एशिया-अफ्रीका मैत्री का प्रतीक बांडुंग

Bandung
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बांडुंग सम्मेलन में एशियाई-अफ्रीकी देशों ने उपनिवेशवाद और साम्राज्यवाद से मुक्ति की साझा भावना के साथ 29 देशों और क्षेत्रों के राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और नेता एकत्रित हुए थे। जिसकी अध्यक्षता इंडोनेशिया के राष्ट्रपति सुकर्णो ने की थी और इसमें एशिया से 23 और अफ्रीका से 6 देश शामिल थे।

इंडोनेशिया का खूबसूरत शहर है बांडुंग... बांडुंग की जो चीज लोगों को सबसे ज़्यादा पसंद है, वह है शहर का ठंडा मौसम...शायद इस शहर की ठंडी तासीर ही थी कि शीत युद्ध की गर्मी के खिलाफ अफ्रीका और एशिया के देशों ने ठीक सत्तर साल पहले 1955 में यहां जुटान रखी और दो ध्रुवों में तब बंटी दुनिया की बजाय अपनी अलग राह चुनी। बीते 18 अप्रैल को इस शहर ने एशिया-अफ्रीकी संबंधों और आपसी सहयोग की नई नींव रखने की सतरवीं सालगिरह मनाई है।  सत्तर साल पहले इस आयोजन को बांडुंग सम्मेलन कहा जाता है। इसी सम्मेलन के छह साल बाद 1 से 6 सितंबर, 1961 के बीच तत्कालीन यूगोस्लाविया की राजधानी बेलग्रेड में गुटनिरपेक्ष आंदोलन की नींव रखी गई। 

बांडुंग सम्मेलन को विशेष रूप से एशियाई-अफ्रीकी सम्मेलन के नाम से जाना जाता है। यहां के एक नागरिक पोपोंग ओत्जे जुंजुनन ने चीनी समाचार एजेंसी जिन्हुआ से उस सम्मेलन को विशेष रूप से याद करते हुए कहा कि 1955 में जब यह ऐतिहासिक शिखर सम्मेलन आयोजित हुआ था, तब बांडुंग आज के इंडोनेशिया से बिल्कुल अलग तरह का था। इस सम्मेलन में एशियाई-अफ्रीकी देशों ने उपनिवेशवाद और साम्राज्यवाद से मुक्ति की साझा भावना के साथ 29 देशों और क्षेत्रों के राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और नेता एकत्रित हुए थे। जिसकी अध्यक्षता इंडोनेशिया के राष्ट्रपति सुकर्णो ने की थी और इसमें एशिया से 23 और अफ्रीका से 6 देश शामिल थे।

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इस बीच इंडोनेशिया ने शिक्षा, अर्थव्यवस्था और परिवहन में प्रगति के माध्यम से पिछले सात दशकों में उल्लेखनीय प्रगति की है। इसी दौरान इंडोनेशिया-चीन सहयोग के चलते जकार्ता-बांडुंग हाई-स्पीड रेलवे चल रही है। जिसकी वजह से दोनों शहरों की दूरी अब चार घंटे की बजाय महज 30 मिनट में पूरी हो जाती है। 

पोपोंग ने हाल ही में बांडुंग स्थित अपने घर पर शिन्हुआ को बताया, "इसी बांडुंग सम्मेलन के बाद तकरीबन सभी देशों से उपनिवेशवाद ख़त्म हो गया है और अब एशियाई और अफ्रीकी देश आर्थिक और राजनीतिक रूप से अपना पुनर्निर्माण कर रहे हैं। वैश्विक विकास मानवीय संबंधों, विशेषकर सीमा पार संबंधों को लेकर इस सम्मेलन के देश आगे बढ़ रहे हैं। इसकी ही वजह से आज एशिया और अफ्रीका के देश नजदीक आ रहे हैं और उनकी आर्थिकी एक-दूसरे पर निर्भर करती है। बांडुंग में इस बार सिर्फ औपचारिक आयोजन हुआ। लेकिन बांडुंग अब एशिया और अफ्रीका के घने होते रिश्तों का प्रतीक बन गया है। 

सम्मेलन के मुख्य सिद्धांत राजनीतिक आत्मनिर्णय, संप्रभुता के लिए परस्पर सम्मान, गैर-आक्रामकता, आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप न करना और समानता थे। ये मुद्दे सम्मेलन में भाग लेने वाले सभी प्रतिभागियों के लिए केंद्रीय महत्व के रहे, जिनमें से अधिकांश हाल ही में औपनिवेशिक शासन से उभरे थे। इन्हीं सिद्धांतों को गुटनिरपेक्षता की नीति के मुख्य उद्देश्यों के रूप में बाद में अपनाया गया था। 

औपनिवेशिक डच ईस्ट इंडीज काल के दौरान बांडुंग का आधिकारिक नाम बांडोएंग था। बहरहाल "बांडुंग भावना" दक्षिण-दक्षिण सहयोग की भावना को प्रेरित करती है। इसे इस सम्मेलन के साठवीं सालगिरह पर आयोजित कार्यक्रम में एशिया, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका के 100 से अधिक विकासशील देशों ने भाग लिया था। बांडुंग का महत्व यह है कि यहीं से एशिया और अफ्रीका के साथ लाने की पहल शुरू हुई थी। जैसे-जैसे अफ्रीका और एशिया के देश नजदीक आते जाएंगे, उनकी संस्कृतियां करीब आती जाएंगी, कारोबारी रिश्ते सुदृढ़ होते जाएंगे, वैसे-वैसे इस सम्मेलन का महत्व बढ़ता जाएगा।

- उमेश चतुर्वेदी

लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तम्भकार हैं

(इस लेख में लेखक के अपने विचार हैं।)
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