शिक्षक पढ़ा तो बहुत कुछ दे पर मैनेजमेंट पढ़ाने का मौका तो दे

teacher teaches you a lot but give a chance to teach

स्कूल भी समाज का एक अंग है। शिक्षक तो स्कूल का हिस्सा हैं ही। इस नाते स्वच्छता अभियान को मजबूती प्रदान करने के लिए राजनेताओं ने इसे कंधे को चुना।

''सुबह के आठ बजने वाले हैं। बच्चे अपनी अपनी नाक पोंछते हुए धकीयाते, मुकीयाते पंक्ति में खड़े हो रहे हैं। साथ में लगभग चिल्लाती, डांटती मैडम उन बच्चों के साथ खड़ी हैं। प्रार्थना संपन्न होती है। कुछ आदर्श वाचन होते हैं। अब बारी आती है अभिभावकों के लिए कि आधार कार्ड अब तक नहीं दिए जल्द जमा करा दें। बच्चों को समय पर स्कूल साफ सुथरे रूप में भेजें आदि। और अंत राष्ट्र गान से होता है।''

''कहानी अब शुरू होती है। शिक्षक/शिक्षिका एक एक कर बच्चों के नाम उपस्थिति रजिस्टर पर दर्ज करती जाती हैं। बीच बीच में कॉपी फाड़ने, चिकोटी काटने, मारने, गाली देने जैसी आम शिकायतों का निपटारा भी करती हैं। अब बारी है स्कूल के एक कमरे में लगे चेहरादर्ज मशीन के आगे सभी बच्चों को खड़ा करना और उपस्थिति दर्ज कराना।''

इस प्रक्रिया में शिक्षिका को आठ बज कर पैंतालीस मिनट हो चुके हैं। बच्चे कक्षा में वापस आ चुके हैं। ''बच्चों आज हम पढ़ेंगे बहादुर बित्तो की कहानी।'' ''मैडम जी अ से अनार वाली किताब निकालनी है न?'' अभी मैडम जी एक पैरा ग्राफ ही पढ़ी होंगी कि स्कूल का चपरासी आता है और कहता है मैडम जी बड़ी मैडम ने जल्दी बुलाया है। मैडम अपने बच्चों को छोड़कर नीचे या जहां भी बड़ी मैडम बैठा करती हैं वहां हाजिर होती हैं। सुनो एक अर्जेंट काम है। अभी के अभी एक लिस्ट चाहिए कि पिछले साल कितने बच्चों के पैसे उनके एकाउंट में गए। किनके पैसे वापस आ गए आदि। ये लिस्ट मुझे तुरंत चाहिए। 

यह कहानी नहीं बल्कि कम से कम दिल्ली के एक प्राथमिक स्कूल का रोजनामचा है। इसमें समय इधर उधर कर सकते हैं। कामों की सूची में आधार कार्ड को बैंक खाते में लिंक कराना, लड़का लड़कियां कितनी ऐसी हैं जो स्कूल नहीं जातीं आदि का सर्वे जैसे काम जोड़ सकते हैं। काम खत्म नहीं होंगे हां बच्चों का समय जरूर हम खत्म कर रहे हैं। 

स्कूल को हमने आज तक पढ़ने−पढ़ाने के तौर पर ही देखा है। लेकिन वह जमाना अब लद गया। स्कूल में शिक्षक पढ़ाते कम और काम ज्यादा किया करते हैं। हाल में प्रद्युम्न की मृत्यु ने हम नागर समाज को झकझोर कर रख दिया। इस घटना ने नागर समाज के विद्रूप चेहरे को सामने किया। इस घटना ने टीचर के साथ ही स्कूल में काम करने वाले शिक्षक के साथ ही दूसरे कर्मचारियों के लिए मुश्किलें पैदा कीं। इसी का परिणाम है कि पूर्वी दिल्ली नगर निगम के शिक्षक शाम और रात में अपने स्कूल जा कर गार्ड के साथ सेल्फी लेकर अपने अधिकारी को फोटो भेजते हैं। स्कूल निरीक्षक उन तसवीरों को आगे फारवर्ड करता है। शिक्षक, अधिकारी सब रात बिरात स्कूलों में निरीक्षण करते हैं कि स्कूल ठीक तो हैं।

स्वच्छता अभियान ने समाज को बदलने का एक कैम्पेन चलाया है। जिसमें गली गली, नगर नगर साफ हो। इससे किसी को भी कोई गुरेज नहीं हो सकता। स्कूल भी समाज का एक अंग है। शिक्षक तो स्कूल का हिस्सा हैं ही। इस नाते स्वच्छता अभियान को मजबूती प्रदान करने के लिए राजनेताओं ने इसे कंधे को चुना। बल्कि इनकी गर्दन कमजोर थी सो उन्हें कुछ गैर शैक्षिक कामों की सूची में और काम जोड़ने के फरमान जारी किए। हाल ही में बिहार के भागलपुर और औरंगाबाद में शिक्षा विभाग ने आदेश जारी किए कि स्कूल आने से पूर्व और जाने के उपरांत अपने आस−पास यदि कोई खुले शौच करता मिले तो उसकी तसवीर खींच कर उन्हें भेंजें और उन्हें समझाने की कोशिश करें। पहली बात तो यही कि जिसकी तसवीर खींची जाएगी वह क्या सहजता से चुपचाप बैठा रहेगा या फिर मारने दौड़ेगा। दूसरी बात शिक्षक मैदान मैदान घूम घूम कर पता करे कि कौन खुले में शौच करता है। उस पर तुर्रा यह कि राज्य के शिक्षा मंत्री मानते हैं कि इसमें हर्ज ही क्या है। शिक्षक समाज पढ़ा लिखा है। जनगणना आदि काम तो करते ही हैं। इसे भी अंजाम दे सकते हैं। 

दूसरी घटना मध्य प्रदेश से आई है कि अब शिक्षकों को अपने क्षेत्र में शौचालय निर्माण के लिए गड्ढ़े भी खोदने पड़ेंगे। मध्य प्रदेश के टीकमगढ़ जिले के शिक्षा विभाग के अधिकारी ने ऐसा ही फरमान जारी किया है। शिक्षा अधिकारी कार्यालय के पत्र क्रंमाक संख्या स्वच्छता/2017/821 दिनांक 15 सितंबर 2017, में आदेश दिए गए हैं कि 'स्वच्छता ही सेवा' जनआंदोलन के तहत ग्राम पंचायतों में शौचालयों के लिए गड्ढ़े खोदे जाने हैं। अब हम स्कूली शिक्षा जगत में घटित दोनों ही वाकयों को समझने की कोशिश करें और यह भी समझें कि शिक्षकों को स्वच्छता अभियान में जोड़ने के फरमान किस प्रकार से स्कूली पठन−पाठन से दूर करते हैं। मिड डे क्या कम समय खाता था जो एक और कवायद यह शुरू की गई कि शिक्षक अपने आस−पास इसका भी निरीक्षण करें कि कौन कहां खुले में शौच करता है और किसके यहां शौचालय बनना है, उसके लिए गड्ढा बनाना है तो खोदने में मदद करें आदि।

यह सामान्य घटना नहीं मानी जा सकती। यह शिक्षा और स्कूली पठन−पाठन में अनावश्यक राजनैतिक हस्तक्षेप के रूप में भी देखने और समझने की आवश्यकता है। अपनी राजनीति और अंक बनाने के चक्कर में बच्चों को पठन−पाठन से हम दूर कर रहे हैं। हालांकि इस तथ्य को कोई स्वीकार नहीं करेगा कि स्कूली स्तर पर यदि बच्चे ठीक से नहीं पढ़ पा रहे हैं तो इसके पीछे एक बड़ा कारण यह भी है। शिक्षकों को गैर शैक्षिक कामों में झोंका जाता है। उन्हें कक्षा के बीच से बाहर निकाल कर डेटा सूचना, सूची आदि बनाने और सर्वे में लगा दिया जाता है। इन पंक्तियों के लेखक का हालिया अनुभव यह है कि एक सहायक शिक्षा निदेशक ने लेखक के सामने ही स्कूल निरीक्षक को फोन किया कि मुझे फलां शिक्षक एक हफ्ते के लिए हेड ऑफिस में चाहिए लेकिन प्रधानाचार्य उसे भेज नहीं रही हैं। अब क्या इसके लिए मुझे चिट्ठी लिखनी होगी? और फोन काट दिया। अनुमान लगाना कठिन नहीं है कि अब उस शिक्षक के बच्चे और कक्षा एक हफ्ते तक बेवा की तरह होगी। कोई भी दूसरा शिक्षक उनकी कक्षा और बच्चे को क्या उतना और उसी शिद्दत से ध्यान दे पाएगा जितनी उस कक्षा का तय शिक्षक देता है। संभव है वह चाह कर भी न दे पाए क्योंकि उसके पास पहले से ही चालीस से पचास बच्चे हैं। यदि उसने दोनों कक्षाओं को एक साथ बैठा लिया तो...। 

अफसोसनाक स्थिति यही है। यह केवल दिल्ली या बिहार या फिर मध्य प्रदेश का ही मसला नहीं है बल्कि अमूमन देश के अन्य राज्यों में भी प्राथमिक शिक्षा और स्कूल में होने वाली शिक्षकीय बरताव और पठन−पाठन की स्थिति यही है। कई शिक्षकों से बातचीत के आधार पर लेखक कह सकता है कि हमारे शिक्षक ऐसे हैं जो वास्तव में पढ़ाना चाहते हैं। वे तैयारी कर के भी आते हैं कि आज फलां विषय इस तरह से पढ़ाउंगा। लेकिन बीच में ही उन्हें कक्षा से बाहर बुला कर अन्य तथाकथित कामों की सूची पकड़ा दी जाती है। क्या शिक्षा विभाग, सरकार इस तरह की गैरशैक्षिक गतिविधियों से अनभिज्ञ है? क्या शिक्षा अधिकारियों को इस बाबत जानकारी नहीं है? ऐसा नहीं माना जा सकता। लेकिन मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने हाल ही में लर्निंग आउटकम जांचने के लिए आदेश जारी किए हैं। अब शिक्षक पढ़ाने की बजाए इस नए काम में जुट जाएंगे। बच्चे कितना सीख रहे हैं इसकी जानकारी तो होनी ही चाहिए लेकिन हमें इसका भी इल्म हो कि शिक्षक को पढ़ाने के लिए कक्षा में कितना वक्त मिलता है।

तमाम रिपोर्ट के हवाले से हमें बताया जाता रहा है कि प्राथमिक स्तर पर बच्चों को पढ़ना लिखना नहीं आता। बच्चा सामान्य सा वाक्य व गणित का सवाल हल नहीं कर पाता। यह तो हकीकत है ही लेकिन जमीनी सच्चाई तो यह भी है कि शिक्षक को समय समय पर अपनी कक्षा को छोड़कर बैंक, अधार नंबर लिंक कराने, जनगणना, बालिका गणना आदि कामों में समय देना होता है। यदि वास्तव में हम चाहते हैं कि हमारे बच्चे पढ़ें और वास्तव में जीवन में कुछ सीखें तो इस आदर्श वाक्य को अमलीजामा पहनाने के लिए शिक्षकों को अवसर भी प्रदान करना होगा।

और कहानी ऐसे अंतिम मकाम पर पहुंचती है कि मिड डे के बाद 10.40 में बच्चे वापस कक्षा में आते हैं। अब शिक्षक के पास 10.45 से 12 बजे तक का समय होता है। इस समय में वह कितना पढ़ा पाता है। इसका अनुमान लगाना कठिन नहीं है।

कौशलेंद्र प्रपन्न 

(लेखक शिक्षा एवं भाषा पैडागोजी विशेषज्ञ हैं।)

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