मनोहर लाल खट्टर के सामने गठबंधन सरकार चलाने की चुनौती

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[email protected] । Oct 28 2019 11:18AM

भाजपा को हरियाणा में पार्टी की राष्ट्रीय स्तर पर प्रभुत्व का फायदा मिला। भाजपा ने 2014 में 90 में से 47 सीटें हासिल करके पहली दफा हरियाणा में अपने बूते पर सरकार बनाई थी और इस बार 75 सीटें जीतने का लक्ष्य रखा था लेकिन उसे 40 सीटें ही नसीब हुईं जो बहुमत से छह कम हैं।

चंडीगढ़। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2014 में हरियाणा के मुख्यमंत्री पद के लिए जब मनोहर लाल खट्टर पर विश्वास जताया था, तब इस फैसले से कई लोग आश्चर्यचकित रह गए थे। खट्टर हरियाणा में प्रभुत्व वाले जाट समुदाय से नहीं आते हैं। वह पंजाबी बोलते हैं और उन्हें कोई प्रशासनिक अनुभव भी नहीं था।

खट्टर (आयु 63) ने 21 अक्टूबर को हुए विधानसभा चुनाव से पहले प्रचार के दौरान कहा था, ‘‘ऐसे लोग थे, जो कहते थे कि मैं नया हूं और अनुभवहीन हूं। कुछ लोगों ने मुझे अनाड़ी बताया, लेकिन अब वही लोग कहते हैं कि मैं अनाड़ी नहीं हूं, मगर राजनीति का खिलाड़ी हूं।’’ भाजपा को हरियाणा में पार्टी की राष्ट्रीय स्तर पर प्रभुत्व का फायदा मिला।  भाजपा ने 2014 में 90 में से 47 सीटें हासिल करके पहली दफा हरियाणा में अपने बूते पर सरकार बनाई थी और इस बार 75 सीटें जीतने का लक्ष्य रखा था लेकिन उसे 40 सीटें ही नसीब हुईं जो बहुमत से छह कम हैं। सत्तारूढ़ पार्टी के स्वच्छ, पारदर्शी, भ्रष्टाचार मुक्त सरकार के दावे के बावजूद, राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि राज्य की राजनीति में जाटों के प्रभुत्व का मुकाबला करने के लिए गैर-जाट वोटों को एकजुट करने की भाजपा रणनीति थी जिसका उसे नुकसान हुआ। खट्टर सरकार के आठ मंत्री हार गए जिसमें जाट समुदाय से आने वाले अभिमन्यु और ओमप्रकाश धनखड़ शामिल हैं। अब उनकी पार्टी सात निर्दलियों और 10 महीने पुरानी जन नायक जनता पार्टी (जेजेपी) से समर्थन ले रही है और जेजेपी नेता दुष्यंत चौटाला को उपमुख्यमंत्री बनाया गया है। खट्टर केसामने गठबंधन सरकार चलाने की चुनौती है। जेजेपी चुनाव से पहले किए गए सभी वादों को पूरा करने के लिए गठबंधन सहयोगी भाजपा पर दबाव बना सकती है। 

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खट्टर 1977 में 24 साल की उम्र में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ में शामिल हुए थे। उन्होंने 1996 में मोदी के साथ काम करना शुरू किया जो खुद आरएसएस के प्रचारक हैं। उस वक्त मोदी हरियाणा में राज्य के प्रभारी थे। साल 2002 में खट्टर को जम्मू-कश्मीर चुनाव का प्रभारी बनाया गया। खट्टर अविवाहित हैं और सादे रहन सहन के लिए जाने जाते हैं। उन्होंने भाजपा में अहम पदों पर काम करने के दौरान कड़े ‘टास्कमास्टर’ की ख्याति हासिल की और उनके सांगठनिक कौशल को भी सराहना की गई थी। उन्होंने कई चुनावों के प्रचार में अहम भूमिका निभाई और वह 2014 के लोकसभा चुनाव के दौरान हरियाणा में पार्टी की प्रचार समिति के अध्यक्ष थे। खट्टर ने राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा की ‘अंत्योदय योजना’ की भी अगुवाई की जो पार्टी की विचारधारा को समाज के सबसे निचले पायदान पर ले जाने का प्रतीक है। बहरहाल, खट्टर की मोदी से निकटता की वजह से लगता है कि अक्टूबर 2014 में उन्हें मुख्यमंत्री का पद मिला और राम बिलास शर्मा, अनिल विज और ओपी धनखड़ जैसे वरिष्ठ नेताओं को किनारे कर दिया गया। खट्टर बचपन में डॉक्टर बनना चाहते थे, लेकिन नियति को कुछ और मंजूर था और वह हरियाणा के पहले पंजाबी बोलने वाले मुख्यमंत्री बने। राज्य में 18 साल बाद कोई गैर जाट मुख्यमंत्री बना था।  खट्टर रोहतक जिले के निंदाना गांव में पैदा हुए थे। वह कृषि की पृष्ठभूमि से आते हैं। उनका परिवार बंटवारे के बाद पाकिस्तान से हरियाणा आया था। वे निंदाना गांव में बस गए थे। उनके पिता और दादा ने कृषि को पेशा बनाया और बाद में पैसा जमा कर एक छोटी दुकान खोली। 

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खट्टर 10 वीं कक्षा के बाद पढ़ाई करने वाले अपने परिवार के पहले सदस्य हैं। उन्होंने रोहतक के नेकीराम शर्मा सरकारी कॉलेज में दाखिला लिया था। वह चिकित्सा प्रवेश परीक्षा की तैयारी करने के लिए दिल्ली आए थे और उसके बाद कई ऐसी घटनाएं हुई जिससे उनका जीवन बदल गया। कृषि से जुड़े रहने के लिए अपने परिवार के दबाव के बावजूद, उन्होंने कारोबार किया और उसी दौरान दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक किया तथा 1977 में वह आरएसएस में शामिल हुए। उनके मुख्यमंत्री के रहते भाजपा ने पिछले साल सभी पांच मेयर की सीटें जीतीं और इस साल जींद उपचुनाव में भी जीत हासिल की। इसके अलावा लोकसभा चुनाव में पार्टी ने सभी सीटों पर जीत हासिल की जिससे उनकी स्थिति मजबूत की। खट्टर की सरकार ने सभी क्षेत्रों में पारदर्शिता लाने का दावा किया है, ‘भ्रष्टाचार मुक्त’ सरकार दी, योग्यता के आधार पर नौकरी दी, कई कल्याणकारी योजनाएं शुरू की, बुनियादी ढांचे को उन्नत किया और पंचायत चुनाव लड़ने के लिए न्यूनतम शैक्षणिक योग्यता के मानदंडों पर कानून बनाया। नवंबर 2014 में स्वयंभू धर्मगुरु रामपाल के खिलाफ कार्रवाई, 2016 में जाटों का आरक्षण आंदोलन और 2017 में डेरा सच्चा सौदा प्रमुख गुरमीत राम रहीम सिंह को दोषी ठहराए जाने के बाद हुई हिंसा सहित उनकी सरकार ने कई चुनौतियों का दावा किया। 

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