दहेज एक सामाजिक बुराई है और इसे खत्म करना हम सबकी जिम्मेदारी है: नीतीश

Nitish Kumar

उन्होंने कहा, “बापू (महात्मा गांधी) ने मानव शरीर और समाज पर शराब के दुष्प्रभावों के बारे में बात की थी। मैंने महिलाओं की मांग पर शराबबंदी लागू की और हमें इसे आगे बढ़ाना है।

पटना| बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने मंगलवार को कहा कि दहेज एक सामाजिक बुराई है और इसे खत्म करना सबकी जिम्मेदारी है।

एक महीने से अधिक के अंतराल के बाद अपने सामाजिक सुधार अभियान की शुरुआत करते हुए कुमार ने कहा, “दहेज प्रथा आज के समाज में सबसे खराब प्रथाओं में से एक है। इसे खत्म करना हम सबकी जिम्मेदारी है।

इसे रोकने के लिए लोगों को आगे आना चाहिए, तभी समाज में सुधार हो सकता है।” राज्य में कोरोना वायरस की तीसरी लहर के बाद मुख्यमंत्री का समाज सुधार अभियान स्थगित कर दिया गया था।

मुख्यमंत्री ने लोगों, विशेषकर महिलाओं से बाल विवाह, दहेज जैसी सामाजिक बुराइयों और शराब के सेवन सहित सभी प्रकार के व्यसनों को मिटाने के लिए प्रयास करने का आह्वान करते हुए कहा कि सामाजिक सुधारों के बिना विकास का कोई मतलब नहीं है।

कुमार ने सभा को संबोधित करते हुए लोगों को याद दिलाया कि उन्होंने महिलाओं की मांग पर शराबबंदी लागू की थी। इस सभा में सामाजिक-आर्थिक उत्थान के क्षेत्र में काम कर रहे राज्य सरकार के जीविका, स्वयं सहायता समूहों से जुड़ी महिलाएं एक बड़ी संख्या में उपस्थित थी।

उन्होंने कहा, “बापू (महात्मा गांधी) ने मानव शरीर और समाज पर शराब के दुष्प्रभावों के बारे में बात की थी। मैंने महिलाओं की मांग पर शराबबंदी लागू की और हमें इसे आगे बढ़ाना है।

2018 में प्रकाशित विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट में यह भी खुलासा हुआ है कि शराब के सेवन से कैसे मौतें, बीमारियां और दुर्घटनाएं होती हैं। नवीनतम सर्वेक्षण से पता चलता है कि राज्य में पूर्ण शराबबंदी के बाद से 1.6 करोड़ लोगों ने शराब का सेवन छोड़ दिया है।”

इस बीच भागलपुर पुलिस ने तीन लोगों को उस समय हिरासत में लिया जब वे कथित तौर निषिद्ध क्षेत्र से मुख्यमंत्री के कार्यक्रम स्थल की ओर बढ़ रहे थे।

पत्रकारों से बात करते हुए भागलपुर नगर पुलिस अधीक्षक स्वर्ण प्रभात ने कहा कि पुलिस ने उनके संदिग्ध व्यवहार के आधार पर उन्हें हिरासत में लिया और बाद में उन्हें छोड़ दिया गया।

डिस्क्लेमर: प्रभासाक्षी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।


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