पंजाब की चिंता करना जायज है लेकिन अमरिंदर हरियाणा और दिल्ली को नुकसान क्यों पहुँचवाना चाहते हैं?

Amarinder Singh
राकेश सैन । Sep 15 2021 2:16PM

होशियारपुर में एक सरकारी कार्यक्रम में बोलते हुए पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिन्दर सिंह ने किसानों को अपील की कि वह पंजाब में 113 जगह दिए जा रहे धरने उठा लें, ताकि आम लोगों को राहत मिल सके और पंजाब की आर्थिकता प्रभावित न हो।

अपने घर लगी आग को कुछ लोग आग और दूसरों के घर लगे तो उसे बसन्तरदेव कहते हैं। पंजाब के मुख्यमन्त्री कैप्टन अमरिन्दर सिंह भी इन्हीं लोगों में हैं, पंजाब में आन्दोलन से तंग आकर उन्होंने किसानों से कहा है कि वे पंजाब की बजाय हरियाणा व दिल्ली की सीमा पर ही धरने दें। उनके अनुसार इस आन्दोलन से पंजाब को बड़ा नुकसान हो रहा है। हरियाणा सरकार ने इस पर कड़ी प्रतिक्रिया दी है और कैप्टन अमरिन्दर पर निशाना साधा है। हरियाणा के कृषि मन्त्री जेपी दलाल और गृहमन्त्री अनिल विज ने कैप्टन पर तीखा हमला बोला है। विज ने कैप्टन के बयान को बेहद गैर-जिम्मेदाराना करार दिया है। कृषि मन्त्री जेपी दलाल ने कहा कि कैप्टन के बयान से साफ हो गया है कि यह पूरा आन्दोलन कांग्रेस और पंजाब प्रायोजित है। कैप्टन को पंजाब के साथ हरियाणा और राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली की भी चिन्ता करनी चाहिए। उनको किसान संगठनों को समझाना चाहिए। पूर्व केन्द्रीय मन्त्री व अकाली दल की नेता हरसिमरत कौर बादल ने इस बयान पर कहा कि कैप्टन अपने आलीशान महल में आराम करते हैं, जबकि हमारे किसान पिछले 10 महीने से खराब मौसम में दिल्ली की सड़कों पर मर रहे हैं। यही कैप्टन की योजना थी।

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होशियारपुर में एक सरकारी कार्यक्रम में बोलते हुए कैप्टन अमरिन्दर ने किसानों को अपील की कि वह पंजाब में 113 जगह दिए जा रहे धरने उठा लें, ताकि आम लोगों को राहत मिल सके और पंजाब की आर्थिकता प्रभावित न हो। कहीं न कहीं यह धरने पंजाब के लिए गम्भीर साबित हो रहे हैं। राज्य की आर्थिक हालात पहले ही ठीक नहीं है और अगर किसान अपने ही राज्य में धरने लगाएंगे तो इससे हालत और खराब हो सकती है।

उन्होंने कहा कि हमें अपने राज्य की उन्नति के लिए सहयोग देना चाहिए न कि बाधा पैदा करनी चाहिए। अगर हम नहीं समझे और हालात इसी तरह रहे तो पंजाब के लिए आर्थिक संकट पैदा हो जाएगा। कैप्टन ने कहा कि राज्य का किसान तो पंजाब की उन्नति के लिए दिन रात एक करता है, परंतु यदि किसान अपने ही राज्य के लिए परेशानी पैदा करेंगे तो आगे कैसे बढ़ा जा सकता है। यहां यह बताना जरूरी है कि कथित किसान आन्दोलनों के चलते राज्य की आम जनता तो परेशान है ही इसके साथ इससे राज्य की आर्थिक गतिविधियां पंगु हो चुकी हैं। राज्य में अडानी समूह द्वारा लुधियाना के पास लॉजिस्टिक पार्क, फिरोजपुर व मोगा के पास साइलो प्लाण्ट बन्द किए जा चुके हैं। इनके बन्द होने से हजारों वो नौजवान अपनी नौकरियों से हाथ धो बैठे हैं जो ग्रामीण पृष्ठभूमि से ही आते हैं और किसानों के ही बेटा-बेटी हैं। केवल इतना ही नहीं रिलायंस कम्पनी राज्य में कई स्थानों पर अपने पेट्रोल पम्प व खुदरा विक्रय केन्द्र बन्द कर चुकी है और कई स्थानों पर अपने कर्मचारियों को नयी जगहों पर नौकरी ढूंढ़ने को कहा जा चुका है। कथित किसानों के धरने के चलते बठिण्डा में हाल ही में एक बड़ी कम्पनी ने अपना मार्ट बन्द कर दिया है। आन्दोलनकारी इससे पहले राज्य में करीब 15-16 सौ से अधिक मोबाइल टावर तोड़ चुके हैं। इन आन्दोलनों से राज्य के उद्योगपतियों में भय व्याप्त है और खुद मुख्यमन्त्री बता चुके हैं कि राज्य में 69000 करोड़ के निवेश के आवेदन मिले थे परन्तु कथित किसान आन्दोलन के चलते अभी तक किसी ने भी एक कौड़ी भी नहीं लगाई है। और तो और उत्तर प्रदेश व हिमाचल प्रदेश में उद्योगों के अनुकूल पैदा हुए वातावरण के चलते पंजाब के बहुत से उद्योगपतियों की इन प्रदेशों में निवेश की योजना बन रही है।

यह किसी से छिपा नहीं है कि केन्द्र सरकार के तीन कृषि सुधार कानूनों के खिलाफ तिल का ताड़ बनाने में कांग्रेस विशेषकर पंजाब कांग्रेस और मुख्यमन्त्री कैप्टन अमरिन्दर सिंह की महती भूमिका रही है। वे चाहते तो किसानों को पंजाब में ही रोका जा सकता था परन्तु उन्होंने अपनी पार्टी के साथ-साथ पूरी सरकार का जोर लगा कर किसानों को भटकाना व गुमराह करना जारी रखा और आन्दोलन को हर तरह से मदद करते रहे।

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अब वही भटके हुए किसान इस मार्ग पर इतना आगे बढ़ चुके हैं कि किसी की बात सुनने को तैयार दिखाई नहीं दे रहे। पंजाब में यही किसान 113 विभिन्न स्थानों पर धरने दे रहे हैं जिससे आम लोग, व्यापारी, उद्योगपति, नौजवान अदि सभी वर्गों के लोग परेशान हो चुके हैं और लोगों में राज्य सरकार के खिलाफ गुस्सा पनप रहा है। इसी से घबरा कर कैप्टन अमरिन्दर सिंह ने किसानों से पंजाब में से धरना उठाने को कहा है।

अपनी राष्ट्रवादी सोच के लिए देश भर में जाने जाने वाले कैप्टन की यह अपील उनके व्यवहार के साथ-साथ संविधान की भावना के विपरीत भी है। एक संवैधानिक तौर पर चुना गया मुख्यमन्त्री किस तरह ऐसा सोच सकता है कि कोई आन्दोलन उनके प्रदेश में तो न हो और दूसरे प्रदेशों में वह उसको समर्थन करे। क्या पंजाब, हरियाणा, दिल्ली एक ही देश नहीं ? इस कथित आन्दोलन से हरियाणा व दिल्ली के उद्योग भी प्रभावित हो रहे हैं, क्या कैप्टन नहीं जानते कि पड़ौसी राज्यों पर पड़ने वाला बुरा असर पंजाब को प्रभावित नहीं करेगा ? पंजाब, हरियाणा व दिल्ली के उद्योग परस्पर जुड़े और परस्पर निर्भर हैं, एक राज्य का उद्योग प्रभावित होता है तो असर दूसरों पर पड़ना भी स्वाभाविक है। कैप्टन के लिए श्रेष्ठ तो यह होता कि वह आन्दोलनकारी किसानों को समझाते, उन्हें बातचीत व धरना उठाने के लिए मनाते। लोकतन्त्र में चाहे हर नागरिक को विरोध करने का अधिकार है परन्तु सर्वोच्च न्यायालय भी बार-बार कह चुका है कि अपने अधिकार के लिए हम नागरिकों के अधिकारों का उल्लंघन नहीं कर सकते। भ्रमित आन्दोलनकारी किसान जिस तरह से दस महीनों से दिल्ली व हरियाणा की सीमा रोक कर रखे हुए हैं उससे वहां के निवासियों के साथ-साथ इस मार्ग से गुजरने वालों के अधिकारों को भी कुचल रहे हैं। लोकतन्त्र में स्वतन्त्रता तो है पर स्वच्छन्दता के लिए कोई स्थान नहीं। समय बदलने के साथ-साथ लोकतन्त्र में विरोध दर्ज करवाने के साधन भी बदले जाने चाहिएं और इस बात का ध्यान रखा जाना चाहिए कि हमारे विरोध के चलते किसी दूसरे को परेशानी नहीं हो। कैप्टन की इस अपील से अब उन किसानों को भी समझ आ जानी चाहिए कि देश के राजनीतिक दल उनके कन्धों पर बन्दूक चला कर अपने निशाने साध रहे हैं।

-राकेश सैन

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