मिलिए आजमगढ़ के पुलमैन शकील अहमद से, अपने हौसले की बदौतल बनवा चुके हैं 6 पुल

इन पुलों के निर्माण से वहां के स्थानीय लोगों को काफी फायदा हो रहा है। दो पुलों के निर्माण में इसलिए देरी हुई क्योंकि कोरोना महामारी और बाढ़ की वजह से इसका काम रोक दिया गया था।
कहते हैं हौसला हो तो बंजर जमीन में भी खेती की जा सकती है। हौसले से हर मुश्किलों का फतह किया जा सकता है। ऐसी ही कुछ कहानी उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ से आ रही है। आजमगढ़ में एक छोटा सा काम है तोवा, जहां एक शख्स रहता है शकील अहमद। लोग शकील को उसके नाम से नहीं बल्कि पुल वाले के नाम से जानते हैं। दरअसल, शकील वह इंसान हैं जिसने लोगों के सहयोग से अब तक छह पुल बनवा चुके हैं। अपने अथक मेहनत, साहस तथा लोगों की सहयोग के बदौलत उन्होंने यह पुल बनवाए हैं। इन छह पुलों में से चार को चालू भी कर दिया गया है जबकि दो पुलों का निर्माण अभी जारी हैं।
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इन पुलों के निर्माण से वहां के स्थानीय लोगों को काफी फायदा हो रहा है। दो पुलों के निर्माण में इसलिए देरी हुई क्योंकि कोरोना महामारी और बाढ़ की वजह से इसका काम रोक दिया गया था। इन पुलों का निर्माण ऐसे वक्त में किया जा रहा है जब तमाम सरकारें विकास का लगातार दावा करती हैं। स्थानीय लोगों को पुल के निर्माण के लिए काफी संघर्ष करना पड़ा। स्थानीय पदाधिकारी से लेकर सांसद, विधायक के पास इन लोगों ने चक्कर लगाए लेकिन कहीं से कोई फायदा नहीं हुआ। इसके बाद शकील के नेतृत्व में स्थानीय लोगों ने खुद पुल बनाने का बीड़ा उठाया।
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हालांकि, सबसे दिलचस्प तो यह है कि आखिर शकील अहमद को पुल बनाने की प्रेरणा कहां से मिली। बात 1982 की है, जब गांव की एक घटना ने शकील को अंदर से झंकझोर दिया था। दरअसल, गांव में कोई पुल नहीं थी। नदी पार करने के दौरान एक बच्चा नाव के सवारी कर रहा था लेकिन डूब जाने की वजह से उस बच्चे की मौत हो गई। इस घटना के बाद शकील अहमद ने प्रण लिया था कि वह नदी पर पुल बनाएंगे ताकि ऐसी घटना दोबारा ना हो। जब शकील अहमद ने पुल बनाने का निर्णय लिया तो इसके लिए उन्होंने आम लोगों को जोड़ना शुरू किया। वह चंदा मांगने लगे तो उन पर कई तरह के आरोप भी लगे। लेकिन मजबूत इरादों की वजह से शकील अहमद पुलों को बनाने में कामयाब हुए।
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