अवमानना कार्रवाई मामले में पेश नहीं हुए न्यायमूर्ति कर्णन

[email protected] । Feb 13 2017 4:22PM

सीएस कर्णन आज अवमानना कार्रवाई मामले में उच्चतम न्यायालय के समक्ष पेश नहीं हुए। उच्चतम न्यायालय ने उनके खिलाफ स्वत: संज्ञान लेते हुए अवमानना कार्रवाई शुरू की थी।

कलकत्ता उच्च न्यायालय के विवादास्पद न्यायाधीश सीएस कर्णन आज अवमानना कार्रवाई मामले में उच्चतम न्यायालय के समक्ष पेश नहीं हुए। उच्चतम न्यायालय ने उनके खिलाफ स्वत: संज्ञान लेते हुए अवमानना कार्रवाई शुरू की थी। मुख्य न्यायाधीश जेएस खेहर की अध्यक्षता वाली सात न्यायाधीशों की पीठ ने कहा कि मामले में नोटिस भेजे जाने के बावजूद न्यायमूर्ति कर्णन न्यायालय में पेश नहीं हुए।

इस पीठ में न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा, न्यायमूर्ति जे चेलामेश्वर, न्यायामूर्ति रंजन गोगोई, न्यायमूर्ति एमबी लोकुर, न्यायमूर्ति पीसी घोष और न्यायमूर्ति कुरियन जोसफ शामिल हैं। पीठ ने कहा कि इसके अलावा न्यायमूर्ति कर्णन ने आज अपना प्रतिनिधित्व करने के लिए किसी अधिवक्ता को भी नियुक्त नहीं किया। मामले को तीन हफ्तों के लिए टालते हुए पीठ ने कहा, ‘‘हमें उनके पेश नहीं होने के कारणों की जानकारी नहीं है। इसलिए हम मामले पर किसी भी कार्रवाई को टाल रहे हैं।’’

न्यायमूर्ति कर्णन ने प्रधान न्यायाधीश, प्रधानमंत्री और अन्य को संबोधित करते हुए मद्रास उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के खिलाफ कथित तौर पर अपमानजनक पत्र लिखे थे। इन पत्रों पर स्वत: संज्ञान लेते हुए उच्चतम न्यायालय ने कर्णन के खिलाफ अवमानना कार्रवाई शुरू की थी। आज की सुनवाई में पीठ ने हाल ही के विवादित पत्र को भी संज्ञान में लिया जो न्यायमूर्ति कर्णन ने उच्चतम न्यायालय के रजिस्ट्रार जनरल को 10 फरवरी को लिखा था। इस पत्र में न्यायमूति कर्णन ने कथित रूप से कहा था कि ‘दलित’ होने के कारण उनका उत्पीड़न किया गया है। पत्र में उन्होंने कहा कि यह मामला संसद को सौंप दिया जाना चाहिए। पीठ ने न्यायमूर्ति कर्णन की ओर से अधिकृत नहीं किए जाने के बावजूद मामले में कुछ अधिवक्ताओं के पेश होने को भी गंभीरता से लिया। न्यायालय ने कहा कि न्यायिक प्रक्रिया में दखलंदाजी के लिए उनके खिलाफ भी कार्रवाई की जाएगी।

इससे पहले, उच्चतम न्यायालय ने आठ फरवरी को न्यायमूर्ति कर्णन से शीर्ष अदालत के समक्ष पेश होने और यह स्पष्ट करने को कहा था कि क्यों नहीं उनके खिलाफ अवमानना कार्रवाई शुरू की जाए। न्यायमूर्ति कर्णन ने कथित तौर पर इस पत्र में दलित होने का मुद्दा उठाया और उच्चतम न्यायालय से कहा कि वह मामले को संसद को सौंप दे। साथ ही कहा कि अवमानना कार्रवाई ‘‘विचार योग्य नहीं हैं’’। प्रधान न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली पीठ के आदेश पर प्रतिक्रिया में उन्होंने कहा, ‘‘मुझसे किसी भी तरह की सफाई मांगने से पहले, मैं यह कहना चाहता हूं कि अदालतों को उच्च न्यायालय के किसी वर्तमान न्यायाधीश को दंड देने का कोई अधिकार नहीं है। उक्त आदेश का कोई तार्किक आधार नहीं है इसलिए यह पालन करने योग्य भी नहीं है।’’

We're now on WhatsApp. Click to join.

Tags

    All the updates here:

    अन्य न्यूज़