Muharram का महीना शुरू होते ही Kashmir में इमामबाड़ों की साज-सज्जा की जाने लगी है

Kashmir Muharram
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हम आपको यह भी याद दिला दें कि कश्मीर में पिछले साल मुहर्रम का जुलूस लगभग 35 वर्षों बाद निकला था। यह जुलूस पूरी तरह शांतिपूर्ण रहा था। खास बात यह रही कि जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा भी श्रीनगर में मुहर्रम जुलूस में शामिल हुए थे।

कश्मीर में मुहर्रम को लेकर इस साल भी काफी उत्साह देखने को मिल रहा है। मुहर्रम का पवित्र महीना शुरू होते ही कश्मीर में इमामबाड़ों को सजाया जाने लगा है। इसके चलते झंडे और बैनर बेचने वाली दुकानों पर भीड़ दिखने लगी है। हम आपको बता दें कि मुहर्रम मुस्लिम कैलेंडर का पहला माह होता है। इस महीने को इस्लाम धर्म के चार पवित्र महीनों में शामिल किया जाता है। यह इस्लामी नव वर्ष का प्रतीक भी है। प्रभासाक्षी संवाददाता से बात करते हुए स्थानीय शिया लोगों ने मुहर्रम के महत्व पर प्रकाश डाला।

हम आपको यह भी याद दिला दें कि कश्मीर में पिछले साल मुहर्रम का जुलूस लगभग 35 वर्षों बाद निकला था। यह जुलूस पूरी तरह शांतिपूर्ण रहा था। खास बात यह रही कि जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा भी श्रीनगर में मुहर्रम जुलूस में शामिल हुए थे।

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क्यों मनाया जाता है मुहर्रम?

मुहर्रम इस्लाम धर्म के अनुयायियों के लिए खास दिन है। यह दिन अन्याय और असत्य को स्वीकार न कर जीवन में सदैव सत्य आचरण को अपनाने का संदेश देता है। इससे यह भी प्रेरणा मिलती है कि समाज में अच्छाई को बनाए रखने के लिए अपने प्राणों की भी परवाह नहीं करनी चाहिए।

मुहर्रम के मनाए जाने की शुरुआत इराक में स्थित कर्बला की एक घटना के बाद हुई। यह घटना सत्य के लिए प्राणों की बलि देने की बहुत बड़ी मिसाल है। मुस्लिम धर्मग्रंथों में उल्लेख मिलता है कि हिजरा के 61 साल बाद हजरत अली (चौथे खलीफा) के निधन से उनके उत्तराधिकार को लेकर विवाद हो गया। इस दौरान नए मनोनीत खलीफा के गलत आचरण का हजरत इमाम हुसैन ने विरोध किया। उस समय के खलीफा यजीद की सेना ने हजरत इमाम हुसैन के कदम पर नाराजगी जताते हुए अपनी सेना को भेज कर हुसैन, उनके परिवार के सदस्यों और अनुयायियों को बंधक बनवा लिया। बंधक बनाए रखने के समय उन सभी को यातना दी गई। यातना से कई लोगों की मृत्यु हो गई। अंत में हजरत इमाम हुसैन का भी सिर कलम कर दिया गया। तब से ही उनकी याद में मुहर्रम का पर्व मनाया जाता है।

इमाम हुसैन और उनकी शहादत के बाद सिर्फ उनके एक पुत्र हजरत इमाम जै़नुलआबेदीन, जो कि बीमारी के कारण युद्ध में भाग नहीं ले सके थे, वही बचे थे। हुसैन और उनके साथियों को मौत के घाट उतरवाने वाले यजीद का नाम आज दुनिया से ख़त्म हो चुका है। कोई भी मुसलमान और इस्लाम धर्म में आस्था रखने वाला शख्स अपने बेटे का नाम यजीद नहीं रखता। जबकि अपने बच्चों का नाम हज़रत हुसैन और उनके शहीद साथियों के नाम पर रखने वाले अरबों मुसलमान हैं।

मुहर्रम के बारे में बताया जाता है कि जिसने मुहर्रम की 9 तारीख का रोजा रखा, उसके दो साल के गुनाह माफ हो जाते हैं तथा मुहर्रम के एक रोजे का फल 30 रोजों के बराबर मिलता है। यह रोजे अनिवार्य नहीं हैं, लेकिन मुहर्रम के रोजों का बहुत महत्व है। एक हदीस के अनुसार अल्लाह के रसूल हजरत मुहम्मद (सल्ल) ने कहा कि रमजान के अलावा सबसे उत्तम रोजे वे हैं, जो अल्लाह के महीने यानि मुहर्रम में रखे जाते हैं। जिस तरह अनिवार्य नमाजों के बाद सबसे अहम नमाज तहज्जुद की है, उसी तरह रमजान के रोजों के बाद सबसे उत्तम रोजे मुहर्रम के हैं। उल्लेखनीय है कि इस्लामी यानी हिजरी सन का पहला महीना मुहर्रम है।

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