तेजस्वी को पिता का आशीर्वाद, तेज प्रताप को खुद पर भरोसा, कौन बनेगा लालू की विरासत का असली वारिस?

Tejashwi and Tej Pratap
ANI

राघोपुर की बात करें तो आपको बता दें कि वैशाली जिले का राघोपुर विधानसभा क्षेत्र इस बार बिहार चुनाव का सबसे हाई-प्रोफाइल रणक्षेत्र बन चुका है। यहाँ के 3.4 लाख से अधिक मतदाता जानते हैं कि उनका फैसला राज्य का भविष्य तय कर सकता है।

बिहार की राजनीति एक बार फिर उसी मोड़ पर है, जहां सत्ता की जड़ें वंश, विरासत और विद्रोह के ताने-बाने में उलझी हुई हैं। राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव के दो बेटे— तेजस्वी यादव और तेज प्रताप यादव आज एक-दूसरे से अलग राहों पर खड़े हैं, लेकिन दोनों की राजनीति अब भी एक ही राजनीतिक केंद्र की परिक्रमा करती दिखती है। एक ओर राघोपुर है— जिसे लोग "मुख्यमंत्रियों की धरती" कहते हैं। यही वह सीट है जिसने पहले लालू प्रसाद और फिर राबड़ी देवी को सत्ता के शिखर तक पहुँचाया। अब वहीं से लालू के छोटे पुत्र तेजस्वी यादव तीसरी बार मैदान में हैं और इस बार वह सिर्फ उम्मीदवार नहीं, बल्कि ‘मुख्यमंत्री पद’ के दावेदार भी हैं।

दूसरी ओर है महुआ— जहां कभी बड़े भाई तेज प्रताप यादव ने अपनी पहली जीत दर्ज की थी। अब वह उसी भूमि पर लौटे हैं, लेकिन इस बार पिता की पार्टी से निष्कासित होकर, एक नई राजनीतिक पहचान के साथ— जनशक्ति जनता दल के मुखिया के रूप में। देखा जाये तो यह चुनाव सिर्फ सीटों का मुकाबला नहीं, बल्कि एक परिवार के भीतर विचारों, अहं और नेतृत्व की टकराहट का भी मंच बन गया है।

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राघोपुर की बात करें तो आपको बता दें कि वैशाली जिले का राघोपुर विधानसभा क्षेत्र इस बार बिहार चुनाव का सबसे हाई-प्रोफाइल रणक्षेत्र बन चुका है। यहाँ के 3.4 लाख से अधिक मतदाता जानते हैं कि उनका फैसला राज्य का भविष्य तय कर सकता है। तेजस्वी यादव, महागठबंधन के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में तीसरी बार चुनाव मैदान में हैं। उनके अभियान का केंद्र है— “परिवर्तन की राजनीति।” रैलियों में वह बार-बार कहते हैं, “यह चुनाव बिहार को दिशा देने का अवसर है, केवल सरकार बदलने का नहीं।” राजद के पारंपरिक यादव वोटों के साथ इस बार वाम दलों और कांग्रेस का भी साथ है। निषाद वोटों में पकड़ रखने वाली वीआईपी पार्टी भी गठबंधन का हिस्सा है। लेकिन इस गठबंधन के लिए बड़ी चुनौती साबित हो रहे हैं भाजपा के सतीश कुमार। वही सतीश कुमार जिन्होंने 2010 में राबड़ी देवी को हराकर इस ‘वीआईपी सीट’ को झटका दिया था।

सतीश कुमार सवाल उठाते हैं— “दो बार उपमुख्यमंत्री रहे तेजस्वी अपने क्षेत्र के लिए एक कॉलेज या अस्पताल तक नहीं दिला सके। अगर स्थानीय विकास नहीं दिखा, तो राज्य के विकास के वादों पर भरोसा कैसे किया जाए?” तेजस्वी पर भरोसा करने वाला यादव वर्ग भी इस बार आत्ममंथन की स्थिति में है। एक ओर वह ‘अपना लड़का’ देख रहे हैं, तो दूसरी ओर बीते दो दशकों की सत्ता-विहीनता की कसक भी महसूस कर रहे हैं।

दूसरी ओर, राघोपुर से करीब 30 किलोमीटर दूर महुआ में कहानी बिल्कुल अलग लेकिन उतनी ही भावनात्मक है। यही वह सीट है जहाँ 2015 में तेज प्रताप यादव ने अपनी पहली राजनीतिक जीत दर्ज की थी। अब वह लौटे हैं, लेकिन इस बार बिना राजद के झंडे के। महुआ में एक दिलचस्प कहावत सुनाई देती है— “घी दाल में ही गिरता है।” मतलब यह कि चाहे तेज प्रताप को वोट दो या राजद को, फायदा अंततः लालू परिवार को ही होगा। यह भावनात्मक रिश्ता अभी भी बिहार के यादव मतदाता के दिल में ज़िंदा है। राजद ने इस सीट पर अपने वफादार मौजूदा विधायक मुकेश रौशन को उम्मीदवार बनाया है। रौशन की सबसे बड़ी चुनौती तेज प्रताप नहीं, बल्कि भावनाएं हैं— जो लालू परिवार की हर शाखा को जोड़ती हैं।

तेज प्रताप का कहना है कि “राजद में लौटने से अच्छा मौत चुनना है।” लेकिन बिहार के लोग जानते हैं कि इस परिवार के राजनीतिक रिश्ते हमेशा ‘तलाकशुदा’ नहीं होते। वे तकरार के बीच भी साथ जीने की कला जानते हैं। तेज प्रताप के वादे भी हमेशा की तरह रंगीन हैं— “अगर जीत गया, तो महुआ में इंटरनेशनल क्रिकेट स्टेडियम बनाऊँगा, जहाँ भारत-पाकिस्तान मैच होगा।” पर ज़मीनी हकीकत कुछ और है— मेडिकल कॉलेज बना, लेकिन दरवाज़े बंद हैं; भवन खड़ा है, मगर बिस्तर नहीं। यही कारण है कि महुआ का मतदाता आज “दिल और दिमाग” के बीच झूल रहा है।

इसके अलावा, बिहार की राजनीति में लालू प्रसाद यादव की विचारधारा आज दो दिशाओं में बंटती दिख रही है। तेजस्वी उस विचारधारा को आधुनिक चेहरे में ढालना चाहते हैं और अपने भाषणों में बेरोजगारी, शिक्षा और शासन की नई भाषा के बारे में बात कर रहे हैं वहीं तेज प्रताप उस विचारधारा को भावनात्मक लोकलुभावन रूप में जिंदा रखना चाहते हैं और अपने भाषणों में धर्म, जाति और गौरव के प्रतीकों का जिक्र कर रहे हैं। राघोपुर से तेजस्वी जहाँ लालू का ‘विकल्प’ बनने की कोशिश में हैं, वहीं महुआ में तेज प्रताप ‘विरासत’ के बोझ और आशीर्वाद के बीच झूलते दिख रहे हैं।

बहरहाल, अब सबकी निगाहें इस बात पर टिकी हैं कि इस चुनावी रणभूमि में लालू प्रसाद का आशीर्वाद ज़्यादा असर दिखाता है या लालू प्रसाद का नाम। देखना दिलचस्प होगा कि पिता के समर्थन से राघोपुर में उतरा छोटा बेटा तेजस्वी यादव सत्ता की सीढ़ियाँ चढ़ता है या फिर अपने दम और अदाओं के भरोसे मैदान में उतरा बड़ा बेटा तेज प्रताप यादव कोई चमत्कार कर दिखाता है। बिहार की जनता जानती है— यहाँ राजनीति सिर्फ गणित नहीं, थोड़ा तंत्र और बहुत सारा नाट्यशास्त्र भी है। बाकी, घी दाल में गिरता है या हांडी में, यह तो मतगणना वाले दिन ही पता चलेगा!

-नीरज कुमार दुबे

(इस लेख में लेखक के अपने विचार हैं।)
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