वोटबैंक की राजनीति करने वाले क्या समझेंगे मुस्लिम महिलाओं की यह खुशी

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प्रभात झा । Aug 12 2019 3:19PM

1986 और 2019 में क्या अंतर है? आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हैं। सरकार मुस्लिम माताओं-बहनों के साथ खड़ी है। आज पूरा समाज उनके साथ खड़ा है। उस समय शाहबानो अकेले थी। न राजीव गांधी सरकार का उन्हें साथ मिला और न उस समय के समाज का।

तत्कालीन जनसंघ और वर्तमान भाजपा पर सदैव, नेहरूजी से लेकर सभी कांग्रेसियों ने, इस कदर साम्प्रदायिक आरोप लगाया कि देश के मुस्लिमों के मन में कांग्रेस यह बात बिठाने में सफल रही कि भाजपा उनकी सबसे बड़ी दुश्मन है। जबकि यह सर्वथा गलत था और आज भी गलत है। अपनी विचारधारा की अगुवाई करने का अर्थ यह नहीं है कि हम किसी अन्य विचारधारा का विरोध कर रहे हैं। भाजपा के सर्वोच्च नेता ने भारत के राष्ट्रपति के लिए सबसे पहले अपने कार्यकाल में जिस व्यक्तित्व का नाम प्रस्तावित किया वह नाम था डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम। आप भाजपा को मुस्लिम विरोधी कैसे कह सकते हो। हां, यह सत्य है कि जो लोग भारत में रहते हुए पाकिस्तान जिंदाबाद या भारत माता मुर्दाबाद कहते हैं, भाजपा उसका कल भी विरोध करती थी और आगे भी करती रहेगी।

शाहबानो प्रकरण किसी से छुपा नहीं है। कांग्रेस ने वोट बैंक की राजनीति के लिए संसद से क़ानून बनाया। संसद का क़ानून वोट के लिए नहीं बल्कि देश के नागरिकों के लिए होना चाहिए। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तीन तलाक पर विधेयक लाकर करोड़ों मुस्लिम महिलायें, जो 'तीन तलाक' शब्द के बाद जीवित रहते हुए लाश हो जाती थीं, उन महिलाओं की जिंदगी में एक नया सवेरा लाने का प्रयास किया है। अगर भाजपा मुस्लिम विरोधी होती तो संसद में 'तीन तलाक विधेयक' पारित कर मुस्लिम महिलाओं के जीवन के लिए सुरक्षा की ढाल बनकर खड़ी नहीं होती।

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तीन तलाक विधेयक का पारित होना महिला सशक्तिकरण की दिशा में बहुत बड़ा कदम है। कई दलों के विरोध के बावजूद सरकार तीसरे प्रयास में संसद से इस विधेयक को पारित कराने में सफल रही है। नए जनादेश के बाद हम उत्साह और संकल्प के साथ इस विधेयक को लेकर आये। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी इसे लेकर दृढ़ प्रतिज्ञ थे। हमारे कानून मंत्री की प्रतिबद्धता थी। 

हमें समझना होगा। इतिहास के पन्नों को उलटना होगा। 1908 की बात है। 'आमिर अली' प्रिवी कौंसिल के जज थे, बाद में बंगाल हाई कोर्ट (कलकत्ता हाई कोर्ट) में नियुक्त हुए। उन्होंने एक किताब लिखी ''Commentaries on Mohammedan Law''। पुस्तक के 12-13 संस्करण आ चुके हैं। संसद में कानून मंत्री ने स्पष्ट करते हुए कहा था कि अपने किताब में 'आमिर अली ने लिखा है कि प्रोफेट मोहम्मद साहब ने तलाक को स्वीकृति प्रदान नहीं की और तीन तलाक को खुदा के शब्दों से खिलवाड़ माना गया है। जब हजारों साल पहले प्रोफेट मोहम्मद साहब, जिनका एक-एक शब्द मुस्लिम धर्म में आखिरी शब्द है, ने तीन तलाक को अनैतिक, अधार्मिक और अस्वीकार्य माना, इसे वैधता कैसे दी जा सकती थी।  

   

सवाल उठता है कि जब सती प्रथा, बाल विवाह, दहेज़ प्रथा जैसी बुराइयों को समाप्त करने के लिए क़ानून बनाया जा सकता है तो तीन तलाक जैसी बुराई को समाप्त करने के लिए लिए कानून बनाने को लेकर इतनी हाय तौबा क्यों ?

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पांच-छह दशक तक देश में कांग्रेस का शासन रहा। 1986 के शाहबानो केस में सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलटने के राजीव गांधी सरकार के फैसले की सजा आज तक मुस्लिम माताओं-बहनों को भुगतनी पड़ रही है। हिन्दू विवाह कानून (1955) लाने में कांग्रेस ने तत्परता दिखाई। हम उसे सही ठहराते हैं। हम प्रगतिशील हिन्दू समाज चाहते हैं। लेकिन वो तत्परता 1986 में कहां चली गई। कांग्रेस ने वोट बैंक की राजनीति के लिए सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलट कर देश की मुस्लिम माताओं-बहनों के साथ 1986 में जो अन्याय किया है, वह अक्षम्य है।

  

क़ानून के बिना पुलिस तीन तलाक से पीड़ित महिलाओं की शिकायत सुनने के लिए तैयार नहीं थी। आखिर मुस्लिम समाज की माताओं-बहनों के लिए न्याय पर ही सवाल क्यों उठते हैं, यही सवाल शाहबानो केस में 1986 में उठे थे। कांग्रेस की सरकार थी और प्रधानमंत्री राजीव गांधी थे। शाहबानो केस में संविधान के शासन को चुनौती दी गई। 400 से अधिक सीटों के साथ बहुमत वाली सरकार ने न्याय के दरवाजे से आये निर्णय को वोट बैंक की राजनीति की बलि चढ़ा दिया। 1986 के इसी शाहबानो प्रकरण को लेकर आरिफ मोहम्मद खान ने तत्कालीन राजीव गांधी सरकार में मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था, तथा मुस्लिम समाज में नई सोच के प्रसार और उसे कट्टरपंथियों के शिकंजे से बाहर लाने के अभियान में लग गए। यहां गौरतलब है कि 1986 के बाद कांग्रेस कभी बहुमत में भी नहीं आ पाई। इस बात को भी समझना होगा।

   

2017 में 'शायरा बानो' का केस आया। सुप्रीम कोर्ट का फैसला आया। उत्तराखंड की शायरा बानो की याचिका पर कोर्ट ने यह फैसला सुनाया था। शायरा को उनके पति ने तीन बार तलाक लिख कर चिट्ठी भेजी थी, जिसके बाद उन्होंने कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। तब शायरा की याचिका के साथ चार और मुस्लिम महिलाओं की ऐसी ही याचिकाएं जोड़ दी गई थीं।

  

सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की बेंच ने तीन फैसले दिए। जस्टिस नरीमन और जस्टिस ललित ने तीन तलाक को असंवैधानिक और गैर कानूनी माना। जस्टिस कुरियन ने कहा कि कुरान शरीफ में तीन तलाक को गलत माना गया है। उन्होंने कहा कि जो शरियत में गलत है, वह क़ानून में सही कैसे हो सकता है। वहीं तत्कालीन चीफ जस्टिस और जस्टिस नजीर ने कहा कि तीन तलाक शरिया का इंटीग्रल पार्ट है, लेकिन इस पर कानून बनना चाहिए क्योंकि दुनिया के कई इस्लामिक देशों ने विस्तार से शरिया को बदला है और तीन तलाक को भी कानून द्वारा प्रतिबंधित किया गया है।

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ट्यूनीशिया, अल्जीरिया, मलेशिया, जोर्डन, मिस्त्र, ब्रूनेई, संयुक्त अरब अमीरात, इंडोनेशिया, लीबिया, सूडान, लेबनान, सऊदी अरब, मोरोक्को और कुवैत जैसे इस्लामिक देशों में तीन तलाक पर प्रतिबन्ध है। यहां तक कि हमारे पड़ोसी इस्लामिक देश बंगलादेश और पकिस्तान में भी तीन तलाक पर रोक है। 1962 में पाकिस्तान ने तीन तलाक़ को अवैध घोषित किया लेकिन दंडनीय अपराध नहीं बनाया, जिसके परिणामस्वरूप तीन तलाक़ पर नियंत्रण नहीं हो सका। लेकिन पाकिस्तान में फिर से तीन तलाक़ को अवैध घोषित करने वाले प्रस्ताव को दुबारा पारित किया है, जिसमें भारत के सुप्रीम कोर्ट के निर्णय को सन्दर्भ में लिया है।

    

2017 में सुप्रीम कोर्ट का निर्णय आया। उस समय भाजपा-एनडीए की सरकार थी, नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री थे, उस समय विधेयक लाया गया। लोकसभा से भी पारित हुआ, लेकिन विपक्ष की राजनीति के कारण क़ानून नहीं बन पाया। जनवरी 2017 से लेकर 24 जुलाई 2019 तक तीन तलाक के 574 मामले आये हैं, जबकि सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद 24 जुलाई 2019 तक 345 मामले आये हैं।  

मई 2019 में जो लोकसभा का चुनाव हुआ मुस्लिम महिलाओं ने धर्म से ऊपर उठकर, वोट की राजनीति को धत्ता बताकर भाजपा-एनडीए की सरकार लाने में अहम भूमिका निभाई। परिणाम सामने है, भाजपा- एनडीए की सरकार पहले से अधिक बहुमत के साथ आई और नरेंद्र मोदी पुनः प्रधानमंत्री बने। इस बार पहले सत्र में ही लोकसभा और राज्यसभा से तील तलाक को प्रतिबंधित करने वाला विधेयक 'मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) विधेयक 2019' पारित हो गया, राष्ट्रपति जी ने हस्ताक्षर कर दिए और अब तीन तलाक देश में गैर कानूनी हो गया है।

1986 और 2019 में क्या अंतर है? आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हैं। भाजपा-एनडीए की सरकार है। सरकार मुस्लिम माताओं-बहनों के साथ खड़ी है। आज पूरा समाज उनके साथ खड़ा है। उस समय शाहबानो अकेले थी। न राजीव गांधी सरकार का उन्हें साथ मिला और न उस समय के समाज का। तीन तलाक क़ानून आज का सत्य है। लेकिन 2019 में भी कांग्रेस का स्वर 1986 के शाहबानो वाला ही रहा। यही कारण है कि कांग्रेस आज राष्ट्रीय पार्टी से क्षेत्रीय पार्टी बनकर रह गई है। एक समय कांग्रेस इतिहास बन कर रह जाए तो कोई आश्चर्य नहीं होगा। कांग्रेस अपने किये की सजा भुगत रही है।

  

आज तीन तलाक देना देश में कानूनी अपराध बन चुका है। पीड़ित मुस्लिम माताओं-बहनों को न्याय मिलना शुरू हो गया है। न्याय का यह अध्याय, संसदीय इतिहास का वह महत्वपूर्ण दिन, जब लोकसभा और राज्य सभा से विधेयक पारित हुआ, भारत के इतिहास में देश की मुस्लिम महिलाओं के आंसू पोछने और न्याय दिलाने के दस्तावेज और तारीख के रूप में जाना जाएगा। मुस्लिम माताओं-बहनों को न्याय दिलाने में भाजपा-एनडीए की सरकार और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जो योगदान दिया है, 'लोकतंत्र और न्याय' के इतिहास की एक गौरवपूर्ण तिथि के रूप में जानी जायेगी।

-प्रभात झा 

सांसद (राज्य सभा)

एवं भाजपा राष्ट्रीय उपाध्यक्ष

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