जलवायु परिवर्तन और जल संरक्षण को लेकर आईएएस डॉ. हीरा लाल ने दी जानकारी, कहा- जागरुकता बेहद उपयोगी

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दूसरा सत्र का संचालन साईं ज्योति संस्थान के सचिव श्री अजय श्रीवास्तव ने किया, जिसमें बुन्देलखण्ड में जल सुरक्षा के मुद्दों को कम करने के लिए हितधारकों के परस्पर नजरिये और सम्मिलित पहल पर चर्चा की। डॉ. शैलेन्द्र नाथ पांडे, जल सलाहकार एवं पर्यावरण एवं विकास अध्ययन संस्थान की सहायक प्रोफेसर डॉ. स्मृति त्रिपाठी ने अपने अनुभव साझा किये।

झाँसी, उत्तर प्रदेश। एस एम सहगल फाउंडेशन ने डीसीबी बैंक की सहभागिता और राष्ट्रीय ग्रामीण विकास एवं पंचायती राज संस्थान (एनआईआरडीपीआर) की ज्ञान भागीदारी में 14 मार्च, 2024 को उत्तर प्रदेश के झांसी में क्षमता वर्धन और अनुभव साझा करने हेतु 'जलागम' चौथी कार्यशाला श्रृंखला का आयोजन किया। एस एम सहगल फाउंडेशन की ट्रस्टी और सीईओ अंजली मखीजा ने उपस्थित अतिथिगण के साथ जलागम कार्यशालों में जमीनी स्तर पर जल संरक्षण और सामुदायिक नेतृत्व को बढ़ावा देने के लिए श्वेतपत्र जारी करते हुए कार्यशाला का शुभारंभ किया।

कार्यशाला में मुख्य अतिथि के रूप में डॉ. हीरा लाल, आईएएस, विशेष सचिव सिंचाई, उत्तर प्रदेश सरकार उपस्थित हुए।  उन्होंने बताया कि "जब हम जलवायु या जलवायु परिवर्तन की बात करते हैं, तब भी पानी हवा से पहले आता है। हम पानी के महत्व को नकारते आये हैं और अब समय है की हम पानी को न सिर्फ बातों में बल्कि अपने आचरण और कार्यों में तब्दील करें। उन्होंने बांदा में अपने व्यापक कार्य के बारे में साझा किया जहां उन्होंने समुदाय के साथ मिलकर सामूहिक रूप से कुओं और झीलों का कायाकल्प किया और जल संरक्षण के महत्व के बारे में समुदायों को जागरूक करने हेतु काव्यात्मक छंद और सम्मोहक नारे जैसे नवीन दृष्टिकोण अपनाए। साथ ही उन्होंने प्लास्टिक के उपयोग को कम करने की अपील की, जो पानी को दूषित करता है तथा पर्यावरण में ऑक्सीजन की वृद्धि हेतु पेड़ लगाने की आवश्यकता पर बल दिया और कृषि में जल-दक्षता की ज़रूरत पर भी प्रकाश डाला।"

श्वेत पत्र पर चर्चा करते हुए, रुचिरा भट्टाचार्य, सहायक प्रोफेसर, सीएसआर पीपीपी पीए, एनआईआरडीपीआर, ने जल प्रबंधन नीतियों के दायरे और समुदायों में जल दक्षता बढ़ाने और आपसी सीख में प्रशिक्षण और क्षमता निर्माण के महत्त्व पर प्रकाश डाला। कार्यशाला में श्री मुनीश गंगवार (सेवानिवृत्त जीएम, नाबार्ड) ने एकीकृत परिपेक्ष्य पर आधारित सामुदायिक जल संरक्षण पर अपने विचार साझा किए, जिसमें स्थायी जल प्रबंधन के महत्वपूर्ण पहलुओं पर प्रकाश डालते हुए बताया कि कैसे दूसरे सहभागियों के साथ मिलकर समुदाय के हितों के लिए काम कर सकता है। उन्होंने कहा कि जो लोग पानी की कमी से जूझ रहे हैं, वही इसका समाधान अच्छे से जानते हैं। प्रत्येक गांव में परोपकारी नेतृत्व मौजूद है, उन्हें प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है। उन्होंने विकसित गांवों के उदाहरण को बड़े स्तर पर प्रदर्शित करने की आवश्यकता पर बल दिया ।

पहले सत्र में दो महत्वपूर्ण विषयों पर चर्चा हुई, जिसमें पानी की उपलब्धता और गुणवत्ता के माध्यम से स्वास्थ्य पर प्रभाव और जल सुरक्षा और जलवायु परिवर्तन के मुद्दे पर समुदाय का समर्थन प्राप्त करना। इस पैनल में दो विषयगत चर्चाओं का संचालन श्री ध्रुव सिंह, कार्यकारी निदेशक, मार्गश्री ट्रस्ट और श्री ललित मोहन शर्मा, प्रमुख वैज्ञानिक, एस एम सहगल फाउंडेशन द्वारा किया गया। पैनलिस्ट सुश्री कल्पना खरे, निदेशक, ग्रामोन्नति संस्थान, सुश्री निधि त्रिपाठी और वाटर चैंपियंस श्री अनिल कुमार ने जमीनी स्तर पर किये जा रहे प्रयासों पर प्रकाश डाला।

दूसरा सत्र का संचालन साईं ज्योति संस्थान के सचिव श्री अजय श्रीवास्तव ने किया, जिसमें  बुन्देलखण्ड में जल सुरक्षा के मुद्दों को कम करने के लिए हितधारकों के परस्पर नजरिये और सम्मिलित पहल पर चर्चा की। डॉ. शैलेन्द्र नाथ पांडे, जल सलाहकार एवं पर्यावरण एवं विकास अध्ययन संस्थान की सहायक प्रोफेसर डॉ. स्मृति त्रिपाठी ने अपने अनुभव साझा किये।

सुश्री नीति सक्सेना, प्रमुख वैज्ञानिक, ग्रामीण अनुसंधान और विकास, एस एम सहगल फाउंडेशन, ने भविष्य के सहयोग की योजनाओं के लिए रूपरेखा साझा की। सुश्री वृंदा शर्मा सीनियर रिसर्च एसोसिएट, एस एम सहगल फाउंडेशन ने धन्यवाद ज्ञापन दिया।

'जलागम' कार्यशाला श्रृंखला के बारे में :
'जलागम' जल और जलवायु परिवर्तन के अंतरसंबंध पर सामुदायिक अनुकूलनशीलता और निर्वाह तंत्र की विशेषता की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। कार्यशाला श्रृंखला का उद्देश्य जल संसाधन प्रबंधन में सहयोग को बढ़ावा देना और अनुभवों को साझा करना था इस संबंध में दिल्ली, महाराष्ट्र, तेलंगाना और उत्तर प्रदेश राज्यों की इस क्षेत्र में चुनौतियों को सामने लाना तथा सामूहिक समाधानों की तलाशा करना है।

श्री मुरली एम. नटराजन, प्रबंध निदेशक और मुख्य कार्यकारी अधिकारी(सीईओ), डीसीबी बैंक ने कहा कि “पानी की कमी राष्ट्र, उसके लोगों और उसकी प्रगति और स्थिरता को बाधित करती है। हम अपने देश के समग्र स्वास्थ्य और जल को प्रभावित करने वाले जल और अपशिष्ट प्रबंधन के बीच संबंध को नजरअंदाज नहीं कर सकते। बैंक की सीएसआर परियोजनाएं और गतिविधियां मुख्य रूप से जल संकट, जलवायु परिवर्तन और स्थायी आजीविका और खासतौर पर प्रकृति आधारित समाधान पर केंद्रित हैं”।

डीसीबी बैंक भारत के सभी समुदायों और विशेषज्ञों का समर्थन करता है और उनके साथ मिलकर कार्य करता है, ताकि दीर्घकालिक आजीविका जल संरक्षण और जलवायु परिवर्तन अनुकूलन परियोजनाओं में प्रभावशाली तरीकों से  को लागू किया जा सके जो दीर्घकालिक हों। जल संरक्षण विकास के क्षेत्र में एस एम सहगल फाउंडेशन की परियोजनाओं ने 5,00,000 वर्ग फुट से अधिक जल निकायों और तालाबों को पुनर्जीवित किया है और 35 करोड़ लीटर से अधिक वर्षा जल का संचयन किया है। इससे 14,000 से अधिक सीमांत और छोटे किसानों के जीवन पर सकारात्मक प्रभाव हुआ है ।

डीसीबी बैंक और एस एम सहगल फाउंडेशन के जल संरक्षण और सतत पहलों के  संयुक्त प्रयासों से कई गांवों को लाभ हुआ है। कार्यशाला श्रृंखला का उद्देश्य सम्मिलित रूप से सामुदायिक प्रयासों को बढ़ाना और पानी और जलवायु परिवर्तन के गंभीर मुद्दों को हल करने के लिए मार्ग प्रशस्त करना है - अंजलि मखीजा, ट्रस्टी और मुख्य कार्यकारी अधिकारी(सीईओ), एस एम सहगल फाउंडेशन।

डीसीबी बैंक के बारे में :
डीसीबी बैंक लिमिटेड एक नई पीढ़ी का निजी क्षेत्र का बैंक है जिसकी पूरे भारत में 439 शाखाएँ (30 सितंबर 2023 तक) हैं। यह भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा विनियमित एक अनुसूचित वाणिज्यिक बैंक है। डीसीबी बैंक के 10,00,000 से अधिक सक्रिय ग्राहक हैं।

एस एम सहगल फाउंडेशन के बारे में :
एस एम सहगल फाउंडेशन (सहगल फाउंडेशन), एक सार्वजनिक परोपकारी न्यास है, जो भारत में 1999 से पंजीकृत है। हमारा ध्येय ग्रामीण भारत में सकारात्मक सामाजिक, आर्थिक और पर्यावरर्णीय बदलाव के लिए सामुदायिक नेतृत्व को विकसित करना है ताकि ग्रामीण अंचल का हर व्यक्ति सुरक्षित व समृद्ध जीवन जी सके।

सहगल फाउंडेशन के पांच मुख्य कार्यक्रम : जल प्रबंधन, कृषि विकास, स्थानीय भागीदारी और स्थायित्व, ट्रांसफॉर्म लिव्स, वन स्कूल एट ए टाइम और आउटरीच फॉर डेवलपमेंट हैं । इन कार्यक्रमों को कुशल अनुसंधान टीम द्वारा समर्थित किया जाता है जो स्थायी परिणाम प्राप्त करने के लिए करने के लिए अनुसंधान, प्रभाव मूल्यांकन और समुदाय के साथ संवाद करता है। 

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