आम आदमी पार्टी तो अपना रिपोर्ट कार्ड पेश नहीं करेगी, सोचा हम ही आपको उनके काम बता दें

Arvind Kejriwal
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आप देख रहे होंगे कि आजकल अरविंद केजरीवाल रोज प्रेस के सामने आकर बड़ी बड़ी बातें कर रहे हैं लेकिन आंकड़े बता रहे हैं कि पिछले पांच सालों में इन्होंने कुछ काम नहीं किया और सारा वक्त प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा से लड़ने में बर्बाद कर दिया।

दिल्ली विधानसभा चुनावों को एक बार फिर जीतने के लिए आम आदमी पार्टी पूरा जोर लगा रही है। आम आदमी पार्टी वोट मांगने के दौरान अपनी मुफ्त की रेवड़ियों के बारे में तो जनता को बता ही रही है साथ ही वह संविधान और लोकतंत्र की दुहाई भी दे रही है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि आम आदमी पार्टी की सरकार की ओर से दी गयी मुफ्त की सौगातें बड़ा छलावा साबित हुई हैं और लोकतंत्र तथा संविधान की मर्यादा का भी इस पार्टी की सरकार ने बिल्कुल ध्यान नहीं रखा।

आप देख रहे होंगे कि आजकल अरविंद केजरीवाल रोज प्रेस के सामने आकर बड़ी बड़ी बातें कर रहे हैं लेकिन आंकड़े बता रहे हैं कि पिछले पांच सालों में इन्होंने कुछ काम नहीं किया और सारा वक्त प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा से लड़ने में बर्बाद कर दिया। जिस विधानसभा को दिल्ली के लोगों की समस्याओं का हल निकालना था उसको आम आदमी पार्टी ने मोदी सरकार के खिलाफ प्रस्ताव पास करने का मंच बनाकर रख दिया। दिल्ली विधानसभा को किस तरह आम आदमी पार्टी ने अपने राजनीतिक स्वार्थों की पूर्ति का मंच बना कर रखा इसे आप इसी से समझ सकते हैं कि निवर्तमान विधानसभा ने पूरे पांच साल में मात्र 74 दिन ही कार्य किया। पांच साल में 1825 दिन होते हैं मगर इनमें से काम हुआ मात्र 74 दिन। हम आपको बता दें कि यह दिल्ली की विधानसभा के अब तक के सबसे कम कार्य दिवस का रिकॉर्ड है। इसके अलावा बड़ी-बड़ी बातें करने वाली आम आदमी पार्टी की सरकार ने पूरे पांच साल में मात्र 14 विधेयक पारित किये। यानि दिल्ली की विधानसभा ने अपने इतिहास में पांच साल में सबसे कम विधेयक पारित करने का रिकॉर्ड भी बनाया है। खास बात यह रही कि यह जो 14 विधेयक पारित हुए उनमें से पांच विधायकों के भत्ते, सुविधाएं और उन्हें मिलने वाली सैलरी से संबंधित थे। साथ ही दिल्ली के विधायकों के कामकाज का आकलन इसी से लगाया जा सकता है कि 2020 से 2025 तक विधायकों ने विधानसभा में सालाना आधार पर औसत 219 प्रश्न ही पूछे। इसके अलावा आम आदमी पार्टी के शासन में विधानसभा में जिस दिन भी कार्यवाही हुई वह औसतन मात्र तीन घंटे तक चली। इसके अलावा विधानसभा के 74 कार्य दिवसों में से मात्र नौ दिन ही प्रश्नकाल हुआ।

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यही नहीं, आम आदमी पार्टी की सरकार ने कभी विधानसभा का सत्रावसान भी नहीं किया ताकि जब चाहें विधानसभा की बैठक बुला सकें और वहां से राजनीतिक बयानबाजी कर सकें। दरअसल विधानसभा का सत्रावसान होने पर सत्र को दोबारा आहूत करने के लिए उपराज्यपाल की अनुमति चाहिए होती है और उन्हें सदन की बैठक बुलाने का कारण भी बताना होता है। आम आदमी पार्टी को लगता था कि यदि उपराज्यपाल ने बैठक बुलाने की अनुमति नहीं दी तो कैसे अपने राजनीतिक हित सधेंगे इसलिए वह कभी सत्रावसान करते ही नहीं थे। यही नहीं, विधानसभा में सीएजी की जो रिपोर्टें प्रस्तुत की जानी थीं वह भी नहीं की गयीं।

जहां तक आम आदमी पार्टी की सरकार की ओर से बांटी जाने वाली मुफ्त रेवड़ियों की बात है तो उसकी सच्चाई यह है कि जनता को जितना दिया नहीं गया उतना हर योजना में घोटाला हो गया है। यह घोटाले भी प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष तरीके के हैं। मसलन एक दारू की बोतल पर दूसरी बोतल फ्री दी गयी लेकिन शराब नीति के जरिये घोटाला करके दिल्ली के सरकारी खजाने को हजारों करोड़ रुपए का चूना लगा दिया गया। जनता को 200 यूनिट बिजली फ्री देने की बात की गयी लेकिन एक यूनिट फालतू होते ही भारी भरकम बिजली बिल भेजे गये। जनता को 700 लीटर पानी फ्री देने की बात हुई लेकिन लोगों के भारी भरकम पानी के बिल आये। खास बात यह रही कि पानी का बिल तो हर महीने आ गया लेकिन नल से जल हर रोज नहीं आया और जहां जहां नल से जल आया वह गंदा आया।

इसके अलावा प्रदूषण से निबटने की कोई स्थायी और प्रभावी योजना नहीं होने के चलते दिल्ली इतनी प्रदूषित हो गयी कि लोगों को तमाम तरह की स्वास्थ्य संबंधी परेशानियां हो गयी हैं। अक्सर बुजुर्गों को होने वाली सांस की बीमारी दिल्ली के बच्चों को भी हो गयी है। दिल्ली में पवित्र यमुना नदी को गंदा नाला बनने से रोकने में आम आदमी पार्टी की सरकार पूरी तरह विफल रही। दिल्ली में यमुना का जल इतना प्रदूषित है कि त्योहारों पर श्रद्धालु अगर पानी में चले जायें तो उन्हें चर्म रोग हो जाते हैं और इस पानी का शोधन करने में मशीनों के हाथ पांव फूल जाते हैं। यही नहीं, दिल्ली की सरकार अपने शिक्षा मॉडल का ढिंढोरा खूब पीटती है लेकिन अपने अब तक के कार्यकाल में वह एक भी नया स्कूल, एक भी नया कॉलेज या एक भी नया अस्पताल नहीं बना सकी है। दिल्ली में जल निकासी की व्यवस्था इतनी खराब है कि बारिश आने पर बेसमेंट में पानी भर जाने से छात्र डूब कर मर जाते हैं। यही नहीं, दिल्ली एमसीडी में आम आदमी पार्टी का शासन होने के बावजूद कूड़े के पहाड़ वहीं के वहीं हैं। 

इसके अलावा, अरविंद केजरीवाल भले इस समय मंदिर मंदिर जाकर हिंदुओं को लुभाने के प्रयास कर रहे हैं लेकिन तथ्य यह है कि आम आदमी पार्टी के शासन के दौरान ही हिंदू दीवाली पर पटाखे नहीं चला पाये। यह बात भी गौर करने लायक है कि आम आदमी पार्टी महिलाओं को अभी 1000 रुपए मासिक देने और चुनाव बाद 2100 रुपए देने की बात कर रही है लेकिन सवाल उठता है कि महिलाओं की सुध उसे अपने शासन की शुरुआत या मध्य में क्यों नहीं आई थी? यही नहीं, एक दारू की बोतल पर दूसरी दारू की बोतल फ्री देकर आम आदमी पार्टी ने महिलाओं का ही सिरदर्द सबसे ज्यादा बढ़ाया था।

वैसे यहां सवाल आम आदमी पार्टी से ही नहीं है बल्कि दिल्ली के मतदाताओं से भी है। आम आदमी पार्टी के घोषणापत्र में किये गये फ्री के वादों को देखने की बजाय क्या किसी मतदाता ने इस सरकार का रिपोर्ट कार्ड देखा है। दिल्ली के मतदाताओं को यह जानकर हैरानी होगी कि अपने घोषणापत्र का प्रचार कर रही आम आदमी पार्टी की सरकार अपना रिपोर्ट कार्ड नहीं पेश कर रही है क्योंकि रिपोर्ट में दिखाने के लिए कुछ है ही नहीं।

दिल्ली के मतदाताओं पर देश की नजर इसलिए भी है क्योंकि नवीनतम सांख्यिकीय पुस्तिका दर्शाती है कि साल 2023-24 में दिल्ली की प्रति व्यक्ति आय 4,61,910 रुपये थी जो देश में गोवा और सिक्किम के बाद तीसरी सबसे अधिक है। यानि शहर की प्रति व्यक्ति आय राष्ट्रीय स्तर की प्रति व्यक्ति आय 1,84,205 रुपये से दोगुनी से भी अधिक थी। इसके अलावा एक और आंकड़ा यह बताता है कि सबसे कम महंगाई दर के मामले में झारखंड के बाद दिल्ली का नंबर आता है। यानि दिल्ली में आमदनी ज्यादा है और महंगाई कम है इसलिए सवाल उठता है कि ऐसी स्थिति में भी सबको सब कुछ फ्री में क्यों चाहिए? देश की जनता देख रही है कि क्या दिल्ली का मतदाता अपने निजी फायदे पर ध्यान देने की बजाय इस बार अपने शहर के फायदे को देखेगा?

-नीरज कुमार दुबे

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