कृष्णा अल्लावरु को हटा कर क्या राहुल गांधी ने फिर से बड़ी गलती कर दी?

Rahul Gandhi
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देश के सबसे पुराने राजनीतिक दल कांग्रेस पार्टी को आज भी राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा मिला हुआ है। लेकिन जिस उत्तर प्रदेश और बिहार के बल पर कांग्रेस ने कई दशकों तक देश पर राज किया है,उन दोनों ही राज्यों में पिछले कई दशकों से कांग्रेस मजबूत नहीं हो पा रही है।

बिहार में लंबे समय तक चले राजनीतिक बवाल के बाद आखिरकार कांग्रेस ने औपचारिक रूप से आरजेडी नेता तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित कर दिया है। लेकिन इस बात का औपचारिक ऐलान कांग्रेस की तरफ से राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने या राहुल गांधी ने नहीं किया। यहां तक कि राहुल गांधी के करीबी एवं बिहार कांग्रेस के प्रभारी कृष्णा अल्लावरु या बिहार कांग्रेस अध्यक्ष राजेश राम से भी यह ऐलान नहीं करवाया गया। बल्कि तेजस्वी यादव को नेता मानने का ऐलान करने के लिए कांग्रेस पार्टी ने पुरानी पीढ़ी के बुजुर्ग नेता अशोक गहलोत को बिहार की राजधानी पटना भेजा। 

यहां तक तो कांग्रेस की रणनीति ठीक नजर आ रही है। गुरुवार को पटना में इंडिया गठबंधन की संयुक्त प्रेस कांफ्रेंस हुई, जिसमें अशोक गहलोत ने खुलकर तेजस्वी यादव को इंडिया गठबंधन की तरफ से मुख्यमंत्री पद का दावेदार घोषित कर दिया। उसके बाद गहलोत और तेजस्वी, दोनों ने ही बीजेपी के स्टाइल में ही बीजेपी को घेरते हुए यह सवाल भी पूछ डाला कि अब एनडीए गठबंधन को यह बताना चाहिए कि उनका मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार कौन है ? 

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लेकिन इस संयुक्त प्रेस कांफ्रेंस के कुछ ही घंटे बाद कांग्रेस खेमे से आई एक बड़ी ख़बर ने सबको चौंका दिया। कांग्रेस के राष्ट्रीय संगठन महासचिव के सी वेणुगोपाल के हस्ताक्षर से जारी एक आधिकारिक पत्र के जरिए यह बताया गया कि, कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष ने तत्काल प्रभाव से मनीष शर्मा को कांग्रेस के युवा विंग इंडियन यूथ कांग्रेस- IYC का प्रभारी नियुक्त कर दिया है। अर्थात कांग्रेस ने बिहार में पार्टी संगठन को फिर से खड़ा करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले कृष्णा अल्लावरु को यूथ कांग्रेस के प्रभारी पद से हटा कर मनीष शर्मा को इसकी जिम्मेदारी सौंप दी है। हालांकि कृष्णा अल्लावरु को अभी भी बिहार कांग्रेस प्रभारी के पद से नहीं हटाया गया है लेकिन यूथ कांग्रेस के प्रभारी के पद से उनकी विदाई को लालू यादव और तेजस्वी यादव की नाराजगी का परिणाम माना जा रहा है। 

इससे पहले, गठबंधन में मामला बिगड़ जाने के बाद कांग्रेस पार्टी ने अशोक गहलोत को पटना भेजा। गहलोत,कृष्णा अल्लावरु के साथ ही बातचीत करने के लिए राबड़ी देवी के आवास पर गए। लेकिन बताया जा रहा है कि लालू यादव ने कृष्णा अल्लावरु को अपने कमरे में घुसने तक नहीं दिया। मुलाकात के बाद जो तस्वीरें निकल कर बाहर आई, उसमें भी लालू यादव, राबड़ी देवी और तेजस्वी यादव से अकेले अशोक गहलोत ही बात करते हुए नजर आ रहे हैं। संयुक्त प्रेस कांफ्रेंस में भी तेजस्वी यादव ने सबसे आखिर में कृष्णा अल्लावरु का नाम लेकर यह साबित कर दिया कि उनके मन में कितनी गहरी नाराजगी है। 

पटना में हुए राजनीतिक घटनाक्रम और अल्लावरु की विदाई ने एक बार फिर से राहुल गांधी को लेकर कई तरह के सवाल खड़े कर दिए है। गठबंधन को बचाने के लिए अशोक गहलोत जैसे बुजुर्ग नेता को भेजकर जाने-अनजाने कांग्रेस की बुजुर्ग ब्रिगेड ने एक बार फिर से यह साबित कर दिया है कि संकट की घड़ी में राहुल गांधी की युवा टीम हमेशा फेल हो जाती है। इससे यह भी साबित होता हुआ नजर आता है कि राहुल गांधी आखिर तक अड़ कर अपने नेताओं को प्रोटेक्ट नहीं कर पाते हैं।

दरअसल, देश के सबसे पुराने राजनीतिक दल कांग्रेस पार्टी को आज भी राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा मिला हुआ है। लेकिन जिस उत्तर प्रदेश और बिहार के बल पर कांग्रेस ने कई दशकों तक देश पर राज किया है,उन दोनों ही राज्यों में पिछले कई दशकों से कांग्रेस मजबूत नहीं हो पा रही है। ऐसे में बीजेपी के नेतृत्व वाले एनडीए गठबंधन को हराने के लिए सोनिया गांधी ने एक जमाने में यूपीए का गठन किया था और मनमोहन सिंह के नेतृत्व में 10 वर्षों तक सरकार भी चलाई थी। वर्ष 2014 में मनमोहन सरकार की विदाई और नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद से ही कांग्रेस लगातार हार रही है। वर्ष 2024 में हुए लोकसभा चुनाव से पहले कांग्रेस पार्टी ने विपक्षी दलों को साथ लेकर इंडिया गठबंधन बनाया। लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने 99 सीटों पर तो जीत दर्ज की है लेकिन साथ ही उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की पार्टी के शानदार प्रदर्शन के बल पर बीजेपी को 240 पर रोकने में भी कामयाब हो गए। हालांकि इसके बावजूद भी कांग्रेस पार्टी नरेंद्र मोदी को लगातार तीसरी बार देश का प्रधानमंत्री बनने से नहीं रोक पाई। 

लोकसभा चुनाव 2024 के नतीजों ने एक बार फिर से यह साबित कर दिया कि केंद्र की सत्ता में आने के लिए कांग्रेस को कम से कम अकेले 130 लोकसभा सीटों पर जीत हासिल करनी ही होगी और इतनी सीटें उत्तर प्रदेश-बिहार के बिना ला पाना कांग्रेस के लिए संभव नहीं है। शायद इसी लक्ष्य को ध्यान में रखते हुए जनवरी 2025 में राहुल गांधी बिहार गए थे और उसके बाद से ही वह लगातार बिहार जा रहे हैं। बिहार में कांग्रेस पार्टी को अपने पैरों पर खड़ा करने के लिए उन्होंने प्रदेश प्रभारी को हटा कर अपने करीबी नेता कृष्णा अल्लावरु को प्रदेश प्रभारी बनाया। आरजेडी समर्थक माने जाने वाले अखिलेश प्रसाद सिंह को हटा कर राजेश राम को प्रदेश अध्यक्ष बनाया। राहुल गांधी के निर्देश के मुताबिक ही, कृष्णा अल्लावरु ने बिहार में कांग्रेस को आरजेडी की छाया से निकाल कर एक अलग पहचान दी। पत्रकारों द्वारा राजद की बी टीम होने के बारे में बार-बार पूछे गए सवालों के जवाब में सधे हुए अंदाज में यही कहते हुए नजर आए कि कांग्रेस बिहार में जनता की ए टीम बन कर काम करेगी। जाहिर सी बात है कि सिर्फ बिहार के बल पर अपनी राजनीति करने वाले आरजेडी को कांग्रेस की यह मजबूती भला क्यों पसंद आती? तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित करना गठबंधन के लिए जरूरी तो माना जा सकता है लेकिन मर्जी आलाकमान की और बात बिगड़ने पर कार्रवाई सिपाही के खिलाफ! ऐसा करके कांग्रेस ने एक बार फिर से बिहार में न केवल पुरानी कहानी दोहरा दी है बल्कि इंडिया गठबंधन में शामिल अन्य क्षेत्रीय दलों के सामने भी अपनी कमजोरी जाहिर कर दी है। 

- संतोष कुमार पाठक

लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं राजनीतिक विश्लेषक हैं।

(इस लेख में लेखक के अपने विचार हैं।)
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