तू चल मैं आता हूं... (व्यंग्य)

election-politics-satire
विजय कुमार । Oct 29 2018 2:32PM

बचपन में एक आलसी कौए की कहानी पढ़ी थी। जंगल में सब पक्षी मिल कर रहते थे। जरूरत पड़ने पर एक-दूसरे का सहयोग भी करते थे; पर कौए से जब कोई किसी काम को कहता, तो उसका जवाब कुछ और होता था।

बचपन में एक आलसी कौए की कहानी पढ़ी थी। जंगल में सब पक्षी मिल कर रहते थे। जरूरत पड़ने पर एक-दूसरे का सहयोग भी करते थे; पर कौए से जब कोई किसी काम को कहता, तो उसका जवाब होता था-


तू चल मैं आता हूं, चुपड़ी रोटी खाता हूं

ठंडा पानी पीता हूं, हरी डाल पर बैठा हूं।

इस कारण सारे पक्षी उससे नाराज रहते थे। एक बार जंगल में आग लग गयी। सब एक-दूसरे का सहयोग करते हुए बच गये; पर कौए का साथ किसी ने नहीं दिया और वह जल मरा। इस कहानी का पूरा तो नहीं, पर कुछ संदर्भ इन दिनों हो रहे चुनावों से भी है।

भारत के कई राज्यों में विधानसभा के चुनाव होने जा रहे हैं। जो इनमें बाजी मार लेगा, 2019 में उसी का पलड़ा भारी रहेगा। इसलिए सब दलों ने जनबल, धनबल और बाहुबल से लेकर सचबल, झूठबल और ढोंगबल भी झोंक दिया है। पर इन चुनावों का एक दूसरा पक्ष भी है। छोटे चुनाव में हर किसी को लगता है कि वह अपनी जाति, क्षेत्र या संपर्क के आधार पर चुनाव जीत सकता है। ऐसे समय में नेता जी के आसपास बने रहकर उन्हें बल्ली पर चढ़ाने वाले भी कम नहीं होते। इससे और कुछ नहीं तो दिन भर के खाने और रात के पीने का ही जुगाड़ बन जाता है। 

लेकिन चुनाव के लिए किसी पार्टी का टिकट भी चाहिए। पार्टी का हाथ सिर पर होने से वोट और नोट दोनों मिल जाते हैं। कई लोग दो-तीन पार्टियों पर निगाह रखते हैं। एक में खुद, दूसरे में पत्नी, तो तीसरे में बेटा और बहू। जिसे टिकट मिल जाए, वही लड़ लेगा। पर नेता जी जिन दो सीटों पर तैयारी कर रहे थे, उनमें से एक ओ.बी.सी. को मिल गयी और दूसरी अनुसूचित महिला को। अब नेता जी क्या करें ? अतः इन दिनों दल और दिल बदल खूब हो रहा है। एक नेता जी ने ‘राष्ट्रीय असंतुष्ट पार्टी’ बना ली है। सब तरफ से ठुकराए लोग उनके तबेले में जमा हो रहे हैं। 

हमारे यहां कई छोटे अखबार छपते हैं। उनमें से एक सांध्य दैनिक का नाम है ‘फटी आवाज’। उसने एक नया कॉलम ‘तू चल मैं आता हूं’ शुरू किया है। उसमें दल और दिल बदलने वालों का खुलासा किया जा रहा है। लोग खूब चटखारे लेकर ये खबरें पढ़ते हैं। उसमें खबर छपवाने और रुकवाने से लेकर अफवाहों तक के रेट तय हैं। अखबार का मालिक मजे में है। सारे साल तो उसे कोई पूछता नहीं; पर अब उसकी पांचों उंगलियां घी में और सिर कढ़ाई में है।

अच्छा नमस्ते। 'फटी आवाज' आ गया है। देखता हूं आज कौन कहां से कहां गया ? इसलिए बाकी बातें कल।           

-विजय कुमार

We're now on WhatsApp. Click to join.
All the updates here:

अन्य न्यूज़