आखिर ऑस्ट्रेलिया के बड़े अखबारों ने अपना फ्रंट पेज खाली क्यों छोड़ा?

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अंकित सिंह । Oct 21 2019 4:27PM

सोमवार को ऑस्ट्रेलिया के सभी अखबारों ने अपने पहले पन्ने को खाली छोड़ दिया है। इसका उद्देश्य सरकार के फैसलों के खिलाफ अपना विरोध दर्ज कराना है।

जब जब अखबार और पत्रकारिता पर अंकुश लगाने की कोशिश की गई है तब तब सरकारों का विरोध हुआ है। आए दिन, ऑस्ट्रेलिया में भी कुछ ऐसा ही देखने को मिल रहा है। सोमवार को ऑस्ट्रेलिया के सभी अखबारों ने अपने पहले पन्ने को खाली छोड़ दिया है। इसका उद्देश्य सरकार के फैसलों के खिलाफ अपना विरोध दर्ज कराना है। हर रोज खबरों से पटे रहने वाले पहले पन्नों पर आज सिर्फ इतना लिखा है, 'जब सरकार आपसे सच दूर रखती हो, वे क्या कवर करेंगे?' माना जा रहा है कि #righttoknow अभियान के तहत अखबारों ने यह कदम उठाया है। The Australaian, The Sunday Morning Herald, Financial Reiview, The Daily Telegraph जैसी प्रमुख अखबारों ने अपने पहले पन्ने को खाली रखा है। 

ट्विटर पर #righttoknow और #pressfreedom के हैशटैग के साथ पत्रकारों ने तस्वीरें ट्वीट की हैं। दरअसल मामला यह है कि जून में पुलिस ने ऑस्ट्रेलियाई ब्रॉडकास्टिंग कॉरपोरेशन (एबीसी) पर छापेमारी की थी। इतना ही नहीं, न्यूज कॉर्प ऑस्ट्रेलिया के पत्रकार के घर में भारी तोड़-फोड़ भी की गई। तीन पत्रकारों के खिलाफ मुकदमा चल सकता है। पुलिस का रह रवैया पत्रकार, मीडिया मालिकों और मीडिया संस्थानों को नागवार गुजरा। इसके बाद से ही मीडिया संगठनों ने सरकार का विरोध करना शुरू कर दिया। सरकार एक ऐसा कानून भी लाई है जिससे पत्रकारों को रिपोर्टिंग करने में बाधा उत्पन्न हो रही है। पत्रकारों का यह भी कहना है सख्त सुरक्षा कानूनों के तहत sting reporting में दिक्कतें आ रही हैं और जनता का "जानने का अधिकार" खतरे में है। 

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न्यूज कॉर्प ऑस्ट्रेलिया के कार्यकारी चेयरमैन माइकल मिलर ने कई अखबारों के पहले पन्ने की तस्वीर ट्वीटर पर शेयर करते हुए अपील की है कि आम लोग सरकार से यह पूछें कि "वे हमेशा क्या छिपाने की कोशिश कर रहे हैं?" ऑस्ट्रेलिया का नेशनल प्रेस क्लब ने भी ऐसी ही तस्वीर को ट्वीट करते हुए लिखा है,"Your right to know"। हालांकि ऑस्ट्रेलिया सरकार ने पत्रकारों के इस दावे को खारिज कर दिया है। खुद प्रधानमंत्री स्कॉट मॉरिसन ने कहा कि प्रेस स्वतंत्रता ऑस्ट्रेलिया के लोकतंत्र के लिए महत्वपूर्ण है। मामला चाहे जो हो, पर यह बात तो सच है कि सरकारें अपने हिसाब से पत्रकारिता करवाने के लिए तमाम उपाय लगाती हैं। 

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