वायु प्रदूषण के कारण हर मिनट मरते हैं दो भारतीय

पल्लव बाग्ला । Feb 20 2017 12:21PM

चिकित्सीय पत्रिका ‘द लांसेट’ के अनुसार, हर साल वायु प्रदूषण के कारण 10 लाख से ज्यादा भारतीय मारे जाते हैं और दुनिया के सबसे प्रदूषित शहरों में से कुछ शहर भारत में हैं।

जिस हवा में भारतीय सांस लेते हैं, वह दिन-प्रतिदिन जहरीली होती जा रही है और एक नए अध्ययन में कहा गया है कि वायु प्रदूषण के कारण प्रतिदिन औसतन दो लोग मारे जाते हैं। चिकित्सीय पत्रिका ‘द लांसेट’ के अनुसार, हर साल वायु प्रदूषण के कारण 10 लाख से ज्यादा भारतीय मारे जाते हैं और दुनिया के सबसे प्रदूषित शहरों में से कुछ शहर भारत में हैं। इस सप्ताह जारी हुआ यह अध्ययन वर्ष 2010 के आंकड़ों पर आधारित है। इसमें कहा गया है कि वैश्विक तौर पर 27-34 लाख समय पूर्व जन्म के मामलों को पीएम 2.5 के प्रभाव से जोड़ा जा सकता है और इन मामलों में सबसे बुरी तरह दक्षिण एशिया प्रभावित होता है। यहां 16 लाख जन्म समय पूर्व होते हैं।

अध्ययन में कहा गया है कि वायु प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन के कारण विस्तृत तौर पर एक-दूसरे से जुड़े हैं और इनसे एक साथ निपटे जाने की जरूरत है। द लांसेट में कहा गया कि जलवायु परिवर्तन ‘‘मानवीय स्वास्थ्य पर तो भारी खतरा पैदा करता ही है’’ साथ ही साथ यदि सही कदम उठाए जाएं तो वह ‘‘21वीं सदी का सबसे बड़ा वैश्विक स्वास्थ्य अवसर भी है।’’ पत्रिका में छपे अध्ययन में कहा गया कि उत्तर भारत में छाया स्मॉग भारी नुकसान कर रहा है। हर मिनट भारत में दो जिंदगियां वायु प्रदूषण के कारण चली जाती हैं। इसके अलावा, विश्व बैंक के आकलन के मुताबिक यदि भारत में श्रम से होने वाली आय के क्रम में देखा जाए तो इससे 38 अरब डॉलर का नुकसान होता है। अध्ययन कहता है कि वायु प्रदूषण सभी प्रदूषणों का सबसे घातक रूप बनकर उभरा है। दुनियाभर में समय से पूर्व होने वाली मौतों के क्रम में यह चौथा सबसे बड़ा खतरा बनकर सामने आया है। 

हाल ही में 48 प्रमुख वैज्ञानिकों ने अध्ययन जारी किया और पाया कि पीएम 2.5 के स्तर या सूक्ष्म कणमय पदार्थ (फाइन पार्टिक्युलेट मैटर) के संदर्भ में पटना और नयी दिल्ली दुनिया के सबसे प्रदूषित शहर हैं। ये कण दिल को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाते हैं। एक आकलन के मुताबिक वायु प्रदूषण की चपेट में आने पर हर दिन 18 हजार लोग मारे जाते हैं। इस तरह यह स्वास्थ्य पर मंडराने वाला दुनिया का एकमात्र सबसे बड़ा पर्यावरणीय खतरा बन गया है। विश्व बैंक का आकलन है कि यह श्रम के कारण होने वाली आय के नुकसान के क्रम में वैश्विक अर्थव्यवस्था को 225 अरब डॉलर का नुकसान पहुंचाता है। कई भारतीय रिपोर्टों से विरोधाभास रखते हुए द लांसेट ने कहा कि कोयले से संचालित होने वाले बिजली संयंत्र वायु प्रदूषण में 50 प्रतिशत का योगदान देते हैं। पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन राज्य मंत्री अनिल माधव दवे ने हाल ही में संसद में यह माना था कि भारत वायु प्रदूषण की निगरानी के लिए वार्षिक तौर पर महज सात करोड़ रूपए खर्च करता है। विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्री डॉ. हर्षवर्धन ने कहा, ‘‘जब प्रदूषण फेफड़ों पर असर डालना शुरू करता है, खासकर छोटे बच्चों के, तब यह घातक साबित हो सकता है। यह एक धीमे जहर की तरह है और इस पर चिंता स्वाभाविक है। इस संदर्भ में बहुत कुछ किया गया है लेकिन बहुत कुछ किया जाना बाकी भी है। 

अध्ययन में दुनियाभर से जानकारी ली गई है। लगभग 16 संस्थान इस पहल के अकादमिक साझेदार हैं। इनमें यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन, सिंगुआ यूनिवर्सिटी और सेंटर फॉर क्लाइमेट एंड सिक्योरिटी आदि शामिल हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन और विश्व मौसम विज्ञान संगठन के साथ यह विशेष साझेदारी सहक्रियाओं को बढ़ावा देने, डाटा स्रोतों पर समन्वय करने और स्वास्थ्य मंत्रालयों के बीच गहरा जुड़ाव सुनिश्चित करने के लिए है। विश्व स्वास्थ्य संगठन में स्वास्थ्य एवं जलवायु परिवर्तन के प्रमुख डॉ. डी कैंपबैल-लेंड्रम ने कहा, ‘‘पेरिस समझौता एक ऐतिहासिक उपलब्धि था। अब चुनौती यह है कि इसमें जिन लक्ष्यों पर सहमति बनी थी, उन्हें हासिल किया जाए।'' उन्होंने कहा, ‘‘डब्ल्यूएचओ विभिन्न देशों को उनके सामने मौजूद स्वास्थ्य संबंधी खतरों, कम कार्बन वाले भविष्य से जुड़े अवसरों और आज के स्वास्थ्य संबंधी मुद्दे से निपटने के लिए जरूरी सहयोग के साक्ष्य उपलब्ध कराने के लिए मिलकर काम कर रहा है।’’ 

- पल्लव बाग्ला

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