साउथ के लोगों के भगवान रजनीकांत, कभी काटते थे बस में टिकट

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हेमा पंत । Dec 12 2018 4:32PM

वैसे तो भारत में किसी भी फिल्म को रिलीज करने के लिए कोई छुट्टी वाला दिन देखा जाता है। या फिर ऐसे समय पर फिल्म रिलीज की जाती है जब कोई फेस्टिवल आने वाला हो, ताकि ज्यादा से ज्यादा लोग लोग थिएटर जा सकें।

वैसे तो भारत में किसी भी फिल्म को रिलीज करने के लिए कोई छुट्टी वाला दिन देखा जाता है। या फिर ऐसे समय पर फिल्म रिलीज की जाती है जब कोई फेस्टिवल आने वाला हो, ताकि ज्यादा से ज्यादा लोग लोग थिएटर जा सकें। लेकिन आज हम जिस शख्स के बारे में बात करने जा रहे हैं, उनकी फिल्म किसी भी दिन रिलीज कर दी जायें, छुट्टी तो अपने आप ही हो जाती है। जी हां हम बात कर रहे है  'थलाइवा'  स्टार रजनीकांत की। जिन्हें लोग सिर्फ एक एक्टर और सुपरस्टार की तरह ही नहीं मानते बल्कि भगवान की तरह मानते हैं। यहां तक की दक्षिण भारत में रजनीकांत के नाम से कई मंदिर भी बनवाये गये है। इन मंदिरों में लोग रजनीकांत को भगवान मानकर इनकी पूजा करते है। मुझे नहीं लगता कि शायद इस तरीके का प्यार दुनिया में किसी को दिया जाता है। लेकिन रजनीकांत के इस अदभुत सफलता के पीछे एक बेहद लंबा संघर्ष छुपा हुआ है। 

रजनीकांत का जन्म 12 दिसंबर 1950 को कर्नाटक के बैंगलोर में एक मिडिल क्लास फैमिली में हुआ था । बचपन में उनके माता - पिता ने उनका नाम मराठा वीर राजा छत्रपति के नाम पर शिवाजी राव गायकवाड रखा था। इनके पिता रामोजी राय एक पुलिस कॉन्स्टेबल थे। चार भाई- बहनों में रजनीकांत सबसे छोटे है। 1956 में उनके पिता के रिटायर होने के बाद उनका पूरा परिवार बैंगलोर के हनुमंत नगर में रहने चला गया , जहां उनके पिता जी का अपना घर था। रजनीकांत बचपन से ही पढ़ने में बेहद अच्छे थे। साथ ही साथ उन्हें खेल कूद में भी उनकी काफी रुचि थी।

जब रजनींकात केवल 9 साल के थे तभी उनकी मां की मृत्यु हो गयी थी। इसके बाद उनके भाई ने उन्हें पढ़ाई के लिए रामकृष्ण मिशन के अंतगृत चलाये गये एक मठ में भेज दिया। इसे रामकृष्ण मठ के नाम से भी जाना जाता था। मठ में रजनीकांत को पढ़ाई- लिखाई के अलावा भारतीय संस्कृति और वेदो का भी ज्ञान मिला।  मठ में रहते हुए ही वह नाटको में भाग लिया करते थे। 

मठ में रहते दौरान एक बार रजनीकांत ने महाभारत में एकलव्य के दोस्त का रोल अदा किया था। वहां मौजूद लोगो ने उनकी एक्टिंग को बेहद सरहाया था। उस नाटक को देखने के लिए मशहूर कवि डी.आर बेन्द्रे भी वहां मौजूद थे। डी.आर बेन्द्रे को रजनीकांत की एक्टिंग बेहद पंसद आयी थी। वह रजनीकांत से मिले और उन्होनें रजनीकांत की एक्टिंग को बेहद सरहाया। इस सरहाना के चलते रजनीकांत की रुचि एक्टिंग में और भी बढ़ने लगी थी। छठी क्लास के बाद उनका एडमिशन आचार्य पब्लिक पाठशाला में करवाया गया था।

वह पढ़ाई के साथ- साथ बहुत सारे नाटको में भी भाग लिया करते थे। इस कारण थिेएटर में उनकी रुचि और बढ़ने लगी और उन्होनें एक्टिंग में अपना करियर बनाने का सोचा। लकिन स्कूल खत्म होने के बाद से ही उनकी फैमिली की आर्थिक स्थिती बेहद खराब होने लगी थी। इसी के चलते रजनीकांत ने कुली और कारपेंटर जैसे  छोटे- छोटे काम भी किये। उसी बीच बैंगलोर ट्रांस पोर्ट सर्विस में कंडक्टर के वेकन्सी निकली और रजनीकांत ने यह टेस्ट पास कर लिया था। 

फिर वह बस कंडक्टर की नौकरी करने लगे। इस नौकरी की वजह से उनके घर की स्थिती थोड़ी से बेहतर हो गयी थी। अब वह थियटर की दुनिया से अलग तो हो गये थे,  लेकिन उन्होनें एक्टिंग नहीं छोड़ी थी। वह बस में टिकट काटते समय अलग- अलग तरह की एक्टिंग करने और सीटी मारने के लिए पैसेंजर में बेहद मशहूर थे। अभी तक तो वह बस कंडक्टर का काम किये जा रहे थे,  लेकिन यह उनके पैशन से बिल्कुल अलग था। उसी बीच रजनीकांत ने मद्रास फिल्म इंस्टीट्यूट का विज्ञापन एक न्यूज पेपर में देखा था। तब रजनीकांत अपना मन बना चुके थे कि वह इस इंस्टीट्यूट से एक्टिंग सीखेगें। 

जब रजनीकांत ने एक्टिंग सिखने की बात अपने घर पर बतायी तब उनके परिवार वालो ने पैसो की कमी के चलते उनका सपोर्ट नहीं किया। लेकिन रजनीकांत के साथ काम करने वाले उनके एक दोस्त राज बहादुर ने एक्टिंग के लिए उनके पागलपन को देखा था और इसी वजह से उन्होनें रजनीकांत को मद्रास फिल्म इंस्टीट्यूट में दाखिला करवाने में पूरी मदद की थी। इसके बाद रजनीकांत ने बस कंडक्टर की नौकरी छोड़ दी थी। साल 1973 में रजनीकांत ने मद्रास फिल्म इंस्टीट्यूट से एक्टिंग सिखना शुरु किया। कुछ पैसो के लिए वह जगह- जगह जाकर एक्टिंग भी किया करते थे।

एक बार इंस्टीट्यूट में नाटक के दौरान डायरेक्टर के बाला चन्दर की नजर रजनीकांत पर पड़ी। के बाला चंदर उनकी एक्टिंग से इतना प्रभावित हुए कि वहीं पर उन्होनें रजनीकांत को अपनी एक तमिल फिल्म के लिए साइन कर लिया था। के बाला चंदर ने उन्हे तमिल सिखने का सुझाव भी दिया।

इसके बाद 1975 में के बाला चंदर की तमिल ड्रामा फिल्म 'अपूर्वा रांगगाल'  से रजनीकांत ने अपना फिल्मी सफर शुरु किया था। इस फिल्म में रजनीकांत ने एक विलन का रोल निभाया था।वैसै उनका यह रोल कुछ खास नहीं था, लेकिन फिर भी लोग उनकी एक्टिंग के टैलेंट को पहचानने लगे। इसी एक्टिंग के दम पर उन्हें इसी साल एक और फिल्म ' कथा संगम ' में काम करने का मौका मिला। इसके बाद रजनीकांत ने कभी भी पिछे मुड़कर नहीं देखा। और अपनी यूनिक एक्टिंग की बदौलत तमिल इंडस्ट्री के सुपर स्टार बन गये। 

इसी बीच रजनीकांत की मुलाकात लता रंगा आचार्य से हुई , जो अपने कॉलेज की मैगजीन के लिए उनका इंटरव्यू लेने आयी थी। रजनीकांत  लता को देखते ही अपना दिल दे बैठे थे। 26 फरवरी 1985 को लता संग शादी रचा ली । तमिल फिल्मों के सुपरस्टार बनने के बाद रजनीकांत ने  हिन्दी फिल्मों में अपना कदम रखा। अपनी पहली हिन्दी फिल्म ' अंधा कानून ' अमिताभ और हेमा मालिनी संग  नजर आये। इसके बाद उन्होनें  जॉन जानी जनार्दन , तमंचा , दोस्ती दुश्मनी , उत्तर दक्षिण जैसी दमदार फिल्में बॉलीवुड को दी है। 

रजनीकांत की सबसे बड़ी बात यह है कि आज भी वह इतने बड़े सुपरस्टार होने के बावजूद जमीन से जुड़े हुए है। वह फिल्मों के बाद असल जिंदगी में एक आम - आदमी की तरह नजर आते है । वह दूसरे सफल लोगो से अलग असल जिंदगी में बेहद ही साधारण तरीके से रहते है।

रजनीकांत जी की सबसे खूबसूरत बात कि अगर कोई भी व्यक्ति उनसे मदद मांगने आता है, तो वह उस व्यक्ति को कभी खाली हाध नहीं भेजते। रजनीकांत एक ऐसे सुपरस्टार हैं जिन्होनें अपनी सफलता को कभी भी अपने आप पर हावि नहीं होने दिया है। शायद इसीलिये उनके प्रशंसक उन्हें प्यार ही नहीं करते बल्कि उन्हें पूजते है। 

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