बजट में किसानों के साथ अन्य वर्गों को भी राहत दे मोदी सरकार

modi-govt-should-focus-on-all-sectors-in-union-budget

सरकार बनने के बाद किसानों का कितना कर्ज माफ हो पाता है इसका उदाहरण उत्तर प्रदेश, पंजाब, कर्नाटक हैं जहां कई किसानों का तो मात्र एक रूपये तक का ही कर्ज माफ हो पाया। जबकि कई किसान कर्ज माफी के लिये आज भी भटकते फिर रहे हैं।

हमारे देश में जब भी कोई चुनाव आने वाले हों तो सभी राजनीतिक दल जोर शोर से किसानों के हित की बात करने लगते हैं। ऐसे दर्शाने लगते हैं मानो उनसे बड़ा देश में किसानों का कोई हितैषी नहीं है। आजकल चुनावों से पूर्व सभी राजनीतिक दल किसानों के सम्पूर्ण कर्ज को माफ करने की घोषणा करने लगे हैं। पंजाब, उत्तर प्रदेश, कर्नाटक, राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ में तो किसानों के कर्ज माफी के नाम पर विभिन्न दलों ने सरकारें भी बना ली हैं। हालांकि सरकार बनने के बाद किसानों का कितना कर्ज माफ हो पाता है इसका उदाहरण उत्तर प्रदेश, पंजाब, कर्नाटक हैं जहां कई किसानों का तो मात्र एक रूपये तक का ही कर्ज माफ हो पाया। जबकि कई किसान कर्ज माफी के लिये आज भी भटकते फिर रहे हैं।

इसे भी पढ़ेंः गरीबों को आरक्षण का फैसला ऐतिहासिक, नौजवानों के साथ हुआ न्याय: कोविंद

पंजाब, कर्नाटक में तो कर्ज माफी के नारे पर सवार होकर बनने वाली सरकारों में भी किसानों की आत्महत्यायें करने की घटनाओं में कमी की बजाय बढ़ोत्तरी ही हुयी है। जनता दल-एस व कांग्रेस के गठबंधन से कर्नाटक में चल रही सरकार ने भी किसानों के ऋण माफी के बड़े-बड़े वादे किये थे मगर वहां सरकार बनने के बाद पिछले सात महीनों में अब तक 250 किसान कर्ज से परेशान होकर आत्महत्या कर चुके हैं। हालांकि असलियत तो ये है कि कांग्रेस और जेडी (एस) की सरकार किसानों की आत्महत्या रोक पाने में असमर्थ है।

चर्चा है कि केन्द्र की नरेन्द्र मोदी सरकार 2019 के आम चुनाव से पूर्व किसानों के लिये तेलंगाना राज्य की तर्ज पर उनकी आर्थिक सहायता करने को एक योजना लाने वाली है जिसमें किसानों को उनकी कृषि भूमि के अनुसार प्रति एकड़ सहायता देने की घोषणा कर सकती है। केन्द्र सरकार सीमांत व गरीब किसानों के लिए प्रति एकड़ सालाना 10 हजार रुपये तक दे सकती है। यदि ऐसा होता है तो यह निश्चय ही किसानों के लिये एक अच्छी योजना साबित हो सकती है। आज देश में किसानों का आत्महत्या करना एक गंभीर समस्या बन चुकी है। आत्महत्या का सबसे बड़ा कारण उनका कर्जदार होना होता है। केन्द्र सरकार द्वारा लायी जा रही योजना से किसानों को कर्ज से छुटकारा तो मिलेगा ही साथ ही उनकी आत्महत्याओं की घटनाओं में कमी आयेगी। उनके खेती से विमुख होने पर भी रोक लगेगी। वर्तमान हालात में बड़ी संख्या में छोटे किसान तो खेती छोड़कर मजदूरी जैसे अन्य काम करने लगे हैं। मोदी सरकार की उक्त योजना से कृषि कार्यों से विमुख होते जा रहे किसान फिर से खेती करने लगेंगे।

इसे भी पढ़ेंः गांधीजी ने युवाओं को खादी निर्माण से जोड़कर बड़ी संख्या में रोजगार मुहैया कराये

सरकार किसानों के भले के लिये जितनी भी योजनायें प्रारम्भ करे देश की जनता इससे खुश ही होगी। मगर सरकार को आगामी आम बजट में किसानों के साथ समाज के अन्य वर्गों का भी ख्याल रखना चाहिये। सरकार को किसानों के साथ भूमिहीन वर्ग, मजदूरों, मध्यम श्रेणी के आम लोगों व वेतनभोगी वर्ग को भी राहत प्रदान करनी चाहिये। आज देश में जितनी तेजी से महंगाई बढ़ती जा रही है उतना ही आम आदमी का जीना मुश्किल होता जा रहा है। एक मध्यम वर्गीय परिवार के लोगों के लिये जीवन यापन करना मुश्किल हो गया है। खर्चों में निरंतर बढ़ोत्तरी हो रही है वहीं आय के साधन कम होते जा रहे हैं। सरकार को गरीबों के लिये वृद्धावस्था पेंशन की राशि में बढ़ोत्तरी करनी चाहिये ताकि वृद्ध जनों को बुढ़ापे में कुछ सहायता मिल सके। गरीबों को मिलने वाली पेंशन का दायरा बढ़ाकर उन पर लागू बंदिशों को कम करना चाहिये ताकि आम जरूरतमन्द गरीब को आसानी से पेंशन मिल सके।

सरकार को आम आदमी को राहत देते हुये आगामी बजट में आयकर छूट का दायरा ढाई लाख से बढ़ाकर पांच लाख करना चाहिये ताकि आयकर छूट का लाभ आम मध्यम वर्गीय के साथ सरकारी कमर्चारियों को भी मिलेगा। इससे लोगों को बहुत राहत मिल सकेगी। आज सरकारी कर्मचारियों की जितनी आय बढ़ी है उससे ज्यादा खर्चे भी बढ़े हैं ऐसे में कर्मचारी का बचत करना मुश्किल हो गया है। ऊपर से टैक्स की मार कर्मचारी की पूरी आर्थिक स्थिति बिगाड़ कर रख देती है। वेतन भोगी वर्ग में आज आयकर की मौजूदा प्रणाली को लेकर भारी नाराजगी व्याप्त हो रही है।

ऐसा माना जा रहा है कि आगामी एक फरवरी को केन्द्रीय वित्त मंत्री पीयूष गोयल द्वारा पेश होने वाले आम बजट में वेतनभोगी व मध्यमवर्गीय वर्ग को खुश करने के लिए सरकार द्वारा निवेश पर आयकर में छूट की सीमा को बढ़ाया जा सकता है। लोगों का मानना है कि समाज में जिस तरह से लोगों का आमदनी का स्तर बढ़ता जा रहा है, उसे देखते हुए निवेश पर छूट की सीमा को डेढ़ लाख रुपये तक ही सीमित रखना कम है।

लोगों की मांग है कि आवास ऋण के बदले चुकाये जाने वाले ब्याज पर भी छूट की सीमा बढ़ायी जाये। इसी तरह बैंगलुरू, हैदराबाद, पुणे, अहमदाबाद जैसे टियर-2 शहरों में रहने वालों को भी मकान किराया भत्ता मद में मिलने वाली छूट की सीमा में भी बढ़ोतरी की जा सकती है। अभी आयकर विभाग सिर्फ चार मेट्रोपालिटिन शहरों- मुंबई, दिल्ली, कोलकाता और चेन्नई को ही महानगर मानता है। इस सूची में पुणे, बेंगलुरू, हैदराबाद, अहमदाबाद जैसे अन्य बड़े शहरों के जुड़ने का लाभ करदाताओं को मिलेगा क्योंकि वहां भी मकान किराये में भारी बढ़ोतरी हो रही है।

देश के कई श्रम संगठन निजी संस्थानों के कर्मचारियों को प्रोवीडेन्ट फण्ड से मिलने वाली पारिवारिक पेंशन की राशि को बढ़ाकर न्यूनतम दो हजार रूपये प्रतिमाह करने की मांग कर रहे हैं जिस पर केन्द्र सरकार को सकारात्मक दृष्टिकोण अपनाना चाहिये। हालांकि केन्द्र में आने के बाद नरेन्द्र मोदी सरकार ने इसे बढ़ाकर न्यूनतम एक हजार रूपये कर दिया था जो कि पूर्व में काफी कम थी। इसी तरह कर्मचारी संगठनों द्वारा छोटे कर्मचारियों को मिलने वाले न्यूनतम वेतन को 18000 रूपये मासिक से बढ़ा कर 26000 रूपये करने की मांग की जा रही है। सरकार को इस पर यथा शीघ्र निर्णय करना चाहिये क्योंकि इतने कम वेतन पर कर्मचारी का गुजारा करना बहुत मुश्किल होता है। बड़े शहरो में तो उन्हें और भी मुश्किल होती है। कर्मचारियों की यह मांग सरकार के समक्ष सातवें वेतन आयोग लागू करने के समय से ही लम्बित पड़ी है। सरकार को इस पर भी तुरन्त निर्णय कर छोटे वेतनभोगी कर्मचारियों की वेतन बढ़ोत्तरी करनी चाहिये।

इसे भी पढ़ेंः आजीवन ग्रामीण क्षेत्रों के विकास के लिए प्रयासरत रहे भारत रत्न नानाजी देशमुख

राजस्थान, मध्य प्रदेश व छत्तीसगढ़ में हार के बाद केन्द्र की मोदी सरकार सचेत हो गयी है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का अब पूरा ध्यान इस बात पर रहेगा कि किसान, मध्यम वर्ग व नौकरी पेशा लोगों को सरकार के समर्थन में किया जाये। इसी के तहत केन्द्र सरकार ने आनन-फानन में आर्थिक रूप से कमजोर सवर्ण जातियों को 10 प्रतिशत आरक्षण देने संबंधित विधेयक दोनों सदनों में पास कराकर कानून बना देने का एतिहासिक काम किया। सवर्णों को आरक्षण देने से उनकी मोदी सरकार के प्रति व्याप्त नाराजगी दूर हुयी है। सवर्णों को खुश करने के बाद अब सरकार एक फरवरी को पेश होने वाले बजट में जनता को आयकर में मिलने वाली छूट को बढ़ाकर कर्मचारी वर्ग व मध्यम श्रेणी को राहत प्रदान कर सकती है।

चुनावी जीतने के लिए सभी राजनीतिक पार्टियां हर युक्ति आजमाने लगती हैं। इस समय भाजपा की केन्द्र सरकार भी वही कर रही है। भाजपा सरकार ने भी अपने साढ़े चार साल के कार्यकाल में कई नये काम किये हैं। यदि वह आगामी बजट में आयकर सीमा ढाई लाख रुपये से बढ़ाकर पांच लाख रुपये कर दे तो कोई बड़ी बात नहीं है। ऐसा किये जाने की संभावना भी है। कई वर्षों से देश की जनता यह मांग भी कर रही है। बढ़ती महंगाई के चलते यह होना भी चाहिए। आगामी आम बजट में ही इस बात का पता चल सकेगा कि केन्द्र सरकार लोगों की मांग पर कितनी राहत प्रदान करती है। इतना तो तय है कि मध्यम वर्ग व वेतन भोगी वर्ग के साथ बिना कोई भी दल केन्द्र में सरकार नहीं बना पायेगा।

-रमेश सर्राफ धमोरा

We're now on WhatsApp. Click to join.
All the updates here:

अन्य न्यूज़