रेनकोट बोलने से तुझको मिर्ची लगी तो मैं क्या करूं...

मनोज झा । Feb 16 2017 10:05AM

भारत के संसदीय इतिहास में स्वस्थ वाद-विवाद की परंपरा रही है लेकिन कभी-कभी चर्चा में ह्यूमर का होना भी जरूरी है। बीजेपी के लोग तो यही कह रहे हैं कि कांग्रेस को मिर्ची लगी तो हम क्या करें?

अपने विरोधी पर कब, कहां और कैसे वार करना है ये कला प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से बेहतर कोई नहीं जानता। संसद में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर चर्चा के दौरान मोदी ने जैसे ही ये कहा कि बाथरूम में 'रेनकोट' पहनकर नहाने की कला कोई डॉक्टर साहेब से सीखे...कांग्रेस तिलमिला उठी। कांग्रेस का अपने पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के लिए इस कदर प्रेम जागा कि उसने आसमान सिर पर उठा लिया।

मोदी के बयान से बौखलाई कांग्रेस ने प्रधानमंत्री से माफी की मांग कर डाली, उधर राहुल और उनके जीजा वाड्रा ने मोदी के बयान को शर्मनाक करार दे डाला। मैं ना ही मोदी का प्रशंसक हूं ना ही बीजेपी का...लेकिन मैं कांग्रेस और दूसरे विपक्षी दलों से पूछना चाहता हूं कि क्या संसद में इस तरह का ये पहला वाकया था।

मुझे याद है एनडीए के शासनकाल में जब अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार थी तब संसद में बहस के दौरान सत्ता पक्ष और विपक्ष के लोग एक-दूसरे पर टिप्पणी करने से बाज नहीं आते थे। क्या उस समय संसद या किसी नेता का अपमान नहीं होता था। 

मोदी के बयान पर हल्ला मचाने वाले कांग्रेस नेताओं से पूछा जाए कि जब 2009 में बेनी प्रसाद वर्मा ने लिब्रहान आयोग की रिपोर्ट को लेकर पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के खिलाफ अभद्र टिप्पणी की थी तब वो खामोश क्यों थी। 

साल 2007 को याद कीजिए...जब गुजरात विधानसभा चुनाव के दौरान भरी सभा में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने मोदी को 'मौत का सौदागार' कहकर बुलाया था। ये बात अलग है कि सोनिया के इसी शब्द को हथियार के तौर पर इस्तेमाल कर मोदी फिर से सत्ता पर काबिज हो गए।

कांग्रेस बताए उसने अपने नेता इमरान मसूद का क्या किया जिसने पीएम पद के उम्मीदवार मोदी के टुकड़े-टुकड़े कर देने की बात कही थी। कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने जब मोदी को भस्मासुर बताया उस समय कांग्रेस चुप क्यों थी...सलमान खुर्शीद ने जब मोदी के लिए नपुंसक, मेढ़क और खलनायक जैसे शब्दों का इस्तेमाल किया उस समय कांग्रेस कहां थी? मणिशंकर अय्यर से लेकर मनीष तिवारी जैसे कांग्रेस नेताओं ने मोदी के खिलाफ जो टिप्पणी की है वो किसी से छिपी नहीं है। 

केजरीवाल जिस भाषा का इस्तेमाल करते हैं उससे पूरी दुनिया वाकिफ है। वैसे बीजेपी में भी ऐसे नेताओं की भरमार है जिन्हें मर्यादा लांघने में आनंद की प्राप्ति होती है..गिरिराज सिंह, योगी आदित्यनाथ, कैलाश विजयवर्गीय...इन्हें भी जब कभी मौका मिलता है चुप नहीं बैठते।

पूर्व प्रधानमंत्र मनमोहन सिंह के खिलाफ पीएम की टिप्पणी का मैं समर्थन नहीं करता..लेकिन इस पर कांग्रेस का हायतौबा मचाना मुझे पसंद नहीं आया। भारत के संसदीय इतिहास में स्वस्थ वाद-विवाद की परंपरा रही है लेकिन कभी-कभी चर्चा में ह्यूमर का होना भी जरूरी है। बीजेपी के लोग तो यही कह रहे हैं कि कांग्रेस को मिर्ची लगी तो हम क्या करें?

मनोज झा

(लेखक टीवी चैनल में वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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