सामने वाले को उसी की भाषा में जवाब देते हैं मोदी, ट्रंप को भी कूटनीतिक चाल से दे दी मात

उल्लेखनीय है कि हाल के महीनों में ट्रंप ने कई बार यह दावा किया कि उन्होंने भारत को रूसी तेल खरीदना बंद करने के लिए “राजी” किया है, या कि उन्होंने “ऑपरेशन सिंदूर” को रोक दिया था। यह ऐसे बयान हैं जिनका कोई तथ्यात्मक आधार नहीं है।
आसियान शिखर सम्मेलन में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के वर्चुअल रूप से शामिल होने के निर्णय ने अंतरराष्ट्रीय कूटनीति के हलकों में नई चर्चा छेड़ दी है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के लगातार असत्य और विवादास्पद बयानों के बीच मोदी का यह कदम केवल एक राजनैतिक निर्णय नहीं, बल्कि एक सोची-समझी रणनीतिक चाल भी है। जहाँ एक ओर विपक्ष विशेषकर कांग्रेस यह आरोप लगा रही है कि मोदी ट्रंप से मिलने से “डर” रहे हैं, वहीं वस्तुतः यह निर्णय भारतीय विदेश नीति की परिपक्वता और आत्मविश्वास का परिचायक है।
उल्लेखनीय है कि हाल के महीनों में ट्रंप ने कई बार यह दावा किया कि उन्होंने भारत को रूसी तेल खरीदना बंद करने के लिए “राजी” किया है, या कि उन्होंने “ऑपरेशन सिंदूर” को रुकवा दिया था। यह ऐसे बयान हैं जिनका कोई तथ्यात्मक आधार नहीं है। यह स्पष्ट है कि ट्रंप घरेलू राजनीतिक लाभ के लिए अंतरराष्ट्रीय संबंधों को प्रचार का औजार बना रहे हैं। ऐसे में प्रधानमंत्री मोदी का उनसे औपचारिक मुलाकात से बचना भारत की कूटनीति की गंभीरता को बनाए रखने के लिए आवश्यक था। सीधे आमने-सामने मिलना ट्रंप को अपने राजनीतिक प्रचार में भारत के नाम का उपयोग करने का अवसर देता— जो न केवल भारत की तटस्थता बल्कि उसकी वैश्विक छवि को भी प्रभावित कर सकता था। साथ ही मोदी का वर्चुअल रूप से आसियान सम्मलेन में शामिल होना इस “राजनीतिक जाल” से बचने का संतुलित मार्ग भी है।
दूसरी ओर, कांग्रेस का आरोप कि प्रधानमंत्री “ट्रंप से डर रहे हैं”, वस्तुतः सतही और अव्यावहारिक है। सच्चाई यह है कि मोदी सरकार ने भारत-अमेरिका संबंधों को समान साझेदारी के आधार पर विकसित किया है न कि किसी भय या दबाव के अधीन। वर्तमान निर्णय भी उसी आत्मनिर्भर विदेश नीति का हिस्सा है जहाँ भारत अपने राष्ट्रीय हित को सर्वोपरि रखता है। मोदी का आसियान सम्मेलन में वर्चुअल भागीदारी का फैसला न तो अमेरिका से दूरी बनाना है, न ही ट्रंप के प्रति विरोध। यह निर्णय उस संतुलनकारी कूटनीति का हिस्सा है जिसने भारत को रूस और अमेरिका दोनों से समान दूरी बनाए रखते हुए अपने हितों की रक्षा करने में सक्षम बनाया है।
भारत आज न तो किसी धुरी का हिस्सा है और न ही किसी के दबाव में झुकता है। जब ट्रंप भारत पर ऊँचे शुल्क लगाते हैं या रूस से तेल खरीदने पर दबाव डालते हैं, तब भी भारत अपने आर्थिक हितों की रक्षा करते हुए संयम बनाए रखता है। यही रणनीति मोदी ने इस मुलाकात से बचकर अपनाई है— यानी “ट्रंप को उनकी ही भाषा में जवाब देना”, लेकिन बिना टकराव के।
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मोदी का आसियान में वर्चुअल उपस्थिति का निर्णय किसी निष्क्रियता का संकेत नहीं है। वर्ष 2014 से लेकर अब तक प्रधानमंत्री ने आसियान के मंच पर भारत की Act East Policy को निरंतर गति दी है। यह वही नीति है जिसने दक्षिण-पूर्व एशिया में भारत की रणनीतिक उपस्थिति को मज़बूत किया है। साथ ही वर्चुअल भागीदारी का अर्थ यह नहीं कि भारत पीछे हट रहा है— बल्कि यह निर्णय दर्शाता है कि भारत तकनीक और संवाद दोनों के माध्यम से वैश्विक निर्णय-प्रक्रिया में सक्रिय बना हुआ है। डिजिटल उपस्थिति ने अब कूटनीति की सीमाएँ बदल दी हैं और मोदी का यह निर्णय उस आधुनिक यथार्थ को स्वीकार करने का संकेत है।
साथ ही मोदी के इस निर्णय का सबसे बड़ा प्रभाव भारत की स्वतंत्र वैश्विक छवि के रूप में सामने आएगा। अमेरिका के राष्ट्रपति से न मिलना यह दिखाता है कि भारत किसी भी देश के राजनीतिक समीकरणों के आगे नहीं झुकता। जहाँ एक ओर ट्रंप एशिया यात्रा में तीन देशों के साथ दिखावटी संपर्क बनाना चाहते हैं, वहीं भारत ने नीतिगत गरिमा को प्राथमिकता दी है। यह संदेश स्पष्ट है— भारत संवाद तो करेगा, लेकिन अपने समय, अपने शर्तों और अपने हितों के आधार पर।
प्रधानमंत्री मोदी का आसियान सम्मेलन में वर्चुअल रूप से शामिल होने का निर्णय न तो किसी भय का प्रतीक है और न ही अवसर खोने का। यह भारत की परिपक्व, आत्मविश्वासी और बहुपक्षीय विदेश नीति का प्रमाण है जहाँ कूटनीति का लक्ष्य केवल मित्रता नहीं, बल्कि राष्ट्रीय गरिमा और संतुलन की रक्षा भी है। दूसरी ओर, ट्रंप की राजनीति आज अनिश्चितता, बयानबाज़ी और घरेलू नाटकीयता से घिरी हुई है। ऐसे में भारत का संयमित रुख ही वास्तविक शक्ति का प्रदर्शन है।
देखा जाये तो प्रधानमंत्री मोदी की कूटनीति की सबसे बड़ी ताकत यह है कि वे सामने वाले को उसी की भाषा में जवाब देना जानते हैं— परंतु शांत और रणनीतिक ढंग से। ट्रंप जैसे नेताओं के साथ जो सार्वजनिक बयानबाज़ी और दबाव की राजनीति करते हैं, उनके सामने मोदी ने उसी शैली को उलटकर अपनी शांति, संयम और सधी हुई दूरी के माध्यम से जवाब दिया है। उन्होंने यह साबित कर दिया कि जवाब हमेशा शब्दों से नहीं, बल्कि व्यवहार से भी दिया जा सकता है। इस बार भी ट्रंप की बयानबाज़ी के जवाब में मोदी ने अपनी उपस्थिति को प्रतीकात्मक बना कर यह दिखा दिया कि भारत किसी भी शक्ति से कम नहीं। दरअसल, यह मोदी का “डिप्लोमैटिक मास्टरस्ट्रोक” है जिसने ट्रंप को उनके ही खेल में मात दे दी और दुनिया को दिखा दिया कि भारत के प्रधानमंत्री आज वैश्विक राजनीति के सबसे सधे हुए खिलाड़ी हैं।
बहरहाल, कांग्रेस के आरोपों से परे, सच्चाई यही है कि प्रधानमंत्री मोदी ने न केवल भारत की वैश्विक साख की रक्षा की है, बल्कि यह भी दिखाया है कि 21वीं सदी का भारत किसी के “political optics” का हिस्सा नहीं बनेगा बल्कि वह स्वयं अंतरराष्ट्रीय मंचों की दिशा तय करेगा। कुल मिलाकर देखें तो मोदी का यह निर्णय किसी “डर” का नहीं, बल्कि दूरदर्शिता का परिणाम है— और यही वह बिंदु है जहाँ भारत की कूटनीति अपनी परिपक्वता के चरम पर खड़ी दिखाई देती है।
-नीरज कुमार दुबे
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