Interview: कंक्रीट की दिल्ली में प्राकृतिक जमीन नहीं बची, इसलिए बारिश का पानी जल वर्षा सोखने में असक्षमः सुरेश चंद्र

Former Chief Engineer Suresh Chandra
Prabhasakshi

सबसे मुख्य कारण यही है दिल्ली की ऊपरी सतह से प्राकृतिक और पारंपरिक मिट्टी पूरी तरह से गायब हो चुकी है। जैसे दिल्ली के अलावा अन्य राज्यों में बारिश होने पर मिट्टी पानी सोख लेती है। लेकिन दिल्ली में ऐसा नहीं होता? क्योंकि पूरी दिल्ली कंक्रीट, सीमेंट, ईट-गारे आदि से पाटी जा चुकी है।

मानसून की पहली बारिश में दिल्ली डूब गई, झेल नहीं पाई तेज बारिश? जगह-जगह जलभराव हुआ। टनल, अंडरपास, पुल-पुलिया, सड़कें सभी पानी से लबालब भर गईं। पीडब्ल्यूडी, दिल्ली जल बोर्ड, नगर निगम, एनडीएमसी ऐ ऐसे महकमें हैं जिन पर जलभराव से निपटने की सामुहिक जिम्मेदारियां रहती हैं। लेकिन ये सभी आपस में ही भिड़े पड़े हैं। एक-दूसरे पर नाकामियों के दोष मढ़े जा रहे हैं। इनकी इन हरकतों की मार बेकसूर दिल्लीवासे झेल रहे हैं। ये समस्या आखिर क्यों साल-दर-साल नासूर बन रही है। चुनावों में तो सभी दल इन समस्याओं से निपटने का दम भरते हैं, लेकिन चुनाव बीतने के बाद निल बटे सन्नाटा? इस विकट समस्या पर प्रकाश डालने के लिए डॉ. रमेश ठाकुर ने एमसीडी के प्लानिंग पूर्व चीफ इंजीनियर सुरेश चंद्रा से जानना चाहा आखिर इस समस्या के कारण और निवारण हैं क्या? पेश हैं बातचीत के मुख्य हिस्से।

प्रश्नः जलभराव से आखिर कैसे निपटा जाए?

उत्तरः रैनी सीजन से पूर्व मई-जून की तैयारियों में और जोर देना होगा। दिल्ली नगर निगम, दिल्ली जल बोर्ड और लोक निर्माण विभाग को आपस में तालमेल बिठाना चाहिए। समस्या होने पर एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप से बचें। निपटने के इंतजाम ईमानदारी से हां। बारिश से पहले जल बोर्ड पंप सेट, सीवरेज ट्रॉली और सीवर जेटिंग मशीन से पूरी दिल्ली के नालों की माद निकाली जाए। संवेदनशील क्षेत्रों में पंप सेट पहले से तैनात किए जाएं। जलभराव वाले स्थानों पर सीसीटीवी कैमरे लगे जिन्हें कंट्रोल रूप से जोड़ा जाए। संभावित जलभराव वाले प्वाइंट चिंहित हों, जल निकासी की उचित व्यवस्था की जाए। इन दो महीनों में कर्मचारियों छुट्टियां निरस्त हो, समस्या उत्पन्न होने पर सभी चौकन्ने रहें। अगर बजट कम हो तो उसकी डिमांड अधिकारियों को मानसून से पूर्व करनी चाहिए।

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प्रश्नः हल्की बारिश से ही पूरी दिल्ली पानी-पानी हो जाती है, आखिर क्यों?

उत्तरः सबसे मुख्य कारण यही है दिल्ली की ऊपरी सतह से प्राकृतिक और पारंपरिक मिट्टी पूरी तरह से गायब हो चुकी है। जैसे दिल्ली के अलावा अन्य राज्यों में बारिश होने पर मिट्टी पानी सोख लेती है। लेकिन दिल्ली में ऐसा नहीं होता? क्योंकि पूरी दिल्ली कंक्रीट, सीमेंट, ईट-गारे आदि से पाटी जा चुकी है। नीचले भू-स्तर में पानी का जाना तो दूर की बात, सांस तक नहीं पहुंचती। यही कारण है कि थोड़ी बारिश को भी राजधानी नहीं झेल पाती। यहां बढ़ती आबादी भी एक बड़ा कारण है। दिल्ली-एनसीआर का जलस्तर सैकड़ों फिट नीचे चले जाने का कारण भी यही है कि बारिश का पानी नीचले भाग में नहीं पहुंचता। बारिश का पानी यूं ही सड़कों पर लबालब भरा रहता है। बिना देर किए इस समस्या से निपटना होगा, आधुनिक तकनीकों को अपनाना होगा, कच्ची जमीन को फिर से तैयार करना होगा। पर, मुझे लगता नहीं कि हुकूमतें और व्यवस्थाएं ऐसा कुछ करेंगी? बारिश के वक्त जलभराव को लेकर पक्ष-विपक्ष में सिर्फ राजनीति होती है। जबकि, समाधान और विकल्प मिलकर निकालने चाहिए, इस ओर कोई ध्यान नहीं देता?

प्रश्नः रैनी सीजन के दौरान उत्पन्न समस्याओं के निवारण को लेकर पूर्व में जो मुकम्मल तैयारियां होनी चाहिए, शायद वैसी होती नहीं?

  

उत्तरः ऐसा नहीं है, जलभराव से निपटने के लिए प्रशासनिक स्तर पर कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी जाती। 4 मीटर गहरे नाले की जिम्मेदारी एमसीडी पर होती है जिसे नजफगढ़ डेन और एक अन्य डेन से की जाती है। एमसीडी का मेंटेनेंस विभाग पूरी तरह से कमर कसता है। इसके अलावा विभाग द्वारा प्लानिंग होती हैं। मानसून से पहले लगातार बैठकें की जाती हैं जिनमें सभी विभागों के जिम्मेदार और प्रमुख अधिकारी रहते हैं। सभी को अपने-अपने हिस्से की जिम्मेदारियां दी जाती हैं। मई-जून के महीने में ये सभी आपस में तालमेल बिठाकर डृन से नालों की साफ-सफाई करते हैं। ये दो महीनों इन विभागों के लिए किसी चुनौती से कम नहीं होते। लेकिन, बारिश होने पर स्थिति जब गड़बड़ाती है तो पता चलता है कि कमियां कहां-कहां हुईं। लेकिन बीते कुछ वर्षों में देखें तो दिल्ली में जलभराव की समस्या तेजी से उभरी है जिसका समाधान निकाला जाना चाहिए।

प्रश्नः इस हिसाब से तो दिल्ली में वर्षा जल संचयन भी नहीं हो पाता होगा?

उत्तरः इसमें कोई दो राय नहीं? दिल्ली की 92 फीसदी पानी की निर्भरता हरियाणा, पंजाब व उत्तर प्रदेश पर रहती है। दिल्ली अपने हिस्से से मात्र 8 फीसदी की भरपाई करती है। बारिश का पानी सहजना अत्यंत जरूरी है। इसके लिए सभी को गंभीरता से सोचना होगा। यहां कुछ अलग-अलग इलाकों में हर साल भूजल स्तर करीब 3 से 4 मीटर नीचे खिसक रहा है। दिल्ली को रोजाना 1,100 मिलियन लीटर पानी चाहिए होता है जिसमें जल बोर्ड सिर्फ 900 मिलियन लीटर पानी की आपूर्ति कर पाता है। 200 मिलियन लीटर का अंतर दिल्ली के भूजल भंडार से पूरा होता है। पानी की ये भयाभता लगातार बढ़ रही है। पानी का दोहन और बारिश का बर्बाद होता जल आने वाले दिनों के लिए गहरा संकट है।

प्रश्नः जलभराव से निपटने की जिम्मेदारी किन-किन विभागों पर रहती है?

उत्तरः एमसीडी, दिल्ली जल बोर्ड, पीडब्ल्यूडी व एनडीएमसी जैसे प्रमुख विभागों पर होती है। 4 फुट गहरे नालों की मांद निकालने का जिम्मा एमसीडी पर होता है। 60 फीट गहरे नालों की सफाई की जिम्मेदारी दिल्ली जल बोर्ड पर रहती है। बाकी प्रदेश स्तरीय सरकार का पीडब्ल्यूडी विभाग और नगरीय विभाग यानी एनडीएमसी पर होती है। भैंरो सिंह मार्ग, प्रगति मैदान अंडरपास, मिंटो रोड़, दिल्ली गेट जैसे लो-लाइन एरिया की प्रमुख जगहों पर प्रत्येक मानसून में स्थिति डामाडोल होती है। दिक्कत सबसे बड़ी दरअसल ये है, स्थिति सामान्य होने के बाद हमारे विभाग भी शांत हो जाते है, ये भूल जाते हैं कि अगले वर्ष भी ऐसा ही होगा? मुकम्मल और कारगर विधि अपनानी होगी, वरना स्थिति प्रत्येक वर्ष यूं ही रहेगी। पहले ऐसा होता था कि जलभराव से कुछ ही परेशानियां होती थीं, जैसे यातायात बाधित होना, सड़कों से संपर्क टूट जाना। पर, अब जानमाल का नुकसान होने लगा है। एकाध व्यक्तियों के पानी में डूबने से मौत भी हुई हैं। ऐसी दुखद घटनाएं नहीं घटनी चाहिए।

- बातचीत में जैसा पूर्व चीफ इंजीनियर सुरेश चंद्र ने डॉ. रमेश ठाकुर को बताया।

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