तिरंगा फहराया था (कविता)
युवा कवयित्री प्रतिभा तिवारी की ओर से प्रेषित कविता ''तिरंगा फहराया था'' में गणतंत्र दिवस के दौरान देश भर में दिखी छटा पर प्रकाश डाला गया है।
युवा कवयित्री प्रतिभा तिवारी की ओर से प्रेषित कविता 'तिरंगा फहराया था' में गणतंत्र दिवस के दौरान देश भर में दिखी छटा पर प्रकाश डाला गया है।
कल वतन के नाम
हमने हिंदुस्तान के
हर कोने में
तिरंगा फहराया था
सभी को तिरंगे के
रंग में रंगा पाया था
दुल्हन से सजे हिंदुस्तान ने
जय हिन्द का नारा लगाया था
तपती धूप, कड़कती ठंड
चढ़ते उतरते पारे में भी
हमारे जवानों ने
अपना कर्तव्य निभाया था
हर कठिनाई पार कर
जीत का गीत गाया था
राष्ट्रगान और तिरंगे ने
की देश की अगुवाई थी
अरे कल ही तो हम सभी ने
तिरंगे के सम्मान की
कसम खाई थी
झुके कभी ना ध्वज हमारा
यही था हम सभी का नारा
ना जाने कौन से कितने
और कब कैसे वादे निभाए गए
आज गलियों, मैदानों में
चौराहों और बाजारों में
बिखरे पाए गए
मत लो हाथों में
जब कर ना सको सम्मान
सर झुक जाए, सर कट जाए
झुकने ना दो, गिरने ना दो
तिरंगे में ही जान हमारी
गर्व और अभिमान है
इसी तिरंगे की खातिर
जाने कितने बलिदान हैं
आन-बान और शान तिरंगा
हम सबका अभिमान तिरंगा
भारत माँ की जान तिरंगा
देश का है स्वाभिमान तिरंगा
हम सबकी पहचान तिरंगा
वीरों के ही रंग में रंगा
वीरों का बलिदान तिरंगा
शहीदों का सम्मान तिरंगा
हम सबका है मान तिरंगा
पूरा हिंदुस्तान तिरंगा......
-प्रतिभा तिवारी
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