निर्देश देते हुये राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों से कहा कि यदि औद्योगिक इकाईयों में चालू अवस्था में कचरा शोधन संयंत्र नहीं हो तो उन्हें काम करने की अनुमति नहीं दी जाये।

उच्चतम न्यायालय ने नदियों और तालाबों में दूषित कचरा प्रवाहित करने पर अंकुश लगाने के लिये आज निर्देश देते हुये राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों से कहा कि यदि औद्योगिक इकाईयों में चालू अवस्था में कचरा शोधन संयंत्र नहीं हो तो उन्हें काम करने की अनुमति नहीं दी जाये। लेकिन इससे पहले औद्योगिक इकाईयों को इस बारे में नोटिस दिया जाये। प्रधान न्यायाधीश जगदीश सिंह खेहर, न्यायमूर्ति धनंजय वाई चंद्रचूड और न्यायमूर्ति संजय किशन कौल की तीन सदस्यीय खंडपीठ ने कहा कि नोटिस की तीन महीने की अवधि समाप्त होने के बाद राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों को औद्योगिक इकाईयों का निरीक्षण करके उनमें कचरा शोधन संयंत्रों की स्थिति के बारे में पता लगाना चाहिए।

न्यायालय ने कहा कि यदि औद्योगिक इकाईयों में कचरा शोधन संयंत्र काम करते नहीं मिलें तो उन्हें और चालू रखने की अनुमति नहीं दी जायेगी। न्यायालय ने राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों को निर्देश दिया कि वे ऐसी औद्योगिक इकाईयों की बिजली आपूर्ति बंद करने के लिये संबंधित डिककाम या बिद्युत आपूर्ति बोर्ड से कहें। शीर्ष अदालत ने कहा कि इन इकाईयों में कचरा शोधन संयंत्र चालू होने के बाद ही उन्हें फिर से काम शुरू करने की अनुमति दी जानी चाहिए। यही नहीं, शीर्ष अदालत ने स्थानीय प्रशासन और नगर निगमों से कहा कि वे भूमि अधिग्रहण करने और दूसरी औपचारिकताओं को पूरा करने के बाद तीन साल के भीतर साझा कचरा शोधन संयंत्र स्थापित करें। न्यायालय ने कहा कि यदि स्थानीय प्रशासन को साझा कचरा शोधन संयंत्र स्थापित करने और इसे चलाने में वित्तीय संकट का सामना करना पड़ रहा हो तो वे इसका उपायोग करने वालों पर उपकर लगाने के मानदंड तैयार कर सकते हैं। न्यायालय ने कहा कि राज्य सरकारों को साझा कचरा संयंत्र स्थापित करने के बारे में अपनी रिपोर्ट राष्ट्रीय हरित अधिकरण की संबधित पीठ में दाखिल करना होगा। इससे पहले, न्यायालय ने भूजल सहित तमाम जल स्रोतों में प्रदूषण को लेकर गैर सरकारी संगठन पर्यावरण सुरक्षा समिति की जनहित याचिका पर केन्द्र, पर्यावरण एवं वन मंत्रालय, केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और गुजरात सहित 19 राज्यों के मुख्य सचिवों को नोटिस जारी किये थे।

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