Matrubhoomi | नासमझ सुल्तान के क्रूरता से भरे किस्से | Real History of Shah Jahan

 Shah Jahan
Prabhasakshi
अभिनय आकाश । May 31 2023 7:23PM

शाहजहां की उपर्युक्त भव्यता और स्थापत्य वैभव मुगल अर्थव्यवस्था को भारी कीमत चुकानी पड़ी। एक शब्द में कहे तो मुगल साम्राज्य को उसकी समृद्धि की ऊंचाई पर दिवालिया करने का श्रेय पूरी तरह से शाहजहाँ को दिया जा सकता है।

क्या आप इस बात से वाकिफ हैं कि 16वीं शताब्दी में भारत मां के 74 लाख बच्चों ने अकाल में घुट-घुटकर दम तोड़ दिया था। लेकिन इसके ठीक उलट शाहजहां के जंग और बदले की आग ने सारी धरती को बंजर बना दिया। उसने अपनी प्रजा को बचाने और अकाल से मरे हुए लोगों के लिए एक लाख रूपये ही दिए थे। अगर आपको ये रकम आपको बहुत ज्यादा लग रही है तो जरा ठहरिए। आपको बता दें कि ये एक लाख रुपए उस वक्त शाहजहां की बेगम के साल भर के खर्चे का केवल और केवल 10 प्रतिशत भर था। 15वीं शताब्दी यानी मुगलों के आने से पहले तक भारत दुनिया की जीडीपी में 29 प्रतिशत का भागीदार था। लेकिन मुगलों के आने के बाद ये खिसकर 23 फीसदी पर आ गई। मुगल भारत पर राज भी कर रहे थे और उसे लूट भी रहे थे व यहां के लोगों का खून भी जमकर बहा रहे थे। 

बेगम के लिए एक धर्मांध तानाशाह का स्मारक 

शाहजहाँ का नाम लिया जाता है तो सबसे पहली बात जो ध्यान में आती है, वो है भव्य संगमरमर की ताजमहल, अपनी बेगम के लिए एक धर्मांध तानाशाह का स्मारक। राजकुमार शाहब-उद-दीन मुहम्मद खुर्रम या शाहजहाँ ने अपने पिता जहाँगीर के खिलाफ विद्रोह किया। उनकी पत्नी, मुमताज़ ने उन्हें अपने पिता के प्रकोप से बचने के लिए एक जगह से दूसरी जगह घने जंगलों, पहाड़ी दर्रों में भागते समय उनका साथ दिया। तेलंगाना के जंगल से लेकर बंगाल के जानलेवा दलदल और दक्षिण बिहार के दुर्गम इलाके तक। पग-पग पर इस तरह की दुश्वारियों के बावजूद मुमताज ने रोहतास में मुराद बख्श और उज्जैन के पास दोहाद में औरंगजेब को जन्म दिया। 

इतिहास के अधिक अति उत्तम छलावे में से एक है ताजमहल 

कहानी यहीं खत्म नहीं होती, बल्कि शुरू होती है। मुमताज महल की मृत्यु के साथ शाहजहाँ की कामेच्छा पूरी तरह से असंतुलित हो गई और इसका वर्णन इतिहासकार स्मिथ के शब्दों में करे तो- इसमें कोई संदेह नहीं है कि अपने जीवन के शेष 35 वर्षों के दौरान शाहजहां घोर व्यभिचार से खुद को डुबाए रखा। हमें इस संपूर्ण ऐतिहासिक संदर्भ में शाही रोमांस की मशहूर कब्र, ताजमहल को देखने की जरूरत है। दरअसल, ताजमहल रोमांस का एक क्रूर भ्रम पेश करता है। सनातन लोकाचार और आत्मा के लिए रोमांस, प्रेम और अन्य कोमल भावनाएं ही काफी हैं। कुछ ऐसा नहीं है जिसके लिए मृतकों के लिए एक स्मारक बनाया गया हो। सनातन भावना जीवन देने वाली तुलसी के ऊपर और उसके चारों ओर वृंदावन का निर्माण करती है। इस भावना के लिए, हजारों नामहीन, चेहरेविहीन और अनजाने गुलामों के खून, पसीने और आंसुओं का उपयोग करके एक महंगा कब्रिस्तान बनाना न केवल विद्रोह है, यह भीतर के परमात्मा के खिलाफ अपराध है। ताजमहल इतिहास के अधिक स्थायी, उत्तम छलावे में से एक है। 

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अपनी सनक में मुगल अर्थव्यवस्था को बना दिया दिवालिया 

शाहजहां की उपर्युक्त भव्यता और स्थापत्य वैभव मुगल अर्थव्यवस्था को भारी कीमत चुकानी पड़ी। एक शब्द में कहे तो मुगल साम्राज्य को उसकी समृद्धि की ऊंचाई पर दिवालिया करने का श्रेय पूरी तरह से शाहजहाँ को दिया जा सकता है। बिहार से बंगाल और दक्खन तक अर्थव्यवस्था का मूल भाग बर्बाद हो गया था, जबकि बादशाह अपनी भव्यता के आभास में डूबा रहा। समकालीन यात्री बर्नियर ने अपनी बंगाल यात्रा में तंज भरे लहजे में कहा था कि बंगाल राज्य में प्रवेश के लिए सौ द्वार खुले हैं, लेकिन प्रस्थान के लिए एक नहीं। माता-पिता अपने ही छोटे बच्चों को नपुंसक बना देते थे और उन्हें गुलामों के रूप में बेच देते थे ताकि वे जीवित रह सकें। 

भारत मां के 74 लाख बच्चों ने अकाल में दम तोड़ दिया 

साल 1628 की बात है शाहजहां ने बादशाह के रूप में तख्त संभाला था और नए साल पर बड़ी दावत रखी गई थी। यहां शाहजहां ने अपनी पसंदीदा बेगम मुमताज महल को पचास लाख और बेटी जहांआरा को 20 लाख रुपए दिए थे। दो साल बाद जब भारत के गोलकुंडा, अहमदनगर, गुजरात और कुछ और हिस्सों में भयंकर आकाल आया, जिसने 74 लाख लोगों को मौत की खाई में ढकेल दिया। वहीं अपनी बेगम पर 50 लाख उड़ाने वाले शाहजहां ने आकाल से जूझ रहे लोगों की कोई खास मदद नहीं की थी। उन्होंने आकाल से जूझ रहे लोगों को एक लाख रुपए दिए थे। आपको ये जानकर हैरानी होगी की ये आकाल भी शाहजहां की ही देन थी। जब भयंकर जंग की वजह से खेत बर्बाद हो गए थे। 

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नासमझ सुल्तान के क्रूरता से भरे किस्से 

कठोर, नासमझ और क्रूरता में शाहजहाँ ने अपनी अलग पहचान बनाई। इसे दो उदाहरणों से समझ सकते हैं। पहला दिल्ली (या आगरा) के कोतवाल मुहम्मद सईद की बर्बर हत्या है। इसे पेशे से चिकित्सक निकोलाओ मानुची ने खुद कुछ इस प्रकार बयां किया- 

शाहजहां अपने अधिकारियों पर हमेशा निगाहें बनाकर रखता था। ऐसे में जब वे अपने कर्तव्य से चूक जाते थे तो उन्हें कठोर दंड दिए जाते थे। शाहजहां अपने दरबार में एक अधिकारी को रखता था जिसके पास जहरीले सांपों से भरी कई टोकरियां होती थीं। बादशाह के आदेश पर इन सापों को किसी भी अधिकारी पर छोड़ दिया जाता है जब तक की विष से उनकी सांस न निकल जाए। मानुची ने बताया कि मैंने देखा (कोतवाल) ने मुहम्मद सईद को बुलाया। बताया गया कि ये आदमी घूस लेता था। जिसके बाद एक आदेश दिया गया कि उसे एक हाथ में एक कोबरा कैपेलो द्वारा काटा जाना चाहिए, जो पृथ्वी पर सबसे जहरीला साँप है। सांपों को संभालने वाले से पूछा गया कि वह आदमी कितने समय तक जीवित रह सकता है। उसने उत्तर दिया कि वह एक घंटे से अधिक जीवित नहीं रह सकता। कोतवाल की जीवनलीला समाप्त होने तक शाहजहाँ वहीं बैठे रहा। फिर उसने आदेश दिया कि शरीर को दो दिन उनके न्यायालय-घर के सामने रखा जाए। अन्य जो मरणााव्स्था में थे, उन्हें पागल हाथियों के सामने फेंकने का आदेश दिया गया। 

शाहजहां के दूसरे बर्बरता की कहानी कुछ इस प्रकार है- एक पसंदीदा दास, जिसे दरबारियों को सुपारी न देने का निर्देश दिया गया था। उसे आदेश की अवहेलना करता देखा गया। बादशाह की मौजूदगी में उसे पीट-पीट कर मार डाला गया। अपने पिता की तरह, शाहजहाँ ने भी अपनी सनक में दिए गए चौंकाने वाले दंडों को देखकर भरपूर आनंद लिया। 

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बढ़ता हिन्दू उत्पीड़न 

यदि शाहजहाँ के मुस्लिम दरबारियों और कर्मचारियों के साथ ऐसा व्यवहार होता था, तो उसके शासन में हिंदुओं के हाल की कल्पना तो करना बेहद ही आसान है। शाहजहाँ ने हिंदू उत्पीड़न को बढ़ाया, जिसकी शुरुआत जहाँगीर ने की थी। मुग़ल बादशाह शाहजहाँ के सरकारी इतिहासकार अब्दुल हमीद लाहौरी बादशाहनामा में 1635 के करीब शाहजहाँ के सेनापतियों ने काफिर जुझार सिंह को दंडित करने के लिए बुंदेला गढ़ में सैन्य अभियान का नेतृत्व किया। जदुनाथ सरकार बताते हैं कि आगे शाहजहाँ के सैनिकों ने शाही बुंदेला परिवार की कुछ महिलाओं को पकड़ लिया... राजाओं की माताओं और बेटियों को उनके धर्म से वंचित कर दिया गया और मुगल हरम के कुख्यात जीवन जीने के लिए मजबूर किया गया। शाहजहाँ ने स्वयं बुंदेलों की राजधानी ओरछा में प्रवेश किया, बीर सिंह देव के ऊँचे और विशाल मंदिर को ध्वस्त कर दिया और उसके स्थान पर एक मस्जिद खड़ी कर दी। इसके अलावा, उन्होंने लाहौर में एक सिख गुरुद्वारा को ध्वस्त कर दिया। बर्बर जजिया, तीर्थयात्री कर का पुन: अधिरोपण, स्वाभाविक रूप से, शाहजहाँ की हिंदू उत्पीड़न की राज्य नीति का विस्तार था।

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