नागरिकता बिल के खिलाफ प्रदर्शन करने वाले समाज को कर रहे विभाजित: हिमंत

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[email protected] । Jan 24 2019 7:23PM

उन्होंने कहा, ‘‘अगर केंद्र सरकार ये तीन कदम उठाती है तो उन जगहों पर दुर्गा पूजा और भागवद पाठ होते रहेंगे जो अगले 10 साल के लिए जनसांख्यिकीय रूप से संवेदनशील हैं। इससे राज्य स्थानीय लोगों के लिए किला बन जाएगा।

गुवाहाटी। वरिष्ठ भाजपा नेता और असम के वित्त मंत्री हिमंत बिस्व सरमा ने बृहस्पतिवार को कहा कि नागरिकता विधेयक, असम समझौते के अनुबंध 6 के क्रियान्वयन और राज्य के छह समुदायों को अनुसूचित जनजाति का दर्जा दिये जाने से यह प्रदेश स्थानीय लोगों के लिए ‘किला’ बन जाएगा। सरमा ने यहां भाजपा की एक रैली को संबोधित करते हुए कहा कि नागरिकता विधेयक के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे लोग समुदाय को विभाजित करने की कोशिश कर रहे हैं। नॉर्थ ईस्ट डेमोक्रेटिक अलायंस के संयोजक सरमा ने कहा कि विधेयक के खिलाफ प्रदर्शन, भारतीय संस्कृति और धरोहरों को मानने वालों के खिलाफ लड़ाई पैदा करने की कोशिश है। उन्होंने कहा, ‘‘अगर केंद्र सरकार ये तीन कदम उठाती है तो उन जगहों पर दुर्गा पूजा और भागवद पाठ होते रहेंगे जो अगले 10 साल के लिए जनसांख्यिकीय रूप से संवेदनशील हैं। इससे राज्य स्थानीय लोगों के लिए किला बन जाएगा।

उन्होंने एक रैली में विस्तार में जाए बिना कहा, ‘‘ हालात ये हैं कि मुझे फोन पर धमकी दी जाती है।मुझे ऐसे संदेश भेजे जाते हैं जिनमें कहा जाता है, ‘हमारे इलाके में आओ, हम तुम्हें देख लेंगे। मैं असम में नंबर दो का मंत्री हूं । अगर मुझे इस तरीके से धमकी दी जाती है तो फिर क्या बचता है?’’ इसी बीच असम समझौते के अनुबंध 6 को लागू करने के लिए बनाई गयी समिति के प्रमुख पद को हाल ही में छोड़ने वाले पूर्व नौकरशाह एम पी बेजबरुआ ने इस बात पर जोर दिया कि इसके सफल क्रियान्वयन के लिए केंद्र को पहले नागरिकता विधेयक का समाधान निकालना चाहिए। केंद्र द्वारा नौ सदस्यीय उच्चस्तरीय समिति का अध्यक्ष बनाये जाने के बाद बेजबरुआ ने हाल ही में कहा था कि समिति के अन्य चार सदस्यों द्वारा संसद में विवादास्पद नागरिकता संशोधन विधेयक पारित कराने के राजग सरकार के कदम के खिलाफ उनकी सहमति वापस लिये जाने के बाद उनके लिए पद पर बने रहना असंभव है।


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नरेंद्र मोदी सरकार ने दो जनवरी को असम समझौते के उपबंध 6 को लागू करने का फैसला किया था। असम समझौते पर 1985 में दस्तखत किये गये थे। इसके अनुबंध 6 में कहा गया है कि असमिया लोगों की सांस्कृतिक, सामाजिक, भाषाई पहचान और धरोहर के संरक्षण और प्रचार के लिए उचित संवैधानिक, विधायी तथा प्रशासनिक सुरक्षा मानक प्रदान किये जाएंगे। हालांकि असम में राजनीतिक दलों और कई लोगों ने अनुबंध को लागू करने के कदम को नागरिकता विधेयक के कारण चली गयी ‘राजनीतिक चाल’ बताया। नागरिकता विधेयक आठ जनवरी को लोकसभा में पारित किया गया था और इसके बाद पूरे पूर्वोत्तर खासकर असम में व्यापक प्रदर्शन हुए। नागरिकता संशोधन विधेयक, 2016 उन हिंदुओं, जैनों, ईसाइयों, सिखों, बौद्धों और पारसियों को भारतीय नागरिकता प्रदान करता है जिन्होंने बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान में धार्मिक उत्पीड़न सहा है। ये लोग बिना किसी दस्तावेज के भी भारत में छह साल रहने के बाद नागरिकता प्राप्त कर सकते हैं। अभी तक यह अवधि 12 साल रही है।

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