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दीपावली पर सिर्फ अपना घर ही नहीं, देश को भी रौशन करें
- ललित गर्ग
- अक्टूबर 21, 2019 11:34
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प्रकाश हमारी सद् प्रवृत्तियों का, सद्ज्ञान का, संवेदना एवं करुणा का, प्रेम एवं भाईचारे का, त्याग एवं सहिष्णुता का, सुख और शांति का, ऋद्धि और समृद्धि का, शुभ और लाभ का, श्री और सिद्धि का अर्थात् दैवीय गुणों का प्रतीक है।
भारत को त्यौहारों का देश माना जाता है। दीपावली सबसे अधिक प्रमुख त्यौहार है। यह त्यौहार दीपों का पर्व है। जब हम अज्ञान रूपी अंधकार को हटाकर ज्ञान रूपी प्रकाश प्रज्ज्वलित करते हैं तो हमें एक असीम और आलौकिक आनन्द का अनुभव होता है। दीपावली शब्द संस्कृत से लिया गया है। दीपावली दो शब्दों से मिलकर बना होता है दीप और आवली जिसका अर्थ होता है दीपों से सजा। इसीलिये दीपावली ज्ञान रूपी प्रकाश का प्रतीक पर्व है। हर घर, हर आंगन, हर बस्ती, हर गाँव में सबकुछ रोशनी से जगमगा जाया करता है। आदमी मिट्टी के दीए में स्नेह की बाती और परोपकार का तेल डालकर उसे जलाते हुए भारतीय संस्कृति को गौरव और सम्मान देता है, क्योंकि दीया भले मिट्टी का हो मगर वह हमारे जीने का आदर्श है, हमारे जीवन की दिशा है, संस्कारों की सीख है, संकल्प की प्रेरणा है और लक्ष्य तक पहुँचने का माध्यम है। यह पर्व घर ही नहीं, घट को भी रोशन करने का अवसर है, इसे मनाने की सार्थकता तभी है जब भीतर का अंधकार दूर हो।
अंधकार जीवन की समस्या है और प्रकाश उसका समाधान। जीवन जीने के लिए सहज प्रकाश चाहिए। प्रारंभ से ही मनुष्य की खोज प्रकाश को पाने की रही। अंधकार हमारे अज्ञान का, दुराचरण का, दुष्टप्रवृत्तियों का, आलस्य और प्रमाद का, बैर और विनाश का, क्रोध और कुंठा का, राग और द्वेष का, हिंसा और कदाग्रह का अर्थात् अंधकार हमारी राक्षसी मनोवृत्ति का प्रतीक है। जब मनुष्य के भीतर असद् प्रवृत्ति का जन्म होता है, तब चारों ओर वातावरण में कालिमा व्याप्त हो जाती है। अंधकार ही अंधकार नजर आने लगता है। मनुष्य हाहाकार करने लगता है। मानवता चीत्कार उठती है। अंधकार में भटके मानव का क्रंदन सुनकर करुणा की देवी का हृदय पिघल जाता है। ऐसे समय में मनुष्य को सन्मार्ग दिखा सके, ऐसा प्रकाश स्तंभ चाहिए। इन स्थितियों में हर मानव का यही स्वर होता है कि- प्रभो, हमें अंधकार से प्रकाश की ओर ले चलो। बुराइयों से अच्छाइयों की ओर ले चलो। मृत्यु से अमरता की ओर ले चलो। इस प्रकार हम प्रकाश के प्रति, सदाचार के प्रति, अमरत्व के प्रति अपनी निष्ठा व्यक्त करते हुए आदर्श जीवन जीने का संकल्प करते हैं।
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प्रकाश हमारी सद् प्रवृत्तियों का, सद्ज्ञान का, संवेदना एवं करुणा का, प्रेम एवं भाईचारे का, त्याग एवं सहिष्णुता का, सुख और शांति का, ऋद्धि और समृद्धि का, शुभ और लाभ का, श्री और सिद्धि का अर्थात् दैवीय गुणों का प्रतीक है। यही प्रकाश मनुष्य की अंतर्चेतना से जब जागृत होता है, तभी इस धरती पर सतयुग का अवतरण होने लगता है। प्रत्येक व्यक्ति के अंदर एक अखंड ज्योति जल रही है। उसकी लौ कभी-कभार मद्धिम जरूर हो जाती है, लेकिन बुझती नहीं है। उसका प्रकाश शाश्वत प्रकाश है। वह स्वयं में बहुत अधिक देदीप्यमान एवं प्रभामय है। इसी संदर्भ में महात्मा कबीरदासजी ने कहा था- ‘बाहर से तो कुछ न दीसे, भीतर जल रही जोत’।
जो महापुरुष उस भीतरी ज्योति तक पहुँच गए, वे स्वयं ज्योतिर्मय बन गए। जो अपने भीतरी आलोक से आलोकित हो गए, वे सबके लिए आलोकमय बन गए। जिन्होंने अपनी भीतरी शक्तियों के स्रोत को जगाया, वे अनंत शक्तियों के स्रोत बन गए और जिन्होंने अपने भीतर की दीवाली को मनाया, लोगों ने उनके उपलक्ष में दीवाली का पर्व मनाना प्रारंभ कर दिया।
भगवान महावीर ने दीपावली की रात जो उपदेश दिया उसे हम प्रकाश पर्व का श्रेष्ठ संदेश मान सकते हैं। भगवान महावीर की यह शिक्षा मानव मात्र के आंतरिक जगत को आलोकित करने वाली है। तथागत बुद्ध की अमृत वाणी ‘अप्पदीवो भव’ अर्थात् ‘आत्मा के लिए दीपक बन’ वह भी इसी भावना को पुष्ट कर रही है। इतिहासकार कहते हैं कि जिस दिन ज्ञान की ज्योति लेकर नचिकेता यमलोक से मृत्युलोक में अवतरित हुए वह दिन दीपावली का दिन था। यद्यपि लोक मानस में दीपावली एक सांस्कृतिक पर्व के रूप में अपनी व्यापकता सिद्ध कर चुका है। फिर भी यह तो मानना ही होगा कि जिन ऐतिहासिक महापुरुषों के घटना प्रसंगों से इस पर्व की महत्ता जुड़ी है, वे अध्यात्म जगत के शिखर पुरुष थे। इस दृष्टि से दीपावली पर्व लौकिकता के साथ-साथ आध्यात्मिकता का अनूठा पर्व है।
यह बात सच है कि मनुष्य का रूझान हमेशा प्रकाश की ओर रहा है। अंधकार को उसने कभी न चाहा न कभी माँगा। ‘तमसो मा ज्योतिगर्मय’ भक्त की अंतर भावना अथवा प्रार्थना का यह स्वर भी इसका पुष्ट प्रमाण है। अंधकार से प्रकाश की ओर ले चल इस प्रशस्त कामना की पूर्णता हेतु मनुष्य ने खोज शुरू की। उसने सोचा कि वह कौन-सा दीप है जो मंजिल तक जाने वाले पथ को आलोकित कर सकता है। अंधकार से घिरा हुआ आदमी दिशाहीन होकर चाहे जितनी गति करें, सार्थक नहीं हुआ करती। आचरण से पहले ज्ञान को, चारित्र पालन से पूर्व सम्यक्त्व को आवश्यक माना है। ज्ञान जीवन में प्रकाश करने वाला होता है। शास्त्र में भी कहा गया- ‘नाणं पयासयरं’ अर्थात् ज्ञान प्रकाशकर है।
हमारे भीतर अज्ञान का तमस छाया हुआ है। वह ज्ञान के प्रकाश से ही मिट सकता है। ज्ञान दुनिया का सबसे बड़ा प्रकाश दीप है। जब ज्ञान का दीप जलता है तब भीतर और बाहर दोनों आलोकित हो जाते हैं। अंधकार का साम्राज्य स्वतः समाप्त हो जाता है। ज्ञान के प्रकाश की आवश्यकता केवल भीतर के अंधकार मोह-मूचर्छा को मिटाने के लिए ही नहीं, अपितु लोभ और आसक्ति के परिणामस्वरूप खड़ी हुई पर्यावरण प्रदूषण, हिंसा-आतंकवाद और अनैतिकता जैसी बाहरी समस्याओं को सुलझाने के लिए भी जरूरी है।
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आतंकवाद, भय, हिंसा, प्रदूषण, अनैतिकता, ओजोन का नष्ट होना आदि समस्याएँ इक्कीसवीं सदी के मनुष्य के सामने चुनौती बनकर खड़ी है। आखिर इन समस्याओं का जनक भी मनुष्य ही तो है। क्योंकि किसी पशु अथवा जानवर के लिए ऐसा करना संभव नहीं है। अनावश्यक हिंसा का जघन्य कृत्य भी मनुष्य के सिवाय दूसरा कौन कर सकता है? आतंकवाद की समस्या का हल तब तक नहीं हो सकता जब तक मनुष्य अनावश्यक हिंसा को छोड़ने का प्रण नहीं करता, इसलिये दीपावली को अहिंसा की ज्योति का पर्व बनाना होगा।
हालाँकि दीपावली एक लौकिक पर्व है। फिर भी यह केवल बाहरी अंधकार को ही नहीं, बल्कि भीतरी अंधकार को मिटाने का पर्व भी बने। हम भीतर में धर्म का दीप जलाकर मोह और मूचर्छा के अंधकार को दूर कर सकते हैं। दीपावली के मौके पर सभी आमतौर से अपने घरों की साफ-सफाई, साज-सज्जा और उसे संवारने-निखारने का प्रयास करते हैं। उसी प्रकार अगर भीतर चेतना के आँगन पर जमे कर्म के कचरे को बुहारकर- मांज कर साफ किया जाए, उसे संयम से सजाने-संवारने का प्रयास किया जाए और उसमें आत्मा रूपी दीपक की अखंड ज्योति को प्रज्वलित कर दिया जाए तो मनुष्य शाश्वत सुख, शांति एवं आनंद को प्राप्त हो सकता है। महान दार्शनिक संत आचार्य श्री महाप्रज्ञ लिखते हैं- हमें यदि धर्म को, अंदर को, प्रकाश को समझना है और वास्तव में धर्म करना है तो सबसे पहले इंद्रियों को बंद करना सीखना होगा। सारी इंद्रियों को विश्राम देकर बिलकुल स्थिर और एकाग्र होकर अपने भीतर झाँकना शुरू कर दें और इसका नियमित अभ्यास करें तो एक दिन आपको कोई ऐसी झलक मिल जाएगी कि आप रोमांचित हो जाएँगे। आप देखेंगे- भीतर का जगत कितना विशाल है, कितना आनंदमय और प्रकाशमय है। वहाँ कोई अंधकार नहीं है, कोई समस्या नहीं है। आपको एक दिव्य प्रकाश मिलेगा।
दीपावली पर्व की सार्थकता के लिए जरूरी है, दीये बाहर के ही नहीं, दीये भीतर के भी जलने चाहिए। क्योंकि दीया कहीं भी जले उजाला देता है। दीए का संदेश है- हम जीवन से कभी पलायन न करें, जीवन को परिवर्तन दें, क्योंकि पलायन में मनुष्य के दामन पर बुजदिली का धब्बा लगता है, जबकि परिवर्तन में विकास की संभावनाएँ जीवन की सार्थक दिशाएँ खोज लेती हैं। असल में दीया उन लोगों के लिए भी चुनौती है जो अकर्मण्य, आलसी, निठल्ले, दिशाहीन और चरित्रहीन बनकर सफलता की ऊँचाइयों के सपने देखते हैं। जबकि दीया दुर्बलताओं को मिटाकर नई जीवनशैली की शुरुआत का संकल्प है।
-ललित गर्ग
कोरोना टीका लगवाने के प्रति उत्साह कम रहा तो कैसे हरा पाएँगे महामारी को
- योगेश कुमार गोयल
- फरवरी 24, 2021 15:07
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टीकाकरण 2.0 के बाद 50 वर्ष से अधिक आयु के लोगों के टीकाकरण की तैयारी की जा रही है, यह अभियान मार्च माह में शुरू होगा। टीकाकरण के प्रति लोगों में उत्साह की कमी के चलते अलग-अलग जगहों से वैक्सीन की खुराकें बर्बाद होने की खबरें भी सामने आ रही हैं।
कोरोना वैक्सीन का टीकाकरण 2.0 गत 13 फरवरी को शुरू हो गया और उसी के साथ भारत सबसे तेजी से 77.66 लाख वैक्सीन लगाने वाला देश बन गया। अभी तक एक करोड़ से अधिक लोगों का टीकाकरण हो चुका है। भारत टीकाकरण के 21 दिनों में ही 50 लाख लोगों को वैक्सीन देने वाल दुनिया का पहला देश और 26 दिनों में 70 लाख लोगों को वैक्सीन देने वाला दुनिया का सबसे तेज देश बना गया था। हालांकि इस तथ्य की अनदेखी किया जाना भी सही नहीं कि इस दौरान फ्रंटलाइन वर्कर्स का अपेक्षा के अनुरूप टीकाकरण नहीं हो पाया है और टीकाकरण 2.0 शुरू होने के बाद वैक्सीन की दूसरी डोज लेने वालों में भी उत्साह की कमी देखी जा रही है। इसके कारणों की पड़ताल करते हुए टीकाकरण के प्रति लोगों का भरोसा बढ़ाया जाना बेहद जरूरी है क्योंकि स्वास्थ्य विशेषज्ञों का स्पष्ट मत है कि यदि टीकाकरण की दूसरी खुराक छूट गई तो टीके का सुरक्षा कवच कमजोर हो जाएगा और टीकाकरण में ऐसी लापरवाही संक्रमण की रोकथाम के प्रयासों पर भारी पड़ सकती है।
एक ओर जहां टीकाकरण अभियान को रफ्तार देने की जरूरत महसूस की जा रही है, वहीं बिहार तथा मध्य प्रदेश से जिस प्रकार के फर्जीवाड़े के मामले सामने आए हैं, ऐसे में दुनियाभर में सराहे जा रहे इस अभियान को पलीता न लगे, इसके लिए दोषी अधिकारियों पर कार्रवाई करने और भविष्य में कोरोना टीकाकरण में पूरी पारदर्शिता बरते जाने की सख्त दरकार है। उल्लेखनीय है कि जहां मध्य प्रदेश में कोरोना वैक्सीन लगवाने वाले करीब 1.37 लाख लोगों का एक ही मोबाइल नंबर रजिस्टर होने से वहां टीकाकरण अभियान के नाम पर हो रहे फर्जीवाड़े की पोल खुली, कुछ वैसा ही मामला बिहार के कुछ अस्पतालों में भी देखने को मिला। वहां भी टीकाकरण का लक्ष्य पूरा करने के लिए बोगस मोबाइल नंबरों के साथ हजारों ऐसे लोगों का विवरण दर्ज कर दिया गया, जिन्होंने न कभी कोरोना जांच कराई और न ही वैक्सीन ली।
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दुनियाभर में अभी तक कोरोना मरीजों की संख्या करीब 11 करोड़ हो चुकी है, जिनमें से 24 लाख से अधिक मौत के मुंह में समा चुके हैं। भारत में भी अब तक एक करोड़ से ज्यादा व्यक्ति संक्रमण के शिकार हो चुके हैं। हालांकि हमारे यहां रिकवरी दर अन्य देशों के मुकाबले काफी बेहतर रही है और पिछले कुछ समय में देशभर में कोरोना संक्रमितों की संख्या में तेजी से गिरावट भी दर्ज की गई है लेकिन अब जिस प्रकार कोरोना के मामले महाराष्ट्र, केरल, पंजाब, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ इत्यादि राज्यों में धीरे-धीरे बढ़ रहे हैं, ऐसे में टीकाकरण अभियान को अपेक्षित रफ्तार दिया जाना बेहद जरूरी है। 16 जनवरी को शुरू हुए टीकाकरण अभियान के बाद 30 दिनों के अंदर 83 लाख से अधिक लोगों को ‘कोरोना सुरक्षा कवच’ मिला लेकिन यह अपेक्षित लक्ष्य से काफी कम है। सरकार का लक्ष्य तीन करोड़ स्वास्थ्यकर्मियों सहित कुल 30 करोड़ लोगों के टीकाकरण का जुलाई-अगस्त तक का लक्ष्य है और विशेषज्ञों का मानना है कि तय लक्ष्य हासिल करने के लिए सरकार को 10 गुना तेज गति से टीकाकरण अभियान चलाना होगा और इसके लिए इस कार्य में निजी क्षेत्र को भी शामिल करना होगा।
टीकाकरण 2.0 के बाद 50 वर्ष से अधिक आयु के लोगों के टीकाकरण की तैयारी की जा रही है, यह अभियान मार्च माह में शुरू होगा। टीकाकरण के प्रति लोगों में उत्साह की कमी के चलते अलग-अलग जगहों से वैक्सीन की खुराकें बर्बाद होने की खबरें भी सामने आ रही हैं। वैक्सीन को लेकर जागरूकता में कमी के चलते लोगों के टीका केन्द्रों पर नहीं पहुंचने के कारण कोरोना वैक्सीन बेकार हो रही है। दरअसल कोविशील्ड की एक शीशी में कुल 10 जबकि कोवैक्सीन की एक शीशी में 20 खुराकें होती हैं और वैक्सीन लगाने के लिए शीशी को खोलने के चार घंटे के अंदर सभी खुराक खत्म करनी होती हैं लेकिन कुछ स्थानों पर लोगों के टीका लगवाने के लिए कम संख्या में पहुंचने और टीका लगवाने वालों की अपेक्षित संख्या नहीं होने के कारण वैक्सीन की खुराकें बर्बाद हो जाती हैं। भारत बहुत बड़ी आबादी वाला देश है और ऐसे में समझना मुश्किल नहीं है कि इतनी बड़ी आबादी के टीकाकरण का काम इतना सरल नहीं है। इसके लिए टीकाकरण अभियान की खामियों को दूर करते हुए लोगों को जागरूक करने की सख्त जरूरत है और इसमें देरी किया जाना खतरनाक होगा।
लोगों के मन में कोरोना वैक्सीन के साइड इफैक्ट्स को लेकर जो भ्रम व्याप्त हैं, उन्हें दूर करने के लिए व्यापक स्तर पर जागरूकता अभियान चलाए जाने की दरकार है। कुछ दिनों पहले एम्स निदेशक डॉ. रणदीप गुलेरिया ने कहा था कि कोरोना वैक्सीन को लेकर गलत और आधारहीन सूचनाओं की बाढ़ ने लोगों के मन में टीके को लेकर अनिच्छा पैदा की है और इसका समाधान यही है कि लोगों के मन में उत्पन्न संदेह और भ्रम को दूर करने के लिए सरकार द्वारा समुचित कदम उठाए जाएं। दरअसल कोरोना टीकों को लेकर सबसे बड़ा भ्रम लोगों के मन में इनके साइड इफैक्ट को लेकर है लेकिन कई प्रमुख स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि टीका लगने के आधे दिन तक टीके वाली जगह पर दर्द और हल्का बुखार रह सकता है, जो इस बात की निशानी है कि टीका काम कर रहा है। जब शरीर में दवा जाती है तो हमारा प्रतिरोधी तंत्र इसे अपनाने लगता है। नीति आयोग के सदस्य डॉ. वीके पॉल ने कोरोना के दोनों टीकों को पूर्ण सुरक्षित बताते हुए कहा था कि टीकाकरण के शुरुआती तीन दिनों में लोगों में वैक्सीन के प्रतिकूल प्रभाव के केवल 0.18 प्रतिशत मामले सामने आए थे, जिनमें केवल 0.002 फीसदी ही गंभीर किस्म के थे। अब स्वास्थ्य मंत्रालय का भी कहना है कि वैक्सीन लगवाने के बाद केवल 0.005 फीसदी लोगों को ही अस्पताल में भर्ती कराने की जरूरत पड़ी।
अगर टीका लगने के बाद इसके सामान्य प्रभावों की बात की जाए तो इनमें थकान, सिरदर्द, बुखार, टीके के स्थान पर सूजन या लाली, दर्द, बीमार होने या शरीर में हरारत का अहसास, शरीर व घुटनों में दर्द, जुकाम इत्यादि सामान्य असर हैं। सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल के अनुसार ये सभी लक्षण कुछ ही समय बाद खत्म हो जाते हैं। कुछेक मामलों में टीका लगने के बाद साइड इफैक्ट भी सामने आ सकते हैं। इन साइड इफैक्ट्स में भूख कम हो जाना, पेट में तेज दर्द का अहसास, शरीर में खुजली, बहुत ज्यादा पसीना आना, बेहोशी जैसा महसूस होना, शरीर पर चकते पड़ना, सांस लेने में परेशानी शामिल हैं। हालांकि विशेषज्ञों का कहना है कि इस तरह के साइड इफैक्ट के कुछ अन्य कारण भी हो सकते हैं, जैसे टीके को लेकर तनाव या घबराहट, टीका लगाने के तरीके और रखरखाव में कमी या टीके की गुणवत्ता में किसी तरह की खामी।
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कोरोना वैक्सीन को लेकर कुछ लोगों के मन में जो शंकाएं हैं, उनका समाधान करने का प्रयास करते हुए कुछ विशेषज्ञों ने स्पष्ट किया है कि फिलहाल स्पष्ट रूप से यह तो नहीं कहा जा सकता कि वैक्सीन से किस व्यक्ति में कितने दिन के लिए एंटीबॉडीज बनेंगी लेकिन इतना अवश्य है कि टीके की दोनों डोज लगने के बाद कम से कम 6 माह तक शरीर में एंटीबॉडी मौजूद रहेंगी और अगर इतने समय तक लोगों को कोरोना से सुरक्षा मिल गई तो कोरोना की चेन को आसानी से तोड़ा जा सकता है।
वैक्सीन लगवाने के बाद व्यक्ति को कुछ जरूरी बातों का ध्यान रखना भी अनिवार्य है। कोरोना टीका लगवाने के बाद कम से कम दो महीने तक शराब का सेवन करने से बचें क्योंकि विशेषज्ञों का स्पष्ट तौर पर कहना है कि शराब पीने की लत वैक्सीन के प्रभाव को बेअसर कर सकती है। बहरहाल, कोरोना टीकाकरण अभियान के तहत पहले चरण में तीन करोड़ और दूसरे चरण में इसे 30 करोड़ के लक्ष्य तक ले जाना है और यह लक्ष्य तभी हसिल किया जा सकता है, जब लोगों के मन में टीकाकरण को लेकर उपजे भ्रम को सफलतापूर्वक दूर किया जाए।
-योगेश कुमार गोयल
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं तथा 31 वर्षों से साहित्य एवं पत्रकारिता में सक्रिय हैं। गत वर्ष इनकी ‘प्रदूषण मुक्त सांसें’ तथा ‘जीव जंतुओं का अनोखा संसार’ पुस्तकें प्रकाशित हुई हैं।)
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- रमेश ठाकुर
- फरवरी 23, 2021 13:32
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शबनम को फांसी मिल जाने के बाद एक नई किस्म की बहस हिंदुस्तान में शुरू हो जाएगी। महिला अपराधों के उन सभी केसों में जिरह के दौरान कोर्ट रूमों में शबनम की फांसी का उदाहरण गूंजा करेगा। शबनम की दुहाई देकर वकील महिलाओं को फांसी देने की मांग जजों से किया करेंगे।
कुछ फैसले इतिहास ही नहीं बदलते, बल्कि नया इतिहास रच देते हैं, व्यवस्था को नए सिरे से गढ़ने का भी काम करते हैं। एक फैसले के बाद देश में ऐसा ही कुछ होने जा रहा है। हिंदुस्तान में पहली मर्तबा किसी महिला अपराधी को फांसी दिए जाने के साथ ही आधी आबादी के प्रति सामाजिक और संवैधानिक सोच में यहीं से बदलाव आना शुरू हो जाएगा। कालांतर के पुराने रिवायतों और परंपराओं का इतिहास बदलेगा और उसमें एक नया पन्ना जुड़ेगा जिसमें आजादी के 72 वर्ष बाद किसी महिला को उसके आपराधिक कृत्यों के लिए फांसी की सजा को अमली जामा पहनाया जाएगा। देशभर की निचली व उच्च अदालतों में करीब 42 हजार ऐसे मामले लंबित हैं जिनमें महिलाओं द्वारा किए गये जघन्य अपराध शामिल हैं। उनमें 21 मई 1991 का दिल दहला देने वाला मामला भी है। जब तमिलनाडु के श्रीपेरंबदूर में एक आत्मघाती बम विस्फोट में नलिनी श्रीहरण नाम की महिला ने पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या की थी। अदालत में कई बार उन्हें फांसी देने की मांग हुई, लेकिन उदारता का उन्हें लाभ मिला।
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अमरोहा की शबनम को फांसी मिल जाने के बाद एक नई किस्म की बहस हिंदुस्तान में शुरू हो जाएगी। महिला अपराधों के उन सभी केसों में जिरह के दौरान कोर्ट रूमों में शबनम की फांसी का उदाहरण गूंजा करेगा। शबनम की दुहाई देकर वकील महिलाओं को फांसी देने की मांग जजों से किया करेंगे। कुल मिलाकर शबनम की फांसी एक उदाहरण तो बनेगी ही, साथ ही महिला अपराधियों में डर व महिला अपराध रोकने में काफी हद तक वाहक भी बनेगी। हिंदुस्तान में एक समय था जब बड़े अपराधों में महिलाओं का बोलबाला हुआ करता था। बीहड़ों में फूलन देवी का आतंक हो या सीमा परिहार जैसी दस्यु सुंदरी का ख़ौफ़! शायद ही कोई भूले। वैसे, उतने खौफनाक अपराध बीते कुछ वर्षों में कम हुए। पर, दूसरे किस्म के अपराधों में बाढ़ आ गई। जैसे, प्रॉपर्टी के नाम पर अवैध धंधेबाजी, शादी-ब्याह के नाम पर ठगी, जिस्मफरोशी, स्मैक व नशीले पदार्थ बेचना, मेट्रो या सार्वजनिक स्थानों पर पॉकेटमारी करने में महिलाओं की सक्रियता ज्यादा आने लगी है।
महिलाओं से जुड़े छोटे अपराधों को छोड़कर बड़े अपराधों की बात करें तो सोनू पंजाबन, शबाना मेमन, रेशमा मेमन, अंजलि माकन, शोभा अय्यर, समीरा जुमानी के नामों को भी शायद कोई भूल पाए। इनमें कई नाम ऐसे हैं जिनका अपराध फांसी के लायक रहा है। लेकिन भारत के उदार सिस्टम से ये बच गईं। या फिर इन्हें बचा लिया गया। शबाना और रेशमा मुंबई बम कांड की अभियुक्त हैं जो दोनों क्रमश: अयूब मेमन व टाइगर मेमन की पत्नियाँ हैं। समीरा जुमानी जहां पासपोर्ट रैकेट की अभियुक्त है वहीं, अंजलि माकन का बैंक से करोड़ों का चूना लगाकर फरार हो जाना और शोभा अय्यर का प्लेसमेंट एजेंसी की आड़ में बेरोजगारों को रोज़गार दिलाने के नाम पर अरबों लेकर चंपत हो जाना आदि भी बड़े अपराध हैं।
आजादी से अब तक खुदा-न-खास्ता किसी महिलाओं को फांसी दी गई होती, तो निश्चित रूप से राजीव गांधी जैसी नेताओं की कातिल अभी तक फांसी के तख्तों पर झूल गईं होती। अमरोहा की शबनम ने साल 2008 के अप्रैल महीने में प्रेमी के सहयोग से अपने समूचे परिवार को मौत दे दी थी। कुल्हाड़ी से काटते वक्त उसे रत्ती भर रहम नहीं आया कि वह अपनों का ही खून बहा रही है। अपराध निश्चित रूप से दया करने वाला नहीं है। अपने प्यार को पाने के लिए वह अपनों की कैसे बैरन बनी, जिसका खुलासा उसने घटना के कुछ समय पश्चात किया भी और अपराध बोध भी हुआ, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी। उसके अपराध ने एक दुनिया का अंत किया था। 12-13 साल केस निचली अदालत से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक हिचकोले मारता रहा। दया याचिका राष्ट्रपति के चौखट तक भी पहुंची, लेकिन कोर्ट द्वारा मुर्करर फांसी बरकरार रही। फांसी देने का रास्ता लगभग साफ है।
शबनम को शायद उत्तर प्रदेश के मथुरा में बने उसी फांसीघर में ही फांसी दी जाएगी जो बीते डेढ़ सौ वर्षों से अपने पहले मेहमान का इंतजार कर रहा है। फांसीघर का लंबा इंतजार शायद शबनम ही पूरा करेगी। अंग्रेजी हुक़ूमत ने वर्ष 1871 में मथुरा में पहला महिला फांसीघर बनाया था। आजादी की लड़ाई लड़ने वाली तब कई महिला क्रांतिकारियों को फांसी देना अंग्रेजों ने मुर्करर किया था, लेकिन महात्मा गांधी व अन्य नेताओं के विरोध के बाद अंग्रेज किसी महिला को फांसी नहीं दे पाए। उस फांसी घर का शायद पहली बार इस्तेमाल होगा। शबनम को फांसी देने की तारीख अभी तय नहीं हुई है। ना ही कोई अंतिम आदेश आया है। लेकिन तय है कि फांसी उसी घर में दी जाएगी। जल्लाद पवन का फांसीघर के आसपास चहलकदमी करना बताता है कि फांसी देर-सबेर कभी भी हो सकती है। जेल प्रशासन की तैयारी पूरी है। बस इंतजार अंतिम डेथ वारंट का है।
ग़ौरतलब है कि समाज की संवेदनाएं, उदारता और विनम्र-आदरभाव हमेशा महिलाओं के प्रति औरों से ज्यादा रहा है। ऐसा दौर जब महिलाएं विभिन्न गतिविधियों जैसे- शिक्षा, राजनीति, मीडिया, कला और संस्कृति, सेवा क्षेत्र, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी में विजय पताका फहरा रही हैं, तब एक अपराधी महिला को सूली पर चढ़ाने की तैयारी हो रही हो। निश्चित रूप से ह्दय में पीड़ा है, लेकिन अपराध माफी का भी तो नहीं है। ऐसे केसों में उदारता दिखाने का मतलब है, दूसरे केसों को बढ़ावा देना, अपराधियों को निडर बनाना। सजा की व्यवस्था सभी श्रेणियों में समानान्तर रूप से वकालत करती है फिर चाहे पुरूष हो या महिला। ये फांसी महिलाओं को अपराध न करने की सीख देने के साथ-साथ बदलाव को सुधरने का वाहक भी बनेगी।
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नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों पर नजर डाले तो दिखता है कि महिलाएं अपराध जगत में कितनी तेजी से बढ़ रही हैं। सिर्फ एक वर्ष में महाराष्ट्र में 90,884 महिलाओं को विभिन्न अपराधों में पकड़ा गया। वहीं, आंध्र प्रदेश अव्वल नंबर पर है जहां 57,406 महिलाओं ने विभिन्न श्रेणियों में अपराध किया। मध्य प्रदेश भी पीछे नहीं है, वहां भी 49,333 महिलाएं विभिन्न आरोपों में गिरफ्तार हुईं। दिल्ली, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, पंजाब व अन्य राज्य भी पीछे नहीं हैं। क़ाबिले गौर हो कि नारी जगत का अपराध में पैर पसारना चिंता का विषय है। वक्त रहते शासन-प्रशासन व नीति-निर्माताओं को इस तरफ ध्यान देना होगा। महिला अपराधों में उदारता और लचीलापन नहीं दिखाना चाहिए। शबनम जैसे और भी बहुतेरी घटनाएँ विभिन्न राज्यों में घटीं। उन सभी केसों में ये फांसी संबल देगी। साथ ही ऐसी सजा महिलाओं के भीतर डर पैदा करेगी और सफल संदेश का वाहक भी बनेगी।
-डॉ. रमेश ठाकुर
(लेखक केंद्रीय जनसहयोग एवं बाल विकास संस्था, भारत सरकार के सदस्य हैं।)
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- डॉ. वेदप्रताप वैदिक
- फरवरी 22, 2021 14:24
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श्रीधरनजी से मेरा सवाल यह है कि राजनीति के कीचड़ में कूद कर क्या वे देश का ज्यादा भला कर सकेंगे? उन्होंने जिन प्रदेशों में मेट्रो और रेल बनाई और नाम कमाया, उनमें क्या उस समय भाजपा की सरकारें थीं ? उनके लिए तो सभी पार्टियां बराबर हैं।
मेट्रो मैन ई. श्रीधरन को देश में कौन नहीं जानता ? जितने भी पढ़े-लिखे और समझदार लोग हैं, उन्हें पता है कि दिल्ली, कोलकाता और कोंकण में मेट्रो और रेल लाइन का चमत्कार कर दिखाने वाले सज्जन का नाम क्या है। दिल्ली की मेट्रो ऐसी है, जैसी कि दुनिया की कोई भी मेट्रो है। मैंने अमेरिका, रूस, ब्रिटेन, फ्रांस, जापान आदि की मेट्रो-रेलों में कई बार यात्राएं की हैं। बस, जापानी मेट्रो की तेज गति को छोड़ दें तो भारत की मेट्रो शायद दुनिया की सबसे बढ़िया मेट्रो मानी जाएगी। इसका श्रेय उसके चीफ इंजीनियर श्री श्रीधरन को है। अब वे भाजपा में आ गये हैं। राजनीति में उनका यह प्रवेश उनकी मर्जी से हो रहा है। उन पर किसी का कोई दबाव नहीं है।
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उन्होंने जब तक सरकारी नौकरी की, तब तक उनका जीवन इतना स्वच्छ रहा है कि उन्हें किसी आरोप से बचने के लिए किसी सत्तारुढ़ पार्टी की शरण में जाने की जरूरत भी नहीं है। फिर भी 88 साल की आयु में वे भाजपा में क्यों शामिल हुए ? उनका कहना है कि वे केरल में रहते हैं और वहां की कम्युनिस्ट सरकार ठीक से काम नहीं कर रही है। मई-जून में होने वाले प्रांतीय चुनाव में वह हारेगी। वे चुनाव भी लड़ेंगे। श्रीधरनजी से मेरा सवाल यह है कि राजनीति के कीचड़ में कूद कर क्या वे देश का ज्यादा भला कर सकेंगे? उन्होंने जिन प्रदेशों में मेट्रो और रेल बनाई और नाम कमाया, उनमें क्या उस समय भाजपा की सरकारें थीं ? उनके लिए तो सभी पार्टियां बराबर हैं। वे अपने आपको किसी एक पार्टी की जंजीर में क्या जकड़ रहे हैं ? वे तो सबके लिए समान रूप से सम्मानीय हैं। उनका सम्मान देश के किसी भी नेता से कम नहीं है।
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देश और दुनिया के कई बड़े से बड़े नेताओं को हमने कुर्सी छोड़ते ही इतिहास के कूड़ेदान में पड़े पाया है। श्रीधरनजी जैसे लोग यदि उनकी श्रेणी में शुमार होने लगें तो हमें अफसोस ही होगा। इससे बड़ा सवाल यह है कि भाजपा को यह कौन-सा ताजा बुखार चढ़ा है ? सर्वश्री लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, शांता कुमार, सुमित्रा महाजन जैसे निष्कलंक और दिग्गज भाजपा नेताओं को तो आपने घर बिठा दिया है, क्योंकि वे 75 साल से ज्यादा के हैं तो मैं पूछता हूं कि भाई-लोग, आप गणित भूल गए क्या ? क्या 88 का आंकड़ा 75 से कम होता है ? श्रीधरनजी के कंधे पर सवार भाजपा को केरल में वोट तो ज्यादा जरूर मिलेंगे लेकिन उनका कद छोटा हो जाएगा। एक राष्ट्रीय धरोहर, पार्टी-पूंजी बन जाएगी।
-डॉ. वेदप्रताप वैदिक

