चीन को मिलेगा जवाब! हिंद महासागर में बढ़ा भारत का दम, नौसेना को मिला नया ASW युद्धपोत 'आन्द्रोत'

Indian Ocean Navy
ANI
रेनू तिवारी । Sep 15 2025 10:52AM

नया स्वदेश निर्मित पनडुब्बी रोधी युद्धपोत 'आन्द्रोत', 80% से अधिक स्वदेशी सामग्री से युक्त, भारतीय नौसेना की पनडुब्बी रोधी युद्ध क्षमताओं को अत्याधुनिक हल्के टॉरपीडो और रॉकेटों से सुदृढ़ करेगा। यह जीआरएसई द्वारा निर्मित दूसरा एएसडब्ल्यू-एसडब्ल्यूसी पोत है, जो सरकार के आत्मनिर्भर भारत के दृष्टिकोण को साकार करते हुए आयात निर्भरता को कम करता है।

भारतीय नौसेना के बेड़े में स्वदेशी पनडुब्बी रोधी युद्धपोत 'आन्द्रोत' का शामिल होना हिंद महासागर में भारत की समुद्री उपस्थिति को मजबूत करेगा। यह नया पोत चीन की बढ़ती गतिविधियों के बीच पनडुब्बी रोधी और तटीय निगरानी क्षमताओं को सशक्त करता है, जो आत्मनिर्भर भारत के तहत रक्षा विनिर्माण में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है। ‘आन्द्रोत’ उथले जल में संचालित आठ पनडुब्बी रोधी युद्धपोतों (एएसडब्ल्यू-एसडब्ल्यूसी) में से दूसरा युद्धपोत है, जिसका निर्माण कोलकाता के ‘गार्डन रीच शिपबिल्डर्स एंड इंजीनियर्स’ (जीआरएसई) द्वारा किया गया है।

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एक आधिकारिक बयान के अनुसार, यह जहाज शनिवार को भारतीय नौसेना को सौंप दिया गया, जो रक्षा विनिर्माण में आत्मनिर्भरता की दिशा में एक और कदम है। भारतीय नौसेना की पनडुब्बी-रोधी और तटीय निगरानी क्षमताओं को मजबूती प्रदान करने के उद्देश्य से ‘एएसडब्ल्यू-एसडब्ल्यूसी’ जहाजों को शामिल किया जा रहा है।

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‘आन्द्रोत’ नाम का रणनीतिक और प्रतीकात्मक महत्व है क्योंकि यह लक्षद्वीप द्वीपसमूह के ‘आन्द्रोत’ द्वीप से लिया गया है, जो भारत की अपने विशाल समुद्री क्षेत्रों की सुरक्षा के प्रति प्रतिबद्धता को रेखांकित करता है। अधिकारियों ने बताया कि लगभग 77 मीटर लंबाई वाले ये जहाज ‘डीजल इंजन-वॉटरजेट’ के संयोजन से संचालित होने वाले सबसे बड़े भारतीय नौसेना के युद्धपोत हैं, जो अत्याधुनिक हल्के ‘टॉरपीडो’ और स्वदेशी पनडुब्बी रोधी युद्ध रॉकेटों से लैस हैं।

नौसेना ने अपने वक्तव्य में कहा, ‘आन्द्रोत’ की सुपुर्दगी भारतीय नौसेना की स्वदेशी युद्धपोत निर्माण की दिशा में एक और महत्वपूर्ण मील का पत्थर है, जो सरकार के आत्मनिर्भर भारत के दृष्टिकोण को समर्थन देती है। यह युद्धपोत 80 प्रतिशत से अधिक स्वदेशी सामग्री के साथ न केवल घरेलू क्षमताओं के बढ़ते स्तर का प्रमाण है बल्कि आयात पर निर्भरता को कम करने की दिशा में भी एक बड़ा संकेत है।

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