भारत विरोधी एजेंडे की PhD वाली अरुंधति रॉय ने कश्मीर को लेकर ऐसा क्या कहा? जिस पर 14 साल बाद चलेगा UAPA के तहत केस

Arundhati Roy
Prabhasakshi
अभिनय आकाश । Jun 15 2024 3:46PM

लेखिका और एक्टिविस्ट अरुंधति रॉय के खिलाफ 14 साल पुराने एक मामले में मुकदमा चलाया जाएगा। 14 जून 2024 को दिल्ली के उपराज्यपाल विनय कुमार सक्सेना ने इसकी मंजूरी दे दी है। अरुंधति रॉय के साथ ही कश्मीर केंद्रीय विश्वविद्यालय में अंतरराष्ट्रीय कानून के पूर्व प्रोफेसर शौकत हुसैन पर भी यूएपीए के तहत मुकदमा चलाया जाएगा।

विरोध प्रदर्शन के नाम पर हिंसा फैलाने की साजिश में दो तरह के लोग शामिल होते हैं। पहले वो लोग जो हाथ में लाठी, पत्थर और हाथ में पेट्रोल बम लेकर सड़कों पर उतरते हैं। बसों और ट्रेनों में आग लगाते हैं, पुलिस पर पथराव करते हैं। दूसरे वर्ग में वो लोग आते हैं जो हिंसा फैलाने के लिए हथियारों का नहीं बल्कि विचारों का सहारा लेते हैं। ये वो लोग होते हैं जो सड़कों पर आकर नहीं बल्कि सोशल मीडिया या किसी और मंच से वैचारिक हिंसा फैलाते हैं। दुष्प्रचार करते हैं, झूठ फैलाते हैं, अफवाह फैलाते हैं। देश को बांटने का काम करते हैं। इन्हीं में से एक मशहूर लेखिका अरुंधति रॉय का नाम भी शामिल है। लेखिका और एक्टिविस्ट अरुंधति रॉय के खिलाफ 14 साल पुराने एक मामले में मुकदमा चलाया जाएगा। 14 जून 2024 को दिल्ली के उपराज्यपाल विनय कुमार सक्सेना ने इसकी मंजूरी दे दी है। अरुंधति रॉय के साथ ही कश्मीर केंद्रीय विश्वविद्यालय में अंतरराष्ट्रीय कानून के पूर्व प्रोफेसर शौकत हुसैन पर भी यूएपीए के तहत मुकदमा चलाया जाएगा। 

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अरुंधती रॉय और हुसैन पर एफआईआर में क्या आरोप लगे?

पिछले साल अक्टूबर में दिल्ली के उपराज्यपाल ने इसी मामले में रॉय और हुसैन पर आईपीसी की धारा 153ए, 153बी और 505 के तहत मुकदमा चलाने की मंजूरी दे दी थी। ये प्रावधान, ट्राइफेक्टा अक्सर नफरत भरे भाषण के मामलों से निपटने के लिए लागू किए जाते हैं, सभी में अधिकतम तीन साल सजा का प्रावधान है। हालाँकि, दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 468 के तहत, अदालतों को उन अपराधों का संज्ञान लेने से रोक दिया जाता है जो अनुचित देरी के बाद या सीमा अवधि की समाप्ति के बाद लाए जाते हैं। शिकायतकर्ता सुशील पंडित ने नई दिल्ली में मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट कोर्ट से संपर्क कर पुलिस को जांच शुरू करने का निर्देश देने की मांग की और अदालत ने नवंबर 2010 में एफआईआर दर्ज करने का आदेश दिया। राजभवन ने अक्टूबर 2023 में भारतीय दंड संहिता की विभिन्न धाराओं: 153A (धर्म, नस्ल, स्थान के आधार पर विभिन्न समूहों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देना) जन्म, निवास, भाषा, आदि, और सद्भाव के रखरखाव के लिए प्रतिकूल कार्य करना), 153बी (आरोप, राष्ट्रीय एकता के लिए प्रतिकूल दावे), और 505 (सार्वजनिक शरारत के लिए प्रेरित करने वाले बयान) के तहत दंडनीय अपराधों के लिए सीआरपीसी की धारा 196 के तहत उन पर मुकदमा चलाने की मंजूरी दे दी। ये कॉन्फ्रेंस कश्मीर में अशांति के दौर के बीच हुआ था। तुफैल अहमद मट्टू नाम के 17 साल के लड़के की आंसू गैस के गोले से चोटिल हो गया। जिसे लेकर घाटी में उग्र विरोध प्रदर्शन हो रहा था।

किस बयान पर अरुंधती रॉय पर कार्रवाई हुई

यह आरोप 21 अक्टूबर 2010 को एलटीजी ऑडिटोरियम, कॉपरनिकस मार्ग, नई दिल्ली में आयोजित "आज़ादी - द ओनली वे" नामक सम्मेलन में दिए गए भाषणों से उपजे हैं। सम्मेलन में सैयद अली शाह गिलानी, एसएआर गिलानी (सम्मेलन के एंकर और संसद हमले मामले में मुख्य आरोपी), अरुंधति रॉय, डॉ शेख शौकत हुसैन और वरवरा राव सहित वक्ता शामिल थे। चर्चाओं में कथित तौर पर "कश्मीर को भारत से अलग करने" की वकालत की गई। यह सम्मेलन कश्मीर में तीव्र अशांति के दौर के बीच हुआ, जिसमें तुफैल अहमद मट्टू नाम के 17 वर्षीय लड़के की आंसू गैस के गोले से मौत हो गई थी। न्यूयॉर्क टाइम्स की एक रिपोर्ट के अनुसार, विरोध के बाद के चक्र के परिणामस्वरूप 2010 में लगभग 120 प्रदर्शनकारियों की मौत हो गई।

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 रॉय का पुराना विवादित इतिहास

अरुंधती रॉय देश की उन गिनी-चुनी हस्तियों में हैं, जिन्होंने लेखक के तौर पर अंतरराष्ट्रीय मुकाम हासिल किया है। अरुंधती रॉय ने '90 के दशक में 'द गॉड ऑफ स्मॉल थिंग्स' लिखकर ख्याति हासिल की थी। कहानी के प्रवाह और भाषा के जादू के लिए 'द गॉड ऑफ स्मॉल थिंग्स' को आज दुनिया के जाने-माने उपन्यासों में गिना जाता है, और वर्ष 1997 में रॉय को इसके लिए प्रतिष्ठित बुकर सम्मान भी मिला था। अरुंधती ने वर्ष 2002 में नर्मदा बचाओ आंदोलन के समर्थन में एक लंबा लेख लिखा - 'द ग्रेटर कॉमन गुड'। बुकर विजेता अरुंधती के इस लेख ने जहां एक ओर नर्मदा पर बन रहे  सरदार सरोवर बांध समेत तमाम बांधों के प्रभावों पर दुनिया का ध्यान खींचा, वहीं उनकी काफी आलोचना भी हुई। लेखक और इतिहासकार रामचंद्र गुहा ने उन पर अतिशयोक्ति अलंकार का इस्तेमाल करने और तथ्यों को बढ़ा-चढ़ाकर पेश करने का आरोप लगाया। गुहा ने 'अरुण शौरी ऑफ लेफ्ट' शीर्षक से एक लेख लिखा और कहा कि अरुंधती रॉय दक्षिणपंथियों की तर्ज पर वामपंथी अतिवादियों की तरह हैं। अब आपको अरुंधति रॉय के दूसरे पहलू से भी रूबरू करवाते हैं। अरुंधति रॉय कश्मीर के मुद्दे पर ऐसी-ऐसी बातें कह चुकी हैं जिन्हें आप सुनेंगे तो कहेंगे की कोई भारतीय नागरिक तो कम से कम ऐसा नहीं कह सकता।

तारीख 24 अक्टूबर 2010, जगह- श्रीनगर- दो हफ्ते पहले मैं रांची में थी पत्रकार ने मुझसे पूछा- मैडम क्या आप भारत को कश्मीर का हिस्सा मानती हैं? मैंने कहा- सुनो, कश्मीर कभी भी भारत का हिस्सा नहीं रहा। 

भारत के अभिन्न हिस्से जम्मू कश्मीर में ही बैठकर अरुंधति रॉय कश्मीर को भारत से अलग बता रही हैं। सिर्फ कश्मीर मुद्दा ही नहीं भारत का विरोध अरुंधति रॉय का पुराना एजेंडा रहा है। जिसके सहारे उन्होंने दुनिया के विभिन्न मंचों पर खूब पब्लिसिटी बटोरी। 

15 नवंबर 2011, जगह- शिकागो- मैं बहुत स्पष्ट करना चाहती हूं। एक बात ये है कि जब भारत कश्मीर पर कई तरीके से अत्याचार कर रहा है। तो कब्जा भारत को भी अत्याचारी बना रहा है। जब भी कश्मीर में चुनाव होते हैं। वहां के लोगों को ये कहा जाता है कि ये चुनाव स्थानीय सुविधाओं का फिर म्यूनिसिपल चुनाव है। ये आजादी के लिए नहीं है। ये बहुत ही गंभीर स्थिति बन जाती है। जैसे ही लोग जाकर मतदान करते है तो ये कहा जाता है कि कश्मीर के लोग अलग नहीं होना चाहते हैं। हर वो देश जो अपने को लोकतांत्रिक कहता है उसके पास ये अधिकार तो नहीं होता कि वो लोगों को अपने साथ रहने पर मजबूर करे। 

पूरी दुनिया में घूम-घूम कर अरुंधति रॉय कई वर्षों से ये प्रचार करने में लगी कि भारत कश्मीर में कितना अत्याचार कर रहा है। भारत का लोकतंत्र कितना फर्जी है। अरुंधति रॉय की नजर में उनका ही देश जुल्म और अत्याचार की जगह है। 

17 जून 2011, जगह- लंदन- मैं भारत जैसी जगहों के बारे में बात कर रही हूं। कश्मीर या मणिपुर में जो चल रहा है। नागालैंड और मिजोरम में जो चल रहा है। जैसे ही भारत संप्रभु राष्ट्र बना, जैसे ही भारत उपनिवेशवाद से आजाद हुआ। खुद वैसा ही बन गया। 197 से कश्मीर में लड़ाई छेड़ रखी है। मणिपुर, नागालैंड, मिजोरम, तेलांगाना, पंजाब, कश्मीर, गोवा, हैदराबाद अगर आप देंखेंगे तो ये ऐसी जगह है जो हर तरफ युद्ध चल रहा है। पाकिस्तान ने भी ऐसा नहीं किया है। 

यूएपीए क्या है?

वैसे तो यूएपीए एक्ट 1967 में बना था। कांग्रेस की अगुवाई वाली संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार ने 2008 और 2012 में इसमें संशोधन कर इसे और सख्त बनाया। मोदी सरकार ने 2019 में यूएपीए में सोशधन कर इसके प्रावधानों को और कड़ा बना दिया।  यूएपीए का उद्देश्य व्यक्तियों और संघों की कुछ गैरकानूनी गतिविधियों को प्रभावी ढंग से रोकना है, और आतंकवादी गतिविधियों से भी निपटना है। यूएपीए ऐसे किसी भी व्यक्ति को दंडित करता है जो गैरकानूनी गतिविधियों में भाग लेता है, या जो ऐसी गैरकानूनी गतिविधियों को करने में सहायता करता है। यदि आप कोई गैरकानूनी गतिविधि करते हैं, तो आपको सात साल तक की कैद और जुर्माना हो सकता है। गैरकानूनी गतिविधियों को मोटे तौर पर परिभाषित किया गया है। हालाँकि, यूएपीए कई आतंकवादी गतिविधियों पर अंकुश लगाता है जो भारत की अखंडता और संप्रभुता के लिए खतरा पैदा करती हैं। 

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