उज्जैन सरीखा है हिमाचल का कालीनाथ कालेश्वर महादेव मंदिर ,यहां किया था महाकाली ने प्रायश्चित

Kaleshwar Mandir

कालेश्वर में कालीनाथ महोदव मंदिर के साथ शांत रूप में बहती व्यास नदी की अविरल धारा में पूर्णिमा, अमावस्या एवं ग्रहण इत्यादि पर श्रद्धालुओं द्वारा स्नान करके पुण्य प्राप्त किया जाता है, लेकिन शिवरात्री में इस शिव धाम पर पूजा अर्चना एवं स्नान का खास महत्व है। यहां बडी तादाद में श्रद्धालु महाशिवरात्री के अवसर पर लुटे हैं। आज व कल दो दिन यहां मेला लगेगा।

शिमला। प्रसिद्ध उज्जैन के महाकाल मंदिर के समान हिमाचल प्रदेश के  देहरा सब डिविजन के कालेश्वर में कालीनाथ कालेश्वर  महादेव मंदिर में भगवान शिव विराजमान हैं। उज्जैन में जहां शिप्रा नदी है,तो यहां मंदिर के साथ ब्यास नदी बह रही है।

 

कालेश्वर में कालीनाथ महोदव मंदिर के साथ शांत रूप में बहती व्यास नदी की अविरल धारा में पूर्णिमा, अमावस्या एवं ग्रहण इत्यादि पर श्रद्धालुओं द्वारा स्नान करके पुण्य प्राप्त किया जाता है, लेकिन शिवरात्री में इस शिव धाम पर पूजा अर्चना एवं स्नान का खास महत्व है। यहां बडी तादाद में श्रद्धालु महाशिवरात्री के अवसर पर जुटे  हैं। आज व कल दो दिन यहां मेला लगेगा। 

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कालेशवर में स्थापित कालेशवर महादेव मंदिर में ऐसा शिवलिंग है, जो जमीन के  अंदर धसता जा रहा है। हालंकि आम तौर पर शिवलिंग धरती के ऊपर ही होता है। लेकिन यहां जमीन के अंदर है व ऐसी मान्यता है कि यह शिवलिंग हर साल जौ भर जमीन के अंदर समा जाता है।  यह शिवलिंग हर किसी के मन मस्तिक में कौतूहल पैदा करता है।  यहां बड़ी तादाद में श्रद्धालु दर्शनों को सारा साल आते हैं।

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उज्जैन के महाकाल मंदिर के बाद हिमाचल प्रदेश में कालेशवर मंदिर एकमात्र ऐसा मंदिर है जिसके गर्भ गृह में ज्योर्तिलिंग स्थापित है। यहां भगवान शिव एक अदभुत लिंगरूप में विराजमान हैं यहां शिवलिंग जलहरी से नीचे स्थित हैं। ऐसी मान्यता है कि धरती से पाताल  लोक में उस दिन यह शिवलिंग पूरी तरह समा जाएगा जिस दिन दुनिया में पापी अपनी हदों से गुजर जाएंगे। इसी मंदिर में पाताल जाने का एक गुप्त रास्ता भी है। जहां से पाताल होकर कैलाश पर्वत पहुंच कर ऋषिमुनि शिव तपस्या करने जाते थे।

कालेशवर का अर्थ है कालस्य ईष्वर अर्थात काल का स्वामी, काल का स्वामी शिव है।   कालेश्वर में स्थित कालीनाथ मंदिर का इतिहास पांडवों जुड़ा है। जनश्रुति के अनुसार इस स्थल पर पांडव अज्ञात वास के दौरान आए थे, जिसका प्रमाण ब्यास नदी तट पर उनके द्वारा बनाई गई पौडिय़ों से मिलता है।  एक अन्य किवदंती के अनुसार महर्षि व्यास ने यहां घोर तपस्या की थी इसका प्रमाण इस स्थल पर स्थित ऋषि मुनियों की समाधियां से मिलता है। इस मंदिर परिसर में कालीनाथ के अतिरिक्त राधा कृष्ण, रूद्र, पांच शिवालय सहित नौ मंदिर तथा 20 मूर्तियां अवस्थित हैं।     एक सर्वेक्षण के अनुसार मंदिर 15वी सदीं का बना हुआ है। जिसके अनुसार इस मंदिर का निर्माण पांडवों, कुटलैहड़ एवं जम्मू की महारानी तथा राजा गुलेर ने करवाया था।

इस तीर्थ स्थल के साथ महाकाली के विचरण का महात्म्य भी जुड़ा है। ऋगवेद के अनुसार सतयुग में हिमाचल की षिवालिक पहाडिय़ों में दैत्य राज जालंधर का आंतक भरा सम्राज्य था। दैत्य राज के आतंक से निजात पाने के लिए सभी देवता एवं ऋशि मुनियों ने भगवान विष्णु के दरबार में फरियाद की। देवों, ऋशियों, मुनियों ने  सार्मथ्यानुसार अपनी शक्तियां प्रदान करने पर विराट शक्ति महाकाली प्रकट हुई। जिनके द्वारा सभी राक्षसों का अंत करने के उपरांत महाकाली का क्रोध शांत करने के लिए भगवान शिव रास्ते में लेट गए और उनके स्पर्ष से महाकाली शांत हुई।  महाकाली इस गलती का प्रायश्चित करने के लिए वर्षों हिमालय पर विचरती रही और एक दिन इसी स्थान पर व्यास के किनारे भगवान शिव को याद किया भगवान शिव ने महाकाली को दर्शन दिए और इस पावन स्थली पर महाकाली ने प्रायश्चित किया। उसी समय यहां ज्योर्तिलिंग की स्थापना हुई और इस स्थान का नाम महाकालेशवर पड़ गया।

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