गुलामी क्यों? भारत का अपना सोशल मीडिया मंच होना चाहिए
क्या भारत को भी अपने ऐसे स्वदेशी सामाजिक मीडिया मंच यानी स्वदेशी टि्वटर, फेसबुक और गूगल बनाकर स्वदेशी डाटा स्वदेश में ही रखना सुनिश्चित करते हुए विदेशी एजेंसियों के नियंत्रण से मुक्त नहीं होना चाहिये?
यदि आपको पता चले कि जिस मकान में आप रह रहे हैं वहां से मकान मालिक आपको बिना नोटिस या बचाव का मौका दिये पांच मिनट में बाहर निकाल देगा तो कैसा लगेगा? सामाजिक मीडिया पर हम जिस फेसबुक या टि्वटर का इस्तेमाल करते हैं अथवा जी-मेल और याहू जैसी विदेशी कंपनियों के ताने-बाने का अपने व्यक्तिगत डाटा के लिए इस्तेमाल करते हैं बिल्कुल ऐसा ही आपके साथ कभी भी कर सकते हैं। टि्वटर ने तालिबानों और प्रधानमंत्री मोदी पर अभद्र तथा अशालीन टिप्पणी करने वालों के खिलाफ जिन टि्वटर प्रयोगकर्ताओं ने अभियान छेड़ा था या उनका मुकाबला किया था उन्हें देशभक्ति के अपराध में खाता बाहर करने यानि उनके टि्वटर एकाउंट निरस्त कर दिये। इसको लेकर टि्वटर में बड़ी बहस चल रही है तथा भारत में टि्वटर कंपनी को जो संचालित कर रहे हैं उनकी नीयत और वैचारिक पूर्वाग्रहों पर सवाल उठाये जा रहे हैं।
प्रधानमंत्री मोदी द्वारा सरकार बनाने के बाद उनके वैचारिक विरोधी शांत नहीं बैठे हैं। उन्होंने जगह-जगह अपने मोर्चे खोल दिये हैं तथा छोटी सी घटना को बड़ा बनाकर उसका इस्तेमाल करना या घटनाओं के निष्कर्ष को मोड़ देकर साम्प्रदायिक घृणा का रूप देना और झूठे या दूसरे नामों पर टि्वटर खाते खोल कर गाली-गलौच तथा बेहद आपत्तिजनक भाषा में आघात करना अब मीडिया युद्ध का एक हिस्सा बन गया है। इसमें केवल एक ही रंग के लोग शामिल हैं जिसको गुस्सा आता है तो तर्क एवं सत्य के अभाव में सामाजिक मीडिया पर गाली-गलौच करने लग जाता है।
ऐसी घटनाओं के विरुद्ध भारतीय दंड संहिता के प्रावधान हैं लेकिन साइबर सुरक्षा एवं साइबर अपराध संबंधी नियम इतने अस्पष्ट, ढीले और अप्रभावी हैं कि जब तक आप शीर्ष के नेता ना हों तब तक साधारण व्यक्ति को कोई रक्षा कवच नहीं मिलता। टि्वटर एवं फेसबुक के आहत और प्रताड़ित खाताधारक ज्यादा से ज्यादा गालियां देने वाले अभद्र भाषा का प्रयोग करने वाले प्रहारक को ब्लॉक कर सकता है या उसकी शिकायत कर सकता है। लेकिन विदेशी एजेंसियों के जो भारतीय अधिकारी तथा कर्मचारी हैं वे भारतीयों के प्रति संवेदन दिखाने की बजाय अपने विदेशी मालिकों की नीतियों का पालन ज्यादा करते हैं। जिनके लिये हमारी संवेदनाओं का अर्थ बहुत कम होता है।
इसके सुरक्षा आयाम भी हैं। गूगल, याहू तथा टि्वटर जैसी विदेशी कंपनियां भारतीय सुरक्षा एजेंसियों को अपने डाटा देखने की अनुमति बहुत कम और काफी कठिनाई के बाद देती है। इन विदेशी कंपनियों द्वारा जो भारतीयों का डाटा इकट्ठा किया जाता है वह मूलतः भारतीयों की संपत्ति है, जो भारत में एकत्र की गई है। लेकिन उस पर भारतीय सुरक्षा एजेंसी अथवा भारत सरकार का ना कोई स्वामित्व होता है और ना ही उसमें दखल देने का उसको कोई अधिकार होता। इस कारण संवेदनशील पदों पर कार्यरत नेताओं, अफसरों व कर्मचारियों द्वारा विदेशी एजेंसियों की ई-मेल सेवाओं तथा सामाजिक मीडिया का इस्तेमाल करने पर जो डाटा निर्मित होता है उसका ये विदेशी कंपनियां अपने मूल देशों की सरकारों के उपयोग के लिए उपलब्ध करा सकती हैं और ऐसा कराया भी गया है। गूगल और याहू ने माना है कि अमेरिकी राष्ट्रीय सलाहकार के आदेश पर उन्हें डाटा उपलब्ध कराया गया था। ऐसी गतिविधियों के कारण इन दोनों कंपनियों पर दुनिया के अनेक देशों में हजारों मुकदमें चल रहे हैं।
भारत में लगभग ढाई करोड़ लोग टि्वटर तथा सात करोड़ लोग फेसबुक का इस्तेमाल करते हैं। अपनी व्यक्तिगत, सार्वजनिक एवं जो मन में आवे ऐसी जानकारियों और संवाद के लिये इन साइट्स का इस्तेमाल होता है। छाया चित्र तथा उनके मन के झुकाव और भावनाएं खुल कर व्यक्त की जाती हैं। सामान्यतः इन एजेंसियों में से कोई भी इस प्रकार के व्यवहार पर दखल नहीं देती। लेकिन वास्तविकता तो यह है कि इन एजेंसियों के भारतीय नियंत्रक विदेशी कंपनियों के आदेशपालक हैं। वे तमाम अंग्रेजी और अंग्रेजियत के रंग में ऐसे रंगे होते हैं कि उनके लिये भारत और भारतीयता एवं अपनी सांस्कृति श्रेष्ठता का आग्रह करने वाले साम्प्रदायिक एवं सेकुलर विरोधी ही माने जाते हैं। उनके प्रति इन एजेंसियों तथा उनके भारतीय नियंत्रकों का एक वैचारिक पूर्वाग्रह रहता ही है।
कर्नाटक से सांसद तथा मेरे मित्र लेखक श्री प्रताप सिम्हा ने टि्वटर से कहा कि भारतीय देशभक्तों के तीखे टि्वटस पर उनका खाता निरस्त करने की बजाय उनके विरुद्ध जो गाली-गलौच और अत्यंत अभद्र भाषा का प्रयोग कर रहे हैं उनके टि्वटर खाते क्यों नहीं निरस्त किये जा रहे हैं? टि्वटर इंडिया ने इसका कोई उत्तर नहीं दिया।
टि्वटर तथा फेसबुक सामाजिक संवाद का संयमित और भद्र मंच बने इसलिये ही शुरू किये गये थे। लेकिन जैसे सुंदर शहर में गटर भी होता है वैसे ही इस पर वैचारिक और संस्कृति का प्रभाव बढ़ता गया। इस पर अब उन देशों का कोई नियंत्रण नहीं है जिन देशों में इस सामाजिक मीडिया का प्रभाव बढ़ा है। आतंक और दंगे भड़काने के लिए भी इन सामाजिक मीडिया मंचों का इस्तेमाल किया जा रहा है।
भारत के संबंध में इस खतरनाक प्रवृत्ति पर ध्यान देने की जरूरत है। लोग भारत के, डाटा भारत का, स्थान, धन एवं ऊर्जा भारत की, आय भी भारतीयों से कमाई जाने के बावजूद भारत का इन सामाजिक पोर्टलों एवं मीडिया एजेंसियों पर रत्ती मात्र भी नियंत्रण नहीं है। चीन ने इसी कारण अपने सामाजिक पोर्टल चीन की ही स्वदेशी एजेंसियों द्वारा प्रारंभ किये और आज वे एजेंसियां टि्वटर और फेसबुक से भी ज्यादा विस्तार और प्रभाव वाली हो रही हैं। वहां आज भी टि्वटर, फेसबुक और गूगल प्रतिबंधित हैं। वे लोग चिल्लाते रहे लेकिन चीन ने कहा कि उसके लिये चीन और चीनी नागरिकों का हित सर्वोपरि है। क्या भारत को भी अपने ऐसे स्वदेशी सामाजिक मीडिया मंच यानी स्वदेशी टि्वटर, फेसबुक और गूगल बनाकर स्वदेशी डाटा स्वदेश में ही रखना सुनिश्चित करते हुए विदेशी एजेंसियों के नियंत्रण से मुक्त नहीं होना चाहिये?
- तरुण विजय
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