हिमाचल प्रदेश के ऊना जिला में स्थित प्रसिद्ध छिन्नमस्तिका धाम चितपुर्णी ,यहां पिंडी रूप में मंदिर में माता विराजमान हैं

Chitpurni

माता चिंतपूर्णी के स्थान का प्रादुर्भाव देवी भक्त माई दास के माध्यम से माना जाता है। प्रचलित एक जनश्रुति के अनुसार प्राचीन काल में पंजाब के जिला पटियाला के अठूर नामक गांव में माई दास और दुर्गा दास नामक दो भाई रहते थे। लेकिन इसके बाद ये दोनों हिमाचल प्रदेश के रपोह मुचलेयां गांव में आकर रहने लगे तथा यहां आकर खेतीबाडी करने लगे।

चिन्तपूर्णी  ।  हिमाचल प्रदेश के ऊना जिला में स्थित प्रसिद्ध धर्मिक स्थल चिन्तपूर्णी का अपना ही महत्व है। चिन्तपूर्णी अर्थात चिन्ता को दूर करने वाली देवी जिसे छिन्नमस्तिका भी कहा जाता है। छिन्नमस्तिका का अर्थ है-एक देवी जो बिना सर के है। कहा जाता है कि यहां पर पार्वती के पवित्र पांव गिरे थे।

 

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पौराणिक कथाओं के अनुसार जब भगवान विष्णु ने मां सती के जलते हुए शरीर के 52 हिस्से कर दिए थे तब जाकर शिव जी का क्रोध शांत हुआ था और उन्होंने तांडव करना भी बंद कर दिया था। भगवान विष्णु द्वारा किए गए देवी सती के शरीर के 52 हिस्से भारत उपमहाद्वीप के विभिन्न हिस्सों में जा गिरे थे। ऐसा माना जाता है की इस स्थान पर देवी सती का पैर गिरा था और चिंतपूर्णी में  विराजमान  देवी को छिन्नमस्तिका के नाम से भी जाना जाता है।

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मारकंडे पुराण के अनुसार, देवी चंडी ने राक्षसों को एक भीषण युद्ध में पराजित कर दिया था परंतु उनकी दो योगिनियां (जया और विजया) युद्ध समाप्त होने के पश्चात भी रक्त की प्यासी थी, जया और विजया को शांत करने के लिए की देवी चंडी ने अपना सिर काट लिया और उनकी खून की प्यास बुझाई थी।  इसलिए वो अपने काटे हुए सिर को अपने हाथों में पकडे दिखाई देती है, उनकी गर्दन की धमनियों में से निकल रही रक्त की धाराओं को उनके दोनों तरफ मौजूद दो नग्न योगिनियां पी रही हैं।

दंतकथाओं के मुताबिक माता चिंतपूर्णी के स्थान का प्रादुर्भाव देवी भक्त माई दास के माध्यम से माना जाता है। प्रचलित एक जनश्रुति के अनुसार प्राचीन काल में पंजाब के जिला पटियाला के अठूर नामक गांव में माई दास और दुर्गा दास नामक दो भाई रहते थे। लेकिन इसके बाद ये दोनों हिमाचल प्रदेश के रपोह मुचलेयां गांव में आकर रहने लगे तथा यहां आकर खेतीबाडी करने लगे। माई दास का अधिकतर समय पूजा पाठ में व्यतीत होने लगा जबकि दुर्गा दास अकेले ही खेती बाडी करता था। कहते हैं कि माई दास का ससुराल पिरथीपुर नामक गांव में था। एक बार जब माई दास अपने ससुराल से लोट वक्ते छपरोह गांव से गुजर रहा था तो वह कुछ देर विश्राम करने के लिए एक वट वृक्ष के नीचे लेट गया तथा उसे नींद आ गई। नींद आते ही स्वपन्न में माई दास को एक कन्या ने दर्शन दिए तथा कहा कि तुम मेरी यहां नित्य प्रेम पूर्वक पूजा-अर्चना आरंभ करो।

लेकिन जैसे ही स्वप्र टूटा माई दास को कुछ भी दिखाई नहीं दिया तथा वह अपने ससुराल चला गया। परन्तु रात को बिस्तर में लेटने पर नींद नहीं आ रही थी तथा बार-बार सोने का प्रयास करने के बावजूद वह सो नहीं पाया और रात को ही ससुराल से छपरोह आ गया तथा यहां आकर मां से विनम्रतापूर्वक प्रार्थना करने लगा कि मां यदि तू सच्ची है तो अभी दर्शन दो। माई दास की प्रार्थना से प्रसन्न होकर मां ने कन्या रूप में दर्शन दिए तथा कहा कि वह चिरकाल से यहां स्थित वट वृक्ष के नीचे मेरा घर है तथा तुम यहां पूजा-अर्चना आरंभ कर दो। मां ने कहा कि यहां पूजा अर्चना करने से तुम्हारे और अन्य समस्त लोगों के कष्ट एवं चिंताए समाप्त हो जाएंगी।

लेकिन माई दास ने कन्या से कहा कि न तो मेरे रहने की व्यवस्था है न ही यहां पीने के लिए पानी का प्रबंध है। ऐसे में कन्या ने कहा कि कि मैं भक्तों के ऊपर प्रकाश डालूगीं जो यहां मंदिर बनवाएंगें तथा भोग का प्रबंध करेंगें जबकि यहां से 50 गज की दूरी पर पहाडी के नीचे एक पत्थर को उखाडने से पानी की समस्या का समाधान हो जाएगा। मां ने कहा कि मेरी पूजा के समस्त अधिकार आपके तथा आपके परिवार के होंगें तथा आपके वंश के लिए किसी प्रकार का सूतक-पातक का बंधन नहीं होगा। यहां किसी प्रकार का अत्याचार या गलत कार्य होने पर मैं किसी भी कन्या में प्रवेश कर आपकी समस्या का समाधान करूंगी। ऐसा कहते ही कन्या पिंडी के रूप में लोप हो गई।

यही पिंडी रूप में आज मंदिर में माता विराजमान हैं जिसे छिन्नमस्तिका भी कहा जाता है। श्रद्धालु इसी पिंडि रूप की पूजा यहां करते हैं।  मंदिर के प्रांगण में स्थित वट वृक्ष अति प्राचीन है। इस बारे श्रद्धालुओं का विश्वास है कि यहां डोरियां बांधने से समस्त मनोकामनाएं पूर्ण होती है तत्पश्चात श्रद्धालु बांधी हुई डोरी को खोलते हैं।

पुराणों के अनुसार यह स्थान चार महारुद्र के मध्य स्थित है। एक और कालेश्वर महादेव, दूसरी ओर शिववाड़ी, तीसरी ओर नारायण महादेव, चौथी ओर मुचकंद महादेव हैं।

यहां प्रति वर्ष नव वर्ष, श्रावण अष्टमी,चैत्र एवं आश्विन के नवरात्र मेले लगते हैं।  मेले के दौरान प्रशासन की ओर से सुरक्षा  व अन्य इंतजाम किये जाते हैं।  मंदिर हिमाचल सरकार के नियंत्रण में है। इसकी देखरेख जिलाधीश ऊना के जिम्मे है।

12 जून, 1987 से इस मन्दिर का प्रबन्ध् हिमाचल सरकार के नियंत्रण में है। इसके लिए एक ट्रस्ट की स्थापना की गई है और ज़िलाधीश ऊना इसके आयुक्त हैं और उपमंडल अधिकारी अम्ब प्रधान और सहायक आयुक्त हैं। मन्दिर अधिकारी का कामकाज तहसीलदार देखते हैं।

चिन्तपूर्णी जाने के लिए होशियारपुर, चंडीगढ़, दिल्ली, धर्मशाला, शिमला और बहुत से अन्य स्थानों से सीधे बसें यहां पहुंचती हैं। यहां पर वर्ष में तीन बार मेले लगते हैं। पहला चैत्रा मास के नवरात्रों में, दूसरा श्रावण मास के नवरात्रों में, तीसरा अश्विन मास के नवरात्रों में। नवरात्रों में यहां श्रधालुयों की काफी भीड़ लगी रहती है। चिन्तपूर्णी में बहुत सी धर्मशालाएं हैं, जो बस अड्डे के पास स्थित है और कुछ मन्दिर के निकट स्थित हैं।

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