सड़कों पर बवाल मचाने की बजाय अदालत जाये करणी सेना
अगर करणी सेना को लगता है कि फिल्म में इतिहास से किसी तरह की छेड़छाड़ की गई है तो उसे अदालत का दरवाजा खटखटाना चाहिए। इस तरह सड़कों पर उतरकर बवाल मचाने से कुछ हासिल नहीं होने वाला।
अभी संजय लीला भंसाली की फिल्म 'पद्मावती' पर्दे पर नहीं आई है...लेकिन इसे लेकर पूरे देश में घमासान मचा है। गुजरात से लेकर राजस्थान तक राजपूत करणी सेना के लोग फिल्म की रिलीज के खिलाफ सड़कों पर उतर आए हैं। कहीं-कहीं इन्हें वीएचपी और बजरंग दल के लोगों का भी साथ मिल रहा है। करणी सेना के मुखिया ने यहां तक धमकी दी डाली कि जिन थियेटरों में फिल्म दिखाई जाएगी उसमें वो आग लगा देंगे। सवाल उठता है कि आखिर इस फिल्म में ऐसा क्या है जिसे लेकर इतना बवाल उठ खड़ा हुआ है?
दरअसल राजपूत करणी सेना को संजय लीला भंसाली की फिल्म में अलाउद्दीन खिलजी और रानी पद्मावती के बीच कथित रूप से फिल्माए लव सीन को लेकर आपत्ति है। प्रदर्शनकारियों का ये भी आरोप है कि इस फिल्म में राजपूत समाज के इतिहास को तोड़-मरोड़ कर पेश किया जा रहा है। हमें सबसे ज्यादा हैरानी इस बात को लेकर हो रही है कि आखिर बिना फिल्म देखे कोई इसका विरोध कैसे कर सकता है? अपनी फिल्म पर मचे बवाल पर कुछ दिनों पहले ही संजय लीला भंसाली ने सफाई दी थी। भंसाली ने सोशल मीडिया पर वीडियो जारी कर कहा था कि उन्होंने राजपूतों की मान-मर्यादा का पूरा ख्याल रखा है। फिल्मकार ने साफ कर दिया कि उन्होंने बहुत मेहनत और ईमानदारी से फिल्म बनाई है और इसमें ऐसा कोई सीन नहीं है जो किसी की भावनाओं को ठेस पहुंचाता हो।
अफसोस भंसाली की अपील का कोई असर नहीं हुआ..उधर सूरत में एक मॉल में 'पद्मावती' पर बनी रंगोली मिटाने के बाद फिल्म की अभिनेत्री दीपिका पादुकोण इस कदर नाराज हुईं कि उन्होंने सीधे-सीधे सूचना और प्रसारण मंत्री स्मृति ईरानी पर निशाना साध दिया। लेकिन पद्मावती पर असली जंग तब शुरु हो गई जब कुछ सियासतदान इस विवाद में कूद पड़े। केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ने यहां तक कह डाला कि अगर भंसाली में हिम्मत है तो वो दूसरे धर्मों पर फिल्म बनाकर दिखाएं।
बॉलीवुड में ये पहला वाकया नहीं है जब किसी फिल्म को लेकर इतना बवाल मचा हो। हमारे यहां कुछ लोग इतिहास से जुड़े किरदारों या किसी घटना पर आधारित फिल्मों का हमेशा से विरोध करते आ रहे हैं। आपको याद होगा 2015 में पर्दे पर आई संजय लीला भंसाली की फिल्म 'बाजीराव मस्तानी' की रिलीज के समय भी पुणे में जमकर विरोध हुआ था। कुछ ऐसा ही विवाद भंसाली की फिल्म 'रामलीला' के नाम को लेकर भी हुआ था। भंसाली से पहले और भी कई फिल्मकार बिना वजह लोगों के गुस्से का शिकार बन चुके हैं। राजपूत करणी सेना ने आशुतोष गोवारिकर की फिल्म 'जोधा अकबर' का भी ये कहकर विरोध किया था कि इसमें इतिहास से छेड़छाड़ की गई है।
ऐसा नहीं है कि सिर्फ इतिहास से जुड़े किरदारों पर बनी फिल्मों का ही विरोध हुआ है...रिलीज से पहले 'उड़ता पंजाब' के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ था...लेकिन जैसे ही फिल्म पर्दे पर आई लोगों का गुस्सा शांत हो गया। अलंकृता श्रीवास्तव की फिल्म ''लिपस्टिक अंडर माई बुर्का’ पर भी काफी बवाल मचा था। बाद में अदालत के दखल के बाद ये फिल्म रिलीज हो सकी थी।
अगर बॉलीवुड के इतिहास पर नजर डालें तो ऐसी कई फिल्में हैं जो रिलीज से पहले विवादों में रह चुकी थीं। कभी किसी किरदार को लेकर, कभी किसी डॉयलाग को लेकर तो कभी किसी गाने को लेकर....सेंसर बोर्ड से सर्टिफिकेट मिलने के बाद भी कई फिल्मों का जोरदार विरोध हुआ। कुछ लोगों का तो ये भी मानना है कि बॉलीवुड में किसी बड़ी फिल्म का विरोध होना उसकी सफलता की गारंटी माना जाता है। फिल्म में दम हो या नहीं अगर उसे लेकर विवाद हुआ है तो लोगों में उसे देखने की जिज्ञासा बढ़ जाती है। कुछ फिल्मकारों पर अपनी फिल्म को लेकर जानबूझकर विवाद खड़ा करने का भी आरोप लगता रहा है। खैर मैं इस बहस में नहीं पड़ना चाहता...मेरे हिसाब से किसी फिल्मकार को इतनी आजादी होनी चाहिए कि वो अपने काम को दुनिया तक पहुंचा सके...अगर करणी सेना को लगता है कि फिल्म में इतिहास से किसी तरह की छेड़छाड़ की गई है तो उसे अदालत का दरवाजा खटखटाना चाहिए। इस तरह सड़कों पर उतरकर बवाल मचाने से कुछ हासिल नहीं होने वाला।
मनोज झा
(लेखक एक टीवी चैनल में वरिष्ठ पत्रकार हैं।)
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