हिज्बुल का पूर्व आतंकी रोज मस्जिद जाकर आपबीती सुनाता है, युवाओं को समझाता है- आतंक की राह पर नहीं जाएं

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2000 के दशक की शुरुआत में एक सामान्य स्कूली छात्र रहा शेख मुदासिर अलगाववादी विचारधारा से प्रभावित होने के बाद कश्मीर का प्रमुख पत्थरबाज बन गया था। बारामूला शहर में होने वाले विरोध प्रदर्शनों के दौरान वह पत्थर फेंकने वालों का नेतृत्व करता था।

जो लोग बहकावे में या लालच में आकर आतंकवाद की राह पर चले जाते हैं और उस माटी पर ही नागरिकों का खून बहाने लगते हैं जिस माटी में वह पले-बढ़े, उनको शेख मुदासिर के हालात से सबक लेना चाहिए। वैसे तो आतंकवाद की राह पर जो चला गया उसे लौटने का मौका दिया जाता है, वह नहीं लौटना चाहे तो उसे हमारे सुरक्षा बल ज्यादा समय तक जिंदा नहीं रहने देते लेकिन फिर भी आतंकवाद के प्रति जिन लोगों का झुकाव हो जाता है उनके लिए शेख मुदासिर ने कुछ कहा है।

हम आपको बता दें कि 2000 के दशक की शुरुआत में एक सामान्य स्कूली छात्र रहा शेख मुदासिर अलगाववादी विचारधारा से प्रभावित होने के बाद कश्मीर का प्रमुख पत्थरबाज बन गया था। बारामूला शहर में होने वाले विरोध प्रदर्शनों के दौरान वह पत्थर फेंकने वालों का नेतृत्व करता था, यही नहीं वह पाकिस्तानी आतंकवादी संगठन हिज्बुल मुजाहिदीन के लिए भी वह काम करने लगा था। आतंकी संगठन हिज्बुल की भारत विरोधी गतिविधियों को शेख मुदासिर का पूरा समर्थन मिलने लगा था क्योंकि वह उसके लिए अंडरग्राउंड वर्कर के रूप में काम कर रहा था। वह समय था जब शेख मुदासिर सोचता था कि एक दिन वह भी आतंकी संगठन का चीफ बनेगा और उसके नाम की दहशत चारों ओर होगी। अपने आतंकी कारनामों के चलते वह तीन बार जेल भी गया लेकिन उसका हौसला नहीं टूटा और वह राष्ट्रविरोधी गतिविधियों में लगा रहा।

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लेकिन हालात एक जैसे कभी नहीं रहते। कभी आतंक की राह पर चलने वाले शेख मुदासिर का आज हाल बेहाल है। उसे ब्रेन ट्यूमर हो गया है और वह पैसों की तंगी की वजह से अपनी सर्जरी भी नहीं करवा सकता है। वह किसी काम का नहीं रहा इसीलिए आतंकी संगठन भी उसे उसके हालात पर छोड़ चुके हैं। आज शेख मुदासिर की हालत यह है कि उसे डॉक्टरों ने घर पर ही रह कर आराम करने को कहा है और कहीं भी बाहर आने-जाने से मना किया है। लेकिन शेख मुदासिर ने और युवाओं को आतंकवाद की राह पर जाने से बचाने के लिए अपनी सेहत का ख्याल छोड़ दिया है। शेख मुदासिर रोज मस्जिद जाता है और युवाओं से अपील करता है कि वह आतंकवाद की राह पर नहीं जायें।

शेख मुदासिर युवाओं से हथियार नहीं उठाने की अपील करते हुए उन्हें अपनी आपबीती बताता है और कहता है कि जैसे मैंने अपना जीवन बर्बाद किया वैसा आप मत करना। मुदासिर को इस तरह की अपील करने पर आतंकी संगठनों से धमकी भी मिली लेकिन अब वह निडर हो चुका है और कहता है कि मैं तो वैसे भी मर रहा हूँ लेकिन अपने साथ जो हुआ वह किसी और के साथ नहीं होने दूंगा। वह कहता है कि मैंने अल्लाह के शांति के संदेश को सब तक पहुँचाने की कसम खाई है।

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हम आपको बता दें कि अंग्रेजी समाचारपत्र द टाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट के अनुसार, मुदासिर ने बताया कि उसने जेल में रहने के दौरान देखा कि कैसे हुर्रियत कांफ्रेंस के लोगों को सुविधाएं मिली हुई थीं और वह ऐशो आराम से रहते थे जबकि उन्हें बदबूदार कमरों में रखा जाता था। शेख मुदासिर ने बताया कि जेल अधीक्षक रजनी सहगल ने उसे मुख्यधारा के जीवन में लौटने की सलाह दी और समझाया कि कैसे पाकिस्तान उस जैसे लोगों का इस्तेमाल कर रहा है। शेख मुदासिर ने बताया कि जेल से रिहाई के बाद जब अपने परिवार के साथ उसने जिंदगी बिताने की सोची तो उसके बुरे कर्म आड़े आ गये। उसे सिरदर्द रहने लगा और जब जांच कराई तो उसे ब्रेन ट्यूमर का पता चला। शेख मुदासिर के पिता की मृत्यु हो चुकी थी और घर का बड़ा लड़का होने के कारण उस पर ही भाई, बहनों और मां की जिम्मेदारी आ गयी थी और ऐसे में जानलेवा बीमारी का पता चलने पर उसने मदद के लिए कई जगह हाथ फैलाये लेकिन उसे सफलता नहीं मिली।

शेख मुदासिर ने बताया कि उसने छोटे-मोटे काम किये ताकि परिवार का खर्च चल सके। वह मदद के लिए हुर्रियत के अली शाह गिलानी और मीरवाइज उमर फारूक से मिलने श्रीनगर गया लेकिन उन्होंने 2000 रुपए देकर टरका दिया। उन लोगों ने उससे ईलाज संबंधी कागजात ले लिये और बाद में आने को कहा। जब शेख मुदासिर जब कुछ दिनों बाद फिर हुर्रियत नेताओं के पास गया तो उनके सुरक्षाकर्मियों ने उसे भगा दिया। यानि जब तक वह पत्थर फेंकता था तब तक हुर्रियत नेता उसे पैसे देते रहे, जब तक वह आतंक की राह पर चलता रहा, आतंकी संगठन उसे पैसे देते रहे लेकिन जब वह काम का नहीं रहा तो उसे धक्का मार दिया।

अब शेख मुदासिर मदरसों और मस्जिदों में जाकर युवाओं को अपनी आपबीती सुनाता है और आतंकवाद तथा अलगाववाद से उन्हें दूर रहने को कहता है। तो इस तरह शेख मुदासिर की आपबीती सबक है उन लोगों के लिए जो आतंक की राह पर जाने की बात सोचते हैं।

-नीरज कुमार दुबे

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