साक्षात्कारः अफगान लेखिका नजवा अलिमी ने कहा- अब सामान्य हो चुके हैं हालात

Najwa Alimi

तालिबान ने मुल्क को पूर्ण रूप से पंद्रह अगस्त को कब्जाया था। उससे पहले तक एक सामान्य अफगानी को भी लग रहा था कि हमारी हुकूमत, फौज और अमेरिकी सेना हिफाजत करती रहेगी। पर, ऐसा नहीं हुआ, तीनों ने सामूहिक और संयुक्त रूप से एक साथ हथियार डाल दिए।

तालिबान का अफगानिस्तान पर कब्जे के बाद विषेशकर इस्लामिक देशों का नजीरिया बदलने लगा है, कब्जे के एक दिन पहले तक जो मुल्क उन्हें आतंकी कहते थे, अब कहना छोड़ दिया है। दूसरी बात ये है कि मीडिया रिपोर्टस् में बताया जा रहा है कि तालिबानी आम नागरिकों के प्रति क्रूरता दिखा रहे हैं। जबकि, वहां के नागरिकों का नजरिया कुछ और है उनके प्रति। अफगान की मौजूदा स्थिति पर डॉ0 रमेश ठाकुर ने वहां की सामाजिक कार्यकर्ता व लेखिका नजवा अलिमी से फोन के जरिए जमीनी हकीकत की पड़ताल की। पेश हैं उनके साथ हुई गुफ्तगू के मुख्य अंश-

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प्रश्न- अफगान में जो होना था, हो गया, अब आगे का भविष्य मुल्क वासी कैसा देखते हैं?

उत्तर- देखिए, फिलहाल हमारा मुल्क लुट चुका है, उजड़ चुका और बर्दाद हो चुका है जिसे हम सिर्फ तमाशबीन बनकर देख रहे हैं। लाचार थे, कुछ कर नहीं पाए। लेकिन सभी के भीतर एक आस अब भी है कि उनके मुल्क को एक ना एक दिन खुदा जरूर लौटाएगा। क्योंकि अफगान को दोबारा से खड़ा करने के लिए सभी भविष्य की तरफ ताक रहे हैं। मतलब सभी वेट एंड वॉच की स्थिति में हैं। स्थानीय लोग जहर का कड़वा घूंट पीकर बैठे हैं।

  

प्रश्न- ऐसा संकट आएगा, इसका अंदेशा आप लोगों को क्या पहले से था?

उत्तर- तालिबान ने मुल्क को पूर्ण रूप से पंद्रह अगस्त को कब्जाया था। उससे पहले तक एक सामान्य अफगानी को भी लग रहा था कि हमारी हुकूमत, फौज और अमेरिकी सेना हिफाजत करती रहेगी। पर, ऐसा नहीं हुआ, तीनों ने सामूहिक और संयुक्त रूप से एक साथ हथियार डाल दिए। किसी ने भी नहीं सोचा था कि अति सुरक्षित समझे जाने वाले काबुल में तालिबानी घुसेंगे। जब वे घुसे तो उनका हमारी सेना ने जरा भी सामना नहीं किया। अशरफ गनी पहले ही देश छोड़कर भाग गए, उनके जाने की सूचना हमें मीडिया के जरिए पता चली।

प्रश्न- काबुल में अब कैसा है माहौल?

उत्तर- तालिबान ने बिना चुनाव के अपनी अंतरिम हुकूमत स्थापित की है। स्थानीय पार्टियों का भी उन्हें समर्थन मिल चुका है। अशरफ गनी और हामिद करजई की सरकारों में रहे लोग भी शामिल हुए हैं। कुल मिलाकर सभी के सहयोग से तालिबान सत्ता पर काबिज हो चुके हैं। सरकार गठन से पहले उन्होंने सभी विपक्षी दलों, सामाजिक संगठनों और समूहों को बुलाया था, सबकी सहमति ली, उसके बाद अपनी कैबिनेट बनाई है। फिलहाल काबुल में अब पहले जैसा अफरा-तरफा का माहौल नहीं है। जनजीवन सामान्य हो चुका है, लोग घरों से निकलते हैं, मस्जिदों में पांचों वक्त की नमाज को जाते हैं। बच्चे पार्कों में खेलने जाते हैं, बाजार खुलने लगे हैं।

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प्रश्न- महिलाओं को प्रताड़ित करने की खबरें भी सुनने को मिल रही हैं?

उत्तर- देखिए, जो सरकारें जनता से चुनकर बनती हैं, उनका भी विरोध होता है। अफगान में कुछ संगठन ऐसे हैं जो खुद सामने ना आकर महिलाओं को आगे कर रहे हैं। राजनीति भी खूब हो रही है। जहां तक प्रताड़ित करने की बात है, अभी ऐसा कोई फरमान जारी नहीं हुआ। मीडिया में कुछ खबरें सरासर गलत हैं। हम लोगों ने अपने कार्यालयों में काम करना शुरू कर दिया है। महिलाएं जिन संस्थाओं में वर्किंग थी, वहां जाना आरंभ कर दिया है। बेवजह किसी को परेशान नहीं किया जा रहा।

प्रश्न- मीडिया में खबरें कुछ ऐसी हैं कि जिसमें तालिबान का फरमान है कि महिलाएं सिर्फ बच्चे ही पैदा करें?

उत्तर- सड़कों पर महिलाओं के कुछ संगठन तालिबानियों के समर्थन में भी निकल रहे हैं। वह तालिबान की नीतियां विशेषकर शरिया कानून की वकालत कर रही हैं। देखिए, कानून कैसे भी क्यों ना बनाए जाएं, उनमें स्वतंत्रता होनी चाहिए, आजादी हो, आधी आबादी की आजादी छीनने वाला कानून नहीं होना चाहिए। रूढ़िवादी ताकतें प्रगतिशील समाज के भविष्य को ना कुचलें। मेरी ख्वाहिश बस इतनी है कि अफगानिस्तान की महिलाओं को अपने सपनों को साकार करने के लिए तालिबान उन्हें ना रोके। अपने हकों लिए अगर वह संघर्ष करती हैं तो उन्हें करने दिया जाए। उनके मौलिक अधिकारों का हनन कतई नहीं होना चाहिए। ऐसा कोई फरमान जारी नहीं हुआ है, जिसमें महिलाओं को सिर्फ बच्चे पैदा करने को कहा गया हो।

प्रश्न- तालिबान राज में कानून में समानता के अधिकार की आप उम्मीद करती हैं?

उत्तर- देखिए, 2001 में जब तालिबान ने हुकूमत बनाई थी तब महिलाओं की जिंदगी उन्होंने नर्क बना दी थी? महिलाओं पर जमकर जुल्म ढाए गए, उन्हें दोयम दर्जे का समझा गया, पढ़ने-लिखने की इजाजत तालिबानियों ने नहीं दी। दफ्तरों में महिलाओं के काम करने पर पाबंदी थी। लड़कियों का जींस पहनना, हील्स पहनना, घरों की बालकानी या छत पर जाने की मनाही थी। घर के किसी मर्द के बिना बाहर जाना मना था, अकेले घर से निकलने पर उन्हें प्रताड़ित किया जाता था। लेकिन इस बार ऐसी कोई बंदिशें नहीं दिखाई देतीं।

प्रश्न- भारत से अब कैसी उम्मीद करते हैं आम अफगानी?

उत्तर- देशवासियों को अगर सबसे ज्यादा उम्मीदें हैं तो भारत से हैं। अफगानिस्तान का एक-एक बच्चा अपने लिए भारत को खिदमतदार समझता है। क्योंकि बीते एक दशक में भारत के सहयोग से अफगान में कई स्कूल, कॉलेज, संसद का निर्माण, पार्क, होटल आदि बनाए गए। हमारे यहां अनगिनत युवा भारत के विभिन्न कॉलेजों में अध्ययनरत हैं। दिल्ली के जामिया कॉलेज और दिल्ली यूनिवसिर्टिज में छात्र-छात्राएं पढ़ रही हैं। मुझे लगता है ये सिलसिला निकट भविष्य में भी जारी रहेगा।

-डॉ. रमेश ठाकुर के साथ बातचीत में जैसा अफगानी लेखिका नजवा अलिमी ने कहा।

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