मृदुला जी के लेखन का केंद्र थी संघर्षों से जूझती स्त्री

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समकालीन साहित्यकारों में प्रसिद्ध उपन्यासकार तथा कथाकार मृदुला गर्ग का जन्म 25 अक्टूबर 1938 में पश्चिम बंगाल के कोलकाता में हुआ था।

मृदुला गर्ग हिन्दी साहित्य के उन कुछ खास लेखिकाओं में से एक हैं जिन्होंने अपने लेखन के जरिए स्त्री संघर्ष के विविध पहलुओं को चित्रित किया है। इसके अलावा उन्होंने अपने उपन्यासों के द्वारा स्त्री-पुरुष सम्बन्धों में नए आयामों पर प्रकाश डाला है। आज मृदुला गर्ग जी का जन्मदिन है इस अवसर पर हम उनके बारे में कुछ रोचक बातें बताते हैं।

जानें मृदुला गर्ग के बारे में 

समकालीन साहित्यकारों में प्रसिद्ध उपन्यासकार तथा कथाकार मृदुला गर्ग का जन्म 25 अक्टूबर 1938 में पश्चिम बंगाल के कोलकाता में हुआ था। लेकिन उन्होंने अपनी पढ़ाई दिल्ली से पूरी की। उन्होंने दिल्ली स्कूल ऑफ़ इकोनोमिक्स से अर्थशास्त्र में एमए किया था।

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मृदुला जी की रचनाएं

मृदुला गर्ग ने लगभग सभी विधाओं में रचना की। उन्होंने कहानी, उपन्यास, निबंध, यात्रा संस्मरण तथा कटाक्ष इत्यादि पर लेखन कार्य किया। उनके उपन्यासों में  चित्तकोबरा, अनित्य, 'मैं और मैं', कठगुलाब, 'मिलजुल मन' और 'वसु का कुटुम' प्रमुख हैं। इसके अलावा कहानी संग्रह में 'कितनी कैदें', 'डैफ़ोडिल जल रहे हैं', 'टुकड़ा- टुकड़ा आदमी', 'उर्फ सैम', 'ग्लेशियर से', 'शहर के नाम', 'चर्चित कहानियाँ', समागम, 'मेरे देश की मिट्टी अहा', 'संगति विसंगति', 'जूते का जोड़ गोभी का तोड़', चार नाटक- 'एक और अजनबी', 'जादू का कालीन', 'तीन कैदें' और 'सामदाम दंड भेद' प्रमुख हैं। इसके अलावा निबंध संग्रहों में  'रंग ढंग' ,'चुकते नहीं सवाल' तथा 'कृति और कृतिकार' विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। इसके अलाव कुछ अटके कुछ भटके यात्रा संस्मरण हैं। उनके प्रमुख व्यंग्य संग्रह में 'कर लेंगे सब हज़म' तथा 'खेद नहीं है' प्रमुख रूप से प्रकाशित हुए हैं।

लेखन से जुड़ी बातें

मृदुला जी संकोची और अंतर्मुखी स्वभाव की लेखिका हैं। उनकी रचनाओं से हिंदी साहित्य को एक नयी दिशा मिली। हमारे देश में हर वर्ग तथा जाति की स्त्रियों की भिन्न-भिन्न आर्थिक तथा सामाजिक परिस्थितियां होती हैं उन्हीं हालातों में उन्हें अपनी जिंदगी गुजारनी होती है। उनकी लेखनी का प्रमुख केन्द्र हमारे समाज में घर के अंदर कैद वह स्त्री थी जो कई तरह के संघर्षों और मुश्किलों से जूझती रहती है। इन्हीं स्त्रियों के आसपास वह नई-नई कहानियां बुनती हैं।

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उनके उपन्यासों की खासियत थी उनका नयापन और उसमें मौजूद विविधता। अपनी विविधता के कारण ही उनके उपन्यास समालोचकों को बहुत प्रिय होते थे।  बहुत लोकप्रिय होने के कारण उनके उपन्यास और कहानियां को अनेक हिंदी भाषाओं से अलग जर्मन, चेक, जापानी और अंग्रेजी में भी अनुवाद की जा चुकी हैं। इसके अलावा वह स्तंभकार भी रही हैं। साथ ही  पर्यावरण के प्रति सजग होकर उन्होंने महिलाओं और बच्चों के लिए समाज सेवा का भी काम किया है। उनके उपन्यास 'चितकोबरा' में स्त्री-पुरुष सम्बन्धों के कारण काफी चर्चा में रहा है। उन्होंने कई पत्रिकाओं में बतौर स्तम्भकार लेखिका भी रही हैं उनमें इंडिया टुडे प्रमुख है। इंडिया टुडे के हिन्दी संस्करण में 2003 से 2010 तक 'कटाक्ष' नाम का स्तंभ लिखती रहीं जो व्यंगात्मक शैली के कारण खूब चर्चा में रहा।

मृदुला गर्ग को मिले पुरस्कार

मृदुला गर्ग को उनकी रचनाओं के लिए कई प्रसिद्ध पुरस्कार मिले। इन पुरस्कारों में 1988 में साहित्यकार सम्मान, साहित्य भूषण प्रदान किया गया। 2001 में हेलमैन हैमेट पुरस्कार दिया गया। साथ ही 2004 में उन्हें व्यास सम्मान तथा 2013 में साहित्य अकादमी पुरस्कार प्रदान किया गया। इसके अलावा उन्हें राम मनोहर लोहिया पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया था। 

- प्रज्ञा पाण्डेय

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