- |
- |
साक्षात्कारः अनुराग ठाकुर ने कहा- हिंदुस्तान की आत्मनिर्भर मुहिम को नई गति देगा बजट
- डॉ. रमेश ठाकुर
- फरवरी 22, 2021 14:40
- Like

केंद्रीय वित्त राज्यमंत्री अनुराग ठाकुर ने कहा है कि आम बजट से पूर्व देश के प्रत्येक क्षेत्रों का सर्वे किया गया। गैर-भाजपा शासित राज्यों से सुझाव नहीं मिले, तो वहां हमने अपने कैडर्स का सहारा लिया। कुल मिलाकर किसी भी क्षेत्र से कोई भेदभाव नहीं किया गया।
बेशक केंद्र सरकार मौजूदा बजट को आत्मनिर्भर भारत पर केंद्रित बताए, लेकिन विपक्ष ज्यादा इत्तेफाक नहीं रखता। बजट अच्छा है इसे मानने को राजी नहीं? फरवरी की पहली तारीख को जब संसद में बजट पेश हुआ तो विपक्षी दलों ने हंगामा काटते हुए बजट को नकारा। जबकि, सरकार बजट को अर्थव्यवस्था के लिए नई गति व आगे बढ़ाने वाला बता रही है। शिक्षा, रेलवे व स्वास्थ्य ऐसे तीन क्षेत्र हैं जिन पर ज्यादा ध्यान दिया गया है। विपक्षी दलों के विरोध पर सरकार के पक्ष को जानने के लिए डॉ. रमेश ठाकुर ने केंद्रीय वित्त राज्य मंत्री अनुराग सिंह ठाकुर से विस्तृत बातचीत की। पेश हैं बातचीत के मुख्य अंश-
इसे भी पढ़ें: साक्षात्कारः डॉ. अनिल गोयल ने कहा- निजी क्षेत्र के कर्मियों को भी मिले कोरोना वैक्सीन
प्रश्न- विपक्ष के विरोध के बावजूद सरकार बजट को सराह रही है, इसमें क्या कुछ खास है?
उत्तर- महामारी से उथल-पुथल हुई व्यवस्था को दोबारा से उभारने पर हमने ज्यादा फोकस किया है। आत्मनिर्भर भारत में महामारी से बचने और अर्थव्यवस्था को धीरे-धीरे पटरी पर लाने का काम मौजूदा बजट से हो ऐसी हमें उम्मीद है। दूसरी बात ये है कि यह बजट भारतवासियों की उम्मीदों के अनुरूप है। विभिन्न क्षेत्रों में सर्वेक्षण कराने के बाद बजट को अंतिम रूप दिया। सरकार अपने पुराने एजेंडे को लेकर आगे बढ़ रही है। ‘सबका साथ, सबका विकास’ ही हमारा मुख्य एजेंडा है। इसी मूल मंत्र को अपना कर हम आगे बढ़ रहे हैं। विपक्ष अगर फिर भी विरोध करता है तो करे, हमें 130 करोड़ देशवासियों की चिंता है। उनकी ज़रूरतों को आधार बनाकर हमने बजट पेश किया है।
प्रश्न- किन जरूरी मुद्दों को ध्यान में रखकर बजट तैयार किया गया?
उत्तर- देखिए, इस बार बजट तैयार करने के तरीकों में काफी बदलाव हुआ। विभिन्न क्षेत्रों का सर्वेक्षण किया है। वह क्षेत्र जिसमें बजट को बढ़ाने की आवश्यकता थी, हमने बढ़ाया। राज्यों से सुझाव मांगे थे, उनके सुझावों के आधार पर केंद्रीय बजट का आर्थिक मसौदा तैयार हुआ। बजट से पूर्व देश के प्रत्येक क्षेत्रों का सर्वे किया गया। गैर-भाजपा शासित राज्यों से सुझाव नहीं मिले, तो वहां हमने अपने कैडर्स का सहारा लिया। कुल मिलाकर किसी भी क्षेत्र से कोई भेदभाव नहीं किया गया।
प्रश्न- नई योजनाओं की झड़ी लगाई गईं, लेकिन इतना पैसा कहां से आएगा?
उत्तर- हां, ये सही बात है धन को जुटाना किसी चुनौती से कम नहीं? लेकिन मुझे लगता है कोई दिक्कत आएगी नहीं, इस बजट से आम लोगों को काफी उम्मीदें हैं। सरकार ने प्रत्येक क्षेत्र में आम आदमी को राहत देने की कोशिशें की हैं। कोरोना महामारी के बाद स्वास्थ्य, सुरक्षा आदि जरूरी क्षेत्र बेहाल हुए हैं। इस बजट से स्वास्थ्य सेवा और बुनियादी ढांचे तथा रक्षा पर अधिक खर्च के माध्यम से आर्थिक सुधार को आगे बढ़ाया जाएगा। निश्चित रूप से सुस्त पड़ी अर्थव्यवस्था में फिर से तेजी देगा मौजूदा आम बजट।
प्रश्न- कोरोना संकट से बिगड़ी अर्थव्यवस्था को ज्यादा ध्यान में रखा गया होगा?
उत्तर- निश्चित रूप से कोविडकाल में किसी एक नहीं, बल्कि सभी क्षेत्रों में बुरा असर पड़ा। इसे उभारने में एकाध वर्ष लगेंगे। वैसे, केंद्रीय बजट में किसी क्षेत्र को छोड़ा नहीं गया। ग़रीबों के कल्याण और विकास में संतुलन साधने का प्रयास किया गया। गांव, गरीब व किसानों पर ज्यादा फोकस किया गया। इसके अलावा आधरभूत ढांचे और उद्योगों के विकास पर भी जोर दिया। पूरा बजट अर्थशात्रियों, एक्सपर्ट आदि के सर्वेक्षण को ध्यान में रखकर बनाया गया।
इसे भी पढ़ें: साक्षात्कारः मेधा पाटकर ने कहा- किसान आंदोलन के आगे सरकार की हार निश्चित है
प्रश्न- सैनिक स्कूलों को खोला जाएगा, लेकिन उनके संचालन की कमान निजी हाथों में देना कुछ हजम नहीं होता?
उत्तर- डिफेंस एक्सपर्ट और इस क्षेत्र में कार्यरत निजी स्वयं सेवी संस्थाओं को ज़िम्मेदारी सौंपी जाएगी। पर, सब कुछ सरकार की निगरानी में ही होगा। ये स्कूल उन क्षेत्रों में खोले जाएंगे जहां कोई कल्पना तक नहीं कर सकता था। दूर-दराज के गाँवों के बच्चे भी सैनिक स्कूलों में दाख़िला ले सकेंगे और प्रशिक्षण प्राप्त करने के बाद देश की सेवा में अपना योगदान दे सकेंगे। ये बहुत पहले किया जाना चाहिए था, लेकिन पूर्ववर्ती सरकारों की उदासीनता के चलते ऐसा फैसला नहीं लिया जा सका। डिफेंस, आर्मी में कई युवक जाना चाहते हैं, लेकिन सही रास्ता नहीं मिलने से उनका सपना पूरा नहीं हो पाता। उनके सपनों को हम पूरा करेंगे।
प्रश्न- बात फिर वहीं आ जाती है इतना धन आएगा कहां से, हालात तो खराब हैं?
उत्तर- हालात इतने भी खराब नहीं हैं जितना दुष्प्रचार किया जा रहा है। तुलनात्मक रूप से देखें, तो आमदनी के हिसाब से भारत अब भी दूसरे देशों के मुकाबले कहीं आगे है। जनता के बीच विपक्ष सही तस्वीर पेश नहीं करता। विरोधी नेता लोगों में भ्रम फैलाते हैं। अगर ऐसा न हो तो स्थिति कुछ और हो। केंद्र सरकार ने तय किया है कि उच्चवर्गीय आय वर्गों का सहयोग लिया जाएगा। सालाना दो करोड़ से ज्यादा कमाने वालों पर तीन फीसदी और पांच करोड़ से ज्यादा कमाने वालों पर सात प्रतिशत का सर चार्ज लगाए जाने का प्रावधान है। नए भारत के विकास में अपने श्रम का योगदान कोई भी देना चाहेगा।
प्रश्न- पेपरलेस बजट के पीछे कोई खास मकसद था?
उत्तर- हां, इस बार नया प्रयोग किया गया। देश में पहली दफे पूर्णतः कागज रहित बजट पेश किया गया। पेपर की जगह टैब का इस्तेमाल हुआ। मकसद कोई खास नहीं था। कागज की बचत और कोविड-19 की गाइडलाइन को ध्यान में रखकर किया गया। पेपर पढ़ने से कहीं ज्यादा सरलता टैब में अंकित चीजों को पढ़कर हुई। प्रयोग सफल हुआ, आगे भी जारी रहेगा।
-जैसा डॉ. रमेश ठाकुर से केंद्रीय वित्त राज्यमंत्री अनुराग ठाकुर ने बातचीत में कहा।
Related Topics
anurag thakur budget atmanirbhar budget details of budget 2021 agri cess on petrol budget 2021 union budget budget news budget 2021 news union budget 2021 income tax slabs paperless budget FM Nirmala Sitharaman made in India tablet budget highlights in hindi budget income tax tax for startups healthcare in budget modi government budget nirmala sitharaman budget in hindi union budget 2021 new taxes in budget agriculture sector in budget msme sector बजट बजट 2021 निर्मला सीतारमण मोदी सरकार नरेंद्र मोदी अर्थव्यवस्था Interview अनुराग ठाकुर आत्मनिर्भर भारत कोविड-19मध्यप्रदेश की सेवा मुख्यमंत्री नहीं, अभिभावक के रूप में कर रहे हैं शिवराज
- मनोज कुमार
- मार्च 5, 2021 12:15
- Like

मध्यप्रदेश की सत्ता में मुख्यमंत्री रहने का एक रिकार्ड तेरह वर्षों का है तो दूसरा रिकार्ड चौथी बार मुख्यमंत्री बन जाने का है। साल 2018 के चुनाव में मामूली अंतर से शिवराजसिंह सरकार की पराजय हुई तो लोगों को लगा कि शिवराजसिंह का राजनीतिक वनवास का वक्त आ गया है।
नए मध्यप्रदेश की स्थापना के लगभग 7 दशक होने को आ रहे हैं। इस सात दशकों में अलग-अलग तेवर और तासीर के मुख्यमंत्रियों ने राज्य की सत्ता संभाली है। लोकोपयोगी और समाज के कल्याण के लिए अलग-अलग समय पर योजनाओं का श्रीगणेश होता रहा है और मध्यप्रदेश की तस्वीर बदलने में कामयाबी भी मिली है। लेकिन जब इन मुख्यमंत्रियों की चर्चा करते हैं तो सालों-साल आम आदमी के दिल में अपनी जगह बना लेने वाले किसी राजनेता की आज और भविष्य में चर्चा होगी तो एक ही नाम होगा शिवराजसिंह चौहान। 2005 में उनकी मुख्यमंत्री के रूप में जब ताजपोशी हुई तो वे उम्मीदों से भरे राजनेता के रूप में नहीं थे और ना ही उनके साथ संवेदनशील, राजनीति के चाणक्य या स्वच्छ छवि वाला कोई विशेषण नहीं था। ना केवल विपक्ष में बल्कि स्वयं की पार्टी में उन्हें एक कामचलाऊ मुख्यमंत्री समझा गया था। शिवराज सिंह की खासियत है वे अपने विरोधों का पहले तो कोई जवाब नहीं देते हैं और देते हैं तो विनम्रता से भरा हुआ। वे बोलते खूब हैं लेकिन राजनीति के मंच पर नहीं बल्कि अपने लोगों के बीच में। आम आदमी के बीच में। ऐसा क्यों नहीं हुआ कि जिनके नाम के साथ कोई संबोधन नहीं था, आज वही राजनेता बहनों का भाई और बेटियों का मामा बन गया है। यह विशेषण इतना स्थायी है कि वे कुछ अंतराल के लिए सत्ता में नहीं भी थे, तो उन्हें मामा और भाई ही पुकारा गया। कायदे से देखा जाए तो वे मुख्यमंत्री नहीं, एक अभिभावक की भूमिका में रहते हैं।
इसे भी पढ़ें: ममता के कुशासन के खिलाफ खड़ी हो गई बंगाल की जनता, भाजपा शानदार जीत हासिल करेगी: शिवराज सिंह चौहान
मध्यप्रदेश की सत्ता में मुख्यमंत्री रहने का एक रिकार्ड तेरह वर्षों का है तो दूसरा रिकार्ड चौथी बार मुख्यमंत्री बन जाने का है। साल 2018 के चुनाव में मामूली अंतर से शिवराजसिंह सरकार की पराजय हुई तो लोगों को लगा कि शिवराजसिंह का राजनीतिक वनवास का वक्त आ गया है। लेकिन जब वे ‘टायगर जिंदा है’ का हुंकार भरी तो विरोधी क्या, अपने भी सहम गए। राजनीति ने करवट ली और एक बार फिर भाजपा सत्तासीन हुई। राजनेता और राजनीतिक विश्लेषक यहां गलतफहमी के शिकार हो गए. सबको लगा कि अब की बार नया चेहरा आएगा। लेकिन पार्टी के वरिष्ठ नेता नरेन्द्र मोदी और अमित शाह को पता था कि प्रदेश की जो स्थितियां है, उसे शिवराजसिंह के अलावा कोई नहीं संभाल पाएगा। देश की नब्ज पर हाथ रखने वाले मोदी-शाह का फैसला वाजिब हुआ। कोरोना ने पूरी दुनिया के साथ मध्यप्रदेश को जकड़ रखा था। पहले से कोई पुख्ता इंतजाम नहीं था। संकट में समाधान ढूंढने का ही दूसरा नाम शिवराजसिंह चौहान है। अपनी आदत के मुताबिक ताबड़तोड़ लोगों के बीच जाते रहे। उन्हें हौसला देते रहे। इलाज और दवाओं का पूरा इंतजाम किया। भयावह कोरोना धीरे-धीरे काबू में आने लगा। इस बीच खुद कोरोना के शिकार हो गए लेकिन काम बंद नहीं किया।
एक वाकया याद आता है। कोरोना का कहर धीमा पड़ा और लोग वापस काम की खोज में जाने लगे। इसी जाने वालों में एक दम्पत्ति भी औरों की तरह शामिल था लेकिन उनसे अलग। इस दम्पत्ति ने इंदौर में रूक कर पहले इंदौर की मिट्टी को प्रणाम किया और पति-पत्नी दोनों ने मिट्टी को माथे से लगाया। इंदौर का, सरकार और मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान का शुक्रिया अदा कर आगे की यात्रा में बढ़ गए। यह वाकया एक मिसाल है।
कोरोना संकट में मध्यप्रदेश से गए हजारों हजार मजदूर जो बेकार और बेबस हो गए थे, उनके लिए वो सारी व्यवस्थाएं कर दी जिनके लिए दूसरे राज्यों के लोग विलाप कर रहे थे। श्रमिकों की घर वापसी से लेकर खान-पान की व्यवस्था सरकार ने निरपेक्ष होकर की। मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान की पहल पर अनेक स्वयंसेवी संस्था भी आगे बढक़र प्रवासी मजदूरों के लिए कपड़े और जूते-चप्पलों का इंतजाम कर उन्हें राहत पहुंचायी। आज जब कोरोना के दूसरे दौर का संकेत मिल चुका है तब शिवराज सिंह आगे बढक़र इस बात का ऐलान कर दिया है कि श्रमिकों को मध्यप्रदेश में ही रोजगार दिया जाएगा। संभवत: मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान देश के पहले अकेले मुख्यमंत्री हैं जिन्होंने ऐसा फैसला लिया है। उनकी सतत निगरानी का परिणाम है कि लम्बे समय से कोरोना से मृत्यु की खबर शून्य पर है या एकदम निचले पायदान पर। आम आदमी का सहयोग भी मिल रहा हैं कोरोना के दौर में लोगों को भय से बचाने के लिए वे हौसला बंधाते रहे हैं।
इसे भी पढ़ें: मेरे सवा साल के वनवास के दौरान कमलनाथ ने प्रदेश को पहुंचाया बहुत नुकसान: शिवराज
वे मध्यप्रदेश को अपना मंदिर मानते हैं और जनता को भगवान। शहर से लेकर देहात तक का हर आदमी उन्हें अपने निकट का पाता है। चाय की गुमटी में चुस्की लगाना, किसानों के साथ जमीन पर बैठ कर उनके दुख-सुख में शामिल होना। पब्लिक मीटिंग में आम आदमी के सम्मान में घुटने पर खड़े होकर अभिवादन कर शिवराजसिंह चौहान ने अपनी अलहदा इमेज क्रिएट की है। कभी किसी की पीठ पर हाथ रखकर हौसला बढ़ाना तो कभी किसी को दिलासा देने वाले शिवराजसिंह चौहान की ‘शिवराज मामा’ की छवि ऐसी बन गई है कि विरोधी तो क्या उनके अपनों के पास इस इमेज की कोई तोड़ नहीं है।
सभी उम्र और वर्ग के प्रति उनकी चिंता एक बराबर है। बेटी बचाओ अभियान से लेकर बेटी पूजन की जो रस्म उन्होंने शुरू की है, वह समाज के लोगों का मन बदलने का एक छोटा सा विनम्र प्रयास है। इस दौर में जब बेटियां संकट में हैं और वहशीपन कम नहीं हो रहा है तब ऐसे प्रयास कारगर होते हैं। बेटियों को लेकर उनकी चिंता वैसी ही है, जैसा कि किसानों को लेकर है। लगातार कृषि कर्मण अवार्ड हासिल करने वाला मध्यप्रदेश अपने धरती पुत्रों की वजह से कामयाब हो पाया है तो उन्हें हर कदम पर सहूलियत हो, इस बात का ध्यान भी शिवराजसिंह चौहान ने रखा है। विद्यार्थियो को स्कूल पहुंचाने से लेकर उनकी कॉपी-किताब और फीस की चिंता सरकार कर रही है। विद्यार्थियों को समय पर वजीफा मिल जाए, इसके लिए भी कोशिश जा रही है। मध्यप्रदेश शांति का टापू कहलाता है तो अनेक स्तरों पर सक्रिय माफिया को खत्म करने का ‘शिव ऐलान’ हो चुका है। प्रदेश के नागरिकों को उनका हक दिलाने और शुचिता कायम करने के लिए वे सख्त हैं।
पहली दफा मुख्यमंत्री बन जाने के बाद सबसे पहले वेशभूषा में परिवर्तन होता है लेकिन जैत से निकला पांव-पांव वाले भैया शिवराज आज भी उसी पहनावे में हैं। आम आदमी की बोलचाल और देशज शैली उन्हें लोगों का अपना बनाती है। समभाव और सर्वधर्म की नीति पर चलकर इसे राजनीति का चेहरा नहीं देते हैं। इस समय प्रदेश आर्थिक संकट से गुजर रहा है लेकिन उनके पास इस संकट से निपटने का रोडमेप तैयार है। प्रदेश के हर जिले के खास उत्पादन को मध्यप्रदेश की पहचान बना रहे हैं तो दूर देशों के साथ मिलकर उद्योग-धंधे को आगे बढ़ा रहे हैं। आप मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान की आलोचना कर सकते हैं लेकिन तर्क नहीं होगा। कुतर्क के सहारे उन्हें आप कटघरे में खड़े करें लेकिन वे आपको सम्मान देने से नहीं चूकेंगे। छोडि़ए भी इन बातों को। आइए जश्र मनाइए कि वे एक आम आदमी के मुख्यमंत्री हैं। मामा हैं, भाई हैं। ऐसा अब तक दूजा ना हुआ।
-मनोज कुमार
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)
शशिकला ने इसलिए दी है अपने राजनीतिक हितों की कुर्बानी...पर पिक्चर अभी बाकी है
- नीरज कुमार दुबे
- मार्च 4, 2021 15:25
- Like

शशिकला का राजनीति से दूर रहने वाला बयान इसलिए चौंका गया क्योंकि बेंगलुरू जेल से रिहा होने के बाद शशिकला ने पिछले महीने ही सक्रिय राजनीति में आने की घोषणा की थी। जेल से छूटने के बाद शशिकला ने चेन्नई में जबरदस्त रोड शो भी किया था।
चुनावों के दौरान नेता या तो दल बदल कर या पुराना गठबंधन तोड़कर नया गठबंधन बनाकर राजनीतिक सनसनी फैला देते हैं या फिर चुनावों से पहले कोई बड़ी हस्ती राजनीति में एंट्री मार लेती है लेकिन तमिलनाडु विधानसभा चुनावों से पहले सबको चौंकाते हुए वीके शशिकला ने राजनीति से दूर रहने का ऐलान कर सबको चौंका दिया है। अन्नाद्रमुक की निष्कासित नेता और तमिलनाडु की दिवंगत मुख्यमंत्री जे जयललिता की दशकों तक करीब सहयोगी रहीं वीके शशिकला ने घोषणा की है कि ‘वह राजनीति से दूर रहेंगी’ लेकिन जयललिता के ‘स्वर्णयुगीन’ शासन के लिए प्रार्थना करेंगी। एक अप्रत्याशित और आकस्मिक ऐलान के तहत उन्होंने ‘‘अम्मा के समर्थकों’’ से भाई-बहन की तरह काम करने की अपील की और यह भी गुजारिश की कि वे यह सुनिश्चित करें कि जयललिता का ‘स्वर्णयुगीन शासन जारी रहे।’’ उन्होंने एक बयान में कहा, ''मैं राजनीति से दूर रहूंगी और अपनी बहन पुराचि थलावी (जयलिलता), जिन्हें मैं देवीतुल्य मानती हूं, और ईश्वर से अम्मा के स्वर्णयुगीन शासन की स्थापना के लिए प्रार्थना करती रहूंगी।’’ उन्होंने जयललिता के सच्चे समर्थकों से छह अप्रैल के चुनाव में एकजुट होकर काम करने और साझे दुश्मन को सत्ता में आने से रोकने की अपील की।
इसे भी पढ़ें: राजनीति से रहूंगी दूर, जयललिता के स्वर्णयुगीन शासन के लिए प्रार्थना करूंगी: शशिकला
शशिकला का राजनीति से दूर रहने वाला बयान इसलिए चौंका गया क्योंकि बेंगलुरू जेल से रिहा होने के बाद शशिकला ने पिछले महीने ही सक्रिय राजनीति में आने की घोषणा की थी। जेल से छूटने के बाद शशिकला ने चेन्नई में जबरदस्त रोड शो भी किया था जिसे उनके शक्ति प्रदर्शन के रूप में भी देखा गया था। ऐसे में तमाम तरह की अटकलें लगायी जा रही हैं कि अचानक से ऐसा क्या हुआ कि शशिकला राजनीति से दूर हो गयीं। वह शशिकला जोकि जयललिता के जीवित रहते एक तरह से पार्टी और राज्य के शासन संबंधी निर्णयों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती थीं, वह शशिकला जिन्होंने जयललिता के निधन के बाद मुख्यमंत्री बनने का पूरा प्रयास किया लेकिन उन्हें अचानक जेल जाना पड़ गया, आखिर वह सजा पूरी होने के बाद क्यों अपनी राजनीतिक ताकत दिखाने से पीछे हट गयीं? जेल से छूटने के बाद शशिकला ने अन्नाद्रमुक में वापसी के भरसक प्रयास किये लेकिन जब दाल नहीं गली तो ऐसा लग रहा था कि वह अपना मोर्चा बनाकर अन्नाद्रमुक को नुकसान पहुँचा सकती हैं। लेकिन शशिकला ने ऐसा नहीं किया।
अटकलें हैं कि शशिकला के इस अप्रत्याशित कदम की पटकथा भाजपा ने लिखी है। पहले तो भाजपा ने प्रयास किये कि शशिकला की अन्नाद्रमुक में वापसी हो जाये लेकिन जब ऐसा नहीं हो सका तो शशिकला को राजनीति से दूर रहने के लिए मना लिया गया क्योंकि शशिकला अगर अपना मोर्चा खड़ा करतीं तो द्रमुक को फायदा हो सकता था। बताया जा रहा है कि भाजपा का पूरा प्रयास है कि तमिलनाडु में एनडीए का शासन बरकरार रहे। यदि द्रमुक और कांग्रेस गठबंधन तमिलनाडु में सरकार बनाने में सफल रहता है तो विपक्षी खेमा मजबूत होगा साथ ही दक्षिण में भगवा खेमे की धाक कम पड़ेगी। भाजपा की नजर इसके साथ ही 2024 के लोकसभा चुनावों पर भी है। यदि एक बार फिर अन्नाद्रमुक सरकार बने तो लोकसभा चुनावों के दौरान तमिलनाडु में एनडीए का प्रदर्शन सुधर सकता है। उल्लेखनीय है कि पिछले चुनावों में एनडीए का यहां नुकसान उठाना पड़ा था। फिलहाल तो शशिकला के ऐलान के बाद अन्नाद्रमुक काफी मजबूत हो गयी है क्योंकि जो पार्टी बगावत रोकने में सफल हो जाये उसका पलड़ा भारी हो ही जाता है। मुख्यमंत्री ई. पलानीस्वामी और उपमुख्यमंत्री ओ. पनीरसेल्वम के बीच विवाद सुलझाने और दोनों को साथ मिलकर काम करने के लिए भी भाजपा ने ही मनाया था। देखा जाये तो अन्नाद्रमुक में एकता कायम रखने के पीछे भाजपा का ही सबसे बड़ा हाथ है।
इसे भी पढ़ें: विधानसभा चुनाव में जीत के लिए जयललिता समर्थकों को एकजुट होना चाहिए: शशिकला
बहरहाल, शशिकला ने अपने इस कदम से तमिलनाडु की जनता को यह भी संदेश दिया है कि भले उनके भतीजे ने अन्नाद्रमुक से निकाले जाने के बाद अपनी अलग पार्टी बना ली हो लेकिन अम्मा की भक्त शशिकला ने अन्नाद्रमुक से निकाले जाने के बाद कोई नई पार्टी नहीं बनायी और अम्मा की सत्ता की वापसी के लिए अपने राजनीतिक हितों की कुर्बानी दे दी। अब अगर तमिलनाडु में अन्नाद्रमुक का वर्तमान नेतृत्व सत्ता में वापस नहीं लौट सका तो चुनावों के बाद पार्टी की कमान शशिकला को सौंपने की माँग भी हो सकती है। इसलिए शशिकला की इस चाल का पूरा परिणाम सामने आ गया है यह नहीं कहा जा सकता।
-नीरज कुमार दुबे
Related Topics
VK Sasikala Tamil Nadu Assembly Election 2021 AIADMK TTV Dhinakaran Tamil Nadu Assembly Polls Tamil Nadu Election Tamil Nadu Election News Tamil Nadu Vidhan Sabha Election VK Sasikala Announces to Quit Politics AIADMK DMK वीके शशिकला तमिलनाडु विधानसभा चुनाव तमिलनाडु विधानसभा चुनाव 2021 चेन्नई समाचार अन्नाद्रमुक द्रमुक एमके स्टालिन दिनाकरण भाजपाहमारी जीवनशैली में मूल्यों की अहमियत क्यों घटती जा रही है ?
- ललित गर्ग
- मार्च 3, 2021 17:39
- Like

कोरोना महामारी से अस्त-व्यस्त हुए जीवन में हर व्यक्ति अपने जीवन की विसंगतियों एवं विडम्बनाओं को लेकर आत्ममंथन कर रहा है, कोरोना की त्रासदी ने इंसान को अपने जीवन मूल्यों और जीवनशैली पर पुनर्चिंतन करने को मजबूर किया है।
''अणुव्रत-मिशन'' की 72 वर्षों की एक ‘युग यात्रा’ नैतिक प्रतिष्ठा का एक अभियान है। परिवर्तन जीवन का शाश्वत नियम है, प्रगति एवं विकास का यह सशक्त माध्यम है। जीवन का यही आनन्द है, यह जीवन की प्रक्रिया है, नहीं तो जीवन, जीवन नहीं है। टूटना और बनना परिवर्तन की चौखट पर शुरू हो जाता है। नये विचार उगते हैं। नई व्यवस्थाएं जन्म लेती हैं एवं नई शैलियां, नई अपेक्षाएं पैदा हो जाती हैं। अब जब भारत नया बनने के लिए, स्वर्णिम बनने के लिए और अनूठा बनने के लिए तत्पर है, तब एक बड़ा सवाल भी खड़ा है कि हमें नया भारत कैसा बनाना है? ऐसा करते हुए हमें यह भी देखना है कि हम इंसान कितने बने हैं? हममें इंसानियत कितनी आई है? हमारी जीवनशैली में मूल्यों की क्या अहमियत है? यह एक बड़ा सवाल है। बेशक हम नये शहर बनाने, नई सड़कें बनाने, नये कल-कारखाने खोलने, नई तकनीक लाने, नई शासन-व्यवस्था बनाने के लिए तत्पर हैं लेकिन मूल प्रश्न है नया इंसान कौन बनायेगा?
इसे भी पढ़ें: चौथी सालगिरह पर अपनी उपलब्धियाँ जनता को बताने की शुरुआत करेगी योगी सरकार
अणुव्रत आंदोलन अपनी स्थापना से लेकर अब तक इसी प्रयास में रहा कि इंसान इंसान बने, विकास के साथ-साथ हम विवेक को कायम रखें, नैतिक मूल्यों को जीवन का आधार बनाएं। जिस प्रकार गांधीजी ने ‘मेरे सपनों का भारत’ पुस्तक लिखी, वैसे ही अणुव्रत आन्दोलन के संस्थापक आचार्य तुलसी ने मेरे सपनों का हिन्दुस्तान एक प्रारूप प्रस्तुत किया जिसमें उन्होंने गरीबी, धार्मिक संघर्ष, राजनीतिक अपराधीकरण, अस्पृश्यता, नशे की प्रवृत्ति, मिलावट, रिश्वतखोरी, शोषण, दहेज और वोटों की खरीद-फरोख्त को विध्वंस का कारण माना। उन्होंने स्टैंडर्ड ऑफ लाइफ के नाम पर भौतिकवाद, सुविधावाद और अपसंस्कारों का जो समावेश हिन्दुस्तानी जीवनशैली में हुआ है उसे उन्होंने हिमालयी भूल के रूप में व्यक्त किया है। आचार्य श्री महाश्रमण इसी भूल को सुधारने के लिए व्यापक प्रयत्न कर रहे हैं। अणुव्रत का स्थापना दिवस- 1 मार्च, 2021 को एक नई एवं आदर्श जीवनशैली को लेकर प्रस्तुत हुआ। कोरोना महामारी से अस्त-व्यस्त हुए जीवन में हर व्यक्ति अपने जीवन की विसंगतियों एवं विडम्बनाओं को लेकर आत्ममंथन कर रहा है, कोरोना की त्रासदी ने इंसान को अपने जीवन मूल्यों और जीवनशैली पर पुनर्चिंतन करने को मजबूर किया है। इसी बदलाव की चौखट पर अणुव्रत आन्दोलन एक ऐसी जीवनशैली की स्थापना के लिये तत्पर है, जिसे अपना कर मानवमात्र स्व-कल्याण से लेकर विश्व कल्याण की भावना को चरितार्थ करने में सक्षम हो सकेगा।
जीवन के त्रासदियों एवं कमियों के परिमार्जित करने का एक सफल एवं सार्थक उपक्रम है अणुव्रत। यह नये भारत को बनाने के हमारे संकल्प-सपने क्या-क्या हो, इसकी एक बानगी प्रस्तुत करता है। कहते हैं कि सपने पूरे करने के लिये उन्हें देखना जरूरी है। अणुव्रत आन्दोलन आदर्श जीवन का एक संकल्प है, एक संरचना है, एक सपना है। जिसे आधार बनाकर स्वर्णिम भारत बनाना है। लेकिन हम भारतीयों का यह दुर्भाग्य है कि हमने सपने देखना छोड़ दिया है, हमारे संकल्प बौने होते जा रहे हैं। हम आत्मकेन्द्रित होते जा रहे हैं। ‘जितना है उसी में संतुष्ट’ की सोच अब वैश्विक प्रतिस्पर्धा में हमें पीछे छोड़ रही है। 72 साल पहले देश ने एकजुट होकर एक सपना देखा, वो पूरा भी हुआ। तभी हम आजाद हैं। लेकिन हम आजादी के नशे में जरूरी मूल्यों को भूल गये। परिणाम सामने है, हम आजाद होकर भी हमारे बाद आजाद हुए राष्ट्रों की तुलना में पीछे हैं, समस्याग्रस्त हैं, अपसंस्कृति के शिकार हैं, आलसी हैं, अनैतिक हैं, भ्रष्ट हैं। फिर वक्त सपने देखने का आ चुका है। देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी देशवासियों से ‘नये भारत-सशक्त भारत- आत्मनिर्भर भारत, सपनों का भारत’ के निर्माण का आह्वान कर रहे हैं, वहीं अणुव्रत अनुशास्ता आचार्य महाश्रमण ‘मूल्यों का भारत-स्वर्णिम भारत’ निर्मित करने के लिये पांव-पांव चल कर नैतिक शक्तियों को बल दे रहे हैं। एक स्वर्णिम भारत के लिए नैतिक मूल्य बुनियादी आवश्यकता है।
इसे भी पढ़ें: अखण्ड भारत संबंधी मोहन भागवत का बयान बहुत गहराई से भरा हुआ है
बहत्तर वर्षों पूर्व दिल्ली के चांदनी चौक में अणुव्रत का एक ऐतिहासिक अधिवेशन हुआ, तब अणुव्रत अचरज की चीज थी। अणुव्रत अनुशास्ता से राष्ट्र का नया परिचय था। आज उस रूप में अणुव्रत बुजुर्ग है। अणुव्रत अनुशास्ता नैतिक जगत के शिखर पुरुष हैं। उस समय के विषय थे- काला बाजार, मिलावट....। आज के विषय हैं काला धन, भ्रष्टाचार, लोकतंत्र शुद्धि, चुनाव शुद्धि, शिक्षा में सुधार.....। बुराइयां रूप बदल-बदल कर नये मुखौटे लगाकर आती हैं, जिन्हें शांति व अहिंसा प्रिय नागरिकों को भुगतना पड़ता है। जूझना पड़ता है। सत्ता के स्तर पर गन्दी राजनीति और व्यवस्था के स्तर पर भ्रष्टाचार एवं पक्षपात ने हमारे राष्ट्रीय जीवन के नैतिक मूल्यों को ध्वस्त कर दिया है। राष्ट्रीय विकास के केन्द्र में व्यक्ति नहीं होगा तो सब कुछ नष्ट हो जाएगा। अणुव्रत का दर्शन है कि लोक सुधरेगा तो तंत्र सुधरेगा। व्यक्ति का रूपांतरण होगा तो समाज का रूपांतरण होगा।
अणुव्रत आंदोलन विचार क्रांति के साथ-साथ राष्ट्र क्रांति का मंच है। जब भी राष्ट्र में नैतिक मूल्य धुंधलाने लगे, अणुव्रत आन्दोलन ने एक दीप जलाया। यह दीप मानव संस्कृति का आधार है और दीप का आधार है नैतिक मूल्य, अन्धकार से प्रकाश की यात्रा, असत्य पर सत्य की स्थापना, निराशाओं में आशाओं का संचार। अणुव्रत ऐसी ही सार्थक यात्रा है और इस यात्रा के दौरान ही मनुष्य अपने ‘स्व’, ‘पर’ और प्रकृति को गंभीरता से ले पाता है। इस चेतना के बाद ही वह समझ सकता है कि मनुष्य की वैयक्तिकता और सामाजिकता एक ही सिक्के के दो पहलु हैं। तभी वह सही अर्थों में इंसान हो पाता है। वह इंसान जिसके बारे में गालिब ने बड़ी कसक के साथ कहा था, ‘आदमी को भी मयस्सर नहीं इंसां होना।’
भारत एक बड़ी पुरानी सभ्यता रहा है और उसकी अपनी समृद्ध संस्कृति है। हमारे विकास का मॉडल उसी बिन्दु से शुरू करना चाहिए, लेकिन हम अपनी जड़ों से कटकर, अपने संस्कारों से विलग होकर, इतिहास के शून्य में खड़े होते रहे हैं। अब स्वर्णिम भारत को आकार देते हुए हमें इस पर विचार करना चाहिए कि वे कौन-सी दरारें थीं जो हमारे सामाजिक ढांचे को खोखला बनाती रहीं, जीवनबोध में वह कैसा ठहराव था कि हम, जिन्हें संसार में सर्वोपरि होना था, सबसे पीछे रह गये। हमारा जीवन जिन नैतिक आधारों के आसपास बसता है, उन्हें ठीक से समझना और ठीक से बरतना ही जीवन में वास्तविक रूपान्तरण पैदा कर सकता है- व्यक्ति के भी और राष्ट्र के भी। यहीं स्वर्णिमता के नये अर्थ खुलते हैं, यहीं संस्कृति के जीवंत अध्यायों की पुनर्रचना की संभावना पैदा होती है। यहीं मानव जीवन की गरिमा का वास्तविक आधार बनता है। और यहीं कही एक सूर्योदय है। वरना हांकने को तो कुछ भी हांका जा सकता है और नैतिकता को हांकना तो बहुत आसान है, पर यह आत्मक्षय का ही मार्ग प्रशस्त करता है।
अणुव्रत स्थापना दिवस शाश्वत से साक्षात् और सामयिक सत्य को देखने, अनुभव करने का एक विनम्र प्रयास है। आत्म-प्रेरित नैतिक मूल्यों की प्रतिष्ठा का संयुक्त अभियान है। महानता की दिशा में गति का प्रस्थान है। सपने एवं संकल्प सदैव आशावादी होते हैं। पर वर्तमान से कोई कभी सन्तुष्ट नहीं होता। इतिहास कभी भी अपने आप को समग्रता से नहीं दोहराता। अपने जीवित अतीत और मृत वर्तमान के अन्तर का ज्ञान जिस दिन देशवासियों को हो जाएगा, उसी दिन हमें मालूम होगा कि महानता क्या है। हम स्वर्ग को जमीन पर नहीं उतार सकते, पर बुराइयों से तो लड़ अवश्य सकते हैं, इस लोकभावना को जगाना होगा, यही अणुव्रत का मिशन है। महानता की लोरियाँ गाने से किसी राष्ट्र का भाग्य नहीं बदलता, बल्कि तंद्रा आती है। इसे तो जगाना होगा, भैरवी गाकर। महानता को सिर्फ छूने का प्रयास जिसने किया वह स्वयं बौना हो गया और जिसने संकल्पित होकर स्वयं को ऊंचा उठाया, महानता उसके लिए स्वयं झुकी है।
हमें गुलाम बनाने वाले सदैव विदेशी नहीं होते। अपने ही समाज का एक वर्ग दूसरे को गुलाम बनाता है- शोषण करता है, भ्रष्ट बनाता है। उस राष्ट्र की कल्पना करें, जहां कोई नागरिक इतना अमीर नहीं हो कि वह किसी गरीब को खरीद सके अथवा कोई इतना निर्धन नहीं हो कि स्वयं को बिकने के लिए बाध्य होना पड़े। मैं न खाऊंगा और न खाने दूंगा- यही हो सकता है स्वर्णिम राष्ट्र का आधार। आज जिन माध्यमों, महापुरुषों, मंचों से नैतिकता मुखर हो रही है, वे बहुत सीमित हैं। अणुव्रत ने इन शक्तियों को खड़ा किया है। आचार्य श्री तुलसी, आचार्य श्री महाप्रज्ञ की परम्परा को आचार्य श्री महाश्रमण आगे बढ़ा रहे हैं। साध्वीप्रमुखा कनकप्रभाजी ने अणुव्रत को बहुत बल दिया है। अगर हम ऊपर उठकर देखें तो दुनिया में अच्छाई और बुराई अलग-अलग दिखाई देगी। भ्रष्टाचार के भयानक विस्तार में भी नैतिकता स्पष्ट अलग दिखाई देगी। आवश्यकता है कि नैतिकता की धवलता अपना प्रभाव उत्पन्न करे और उसे कोई दूषित न कर पाये। इस आवाज को उठाने के लिए ''अणुव्रत'' सदा ही माध्यम बना है। नैतिकता का प्रबल पक्षधर बना है।
-ललित गर्ग
Related Topics
Acharya Tulsi religious struggle political criminalization Hindustani lifestyle Acharya Shri Mahashraman anuvrat Foundation Day moral values Acharya Shree Mahapragya Self-reliant India Corona Virus Kanakaprabha Indian society atmanirbhar bharat anuvrat andolan अणुव्रत आंदोलन आचार्य तुलसी धार्मिक संघर्ष राजनीतिक अपराधीकरण हिन्दुस्तानी जीवनशैली आचार्य श्री महाश्रमण अणुव्रत स्थापना दिवस नैतिक मूल्य आचार्य श्री महाप्रज्ञ आत्मनिर्भर भारत कोरोना वायरस कनकप्रभा भारतीय समाज
