महाराष्ट्र में खड़गे और सिंधिया क्यों हुए फेल ? क्या भाजपा से सीख नहीं लेना चाहती कांग्रेस

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राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि कश्मीर से आर्टिकल 370 के निरस्त होने के बाद मोदी सरकार ने कांग्रेस को घेरना शुरू किया और कांग्रेस में ही फूट पड़ गई।

महाराष्ट्र की 288 सीटों के लिए हुए चुनाव के नतीजे घोषित होने शुरू हो गए हैं। इसी के साथ एक बार फिर से प्रदेश में भाजपा और शिवसेना गठबंधन वाली सरकार बनते हुए दिखाई दे रही है। जबकि तीसरे नंबर पर राकांपा तो चौथे पायदान पर कांग्रेस नजर आ रही है। जीत का दावा करने वाले कांग्रेसी नेताओं फिलहाल चुप्पी साधे हुए है और पूरे चुनावी परिणाम आने का इंतजार कर रहे हैं। लेकिन सवाल खड़ा होता है कि कांग्रेस महासचिव ज्योतिरादित्य सिंधिया और वरिष्ठ नेता मल्लिकार्जुन खड़गे जब खुद प्रदेश चुनाव का जिम्मा अपने सर पर उठाए हुए थे तो पार्टी ने कहां मात खाई।

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राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि कश्मीर से आर्टिकल 370 के निरस्त होने के बाद मोदी सरकार ने कांग्रेस को घेरना शुरू किया और कांग्रेस में ही फूट पड़ गई। क्योंकि कांग्रेस का युवा धड़ा सरकार के फैसले का समर्थन कर रहा था तो वरिष्ठ नेता इसका विरोध। ऐसे में कांग्रेस में आपसी सहमति ही नहीं बन पा रही थी तो फिर जनता को पार्टी के नेता कैसे लुभा पाते। लेकिन चुनावी रैलियों के बीच पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने यह कहते हुए स्थिति को सुधारने का प्रयास किया कि अनुच्छेद 370 को निरस्त किए जाने के फैसले पर तो कांग्रेस, मोदी सरकार के साथ थी। हमने सवाल सिर्फ निरस्त करने के तरीके पर उठाया था। डॉ. सिंह के इस बयान के बाद प्रदेश में कांग्रेस ने डैमेज कंट्रोल किया।

दूसरी तरफ ज्योतिरादित्य सिंधिया चुनाव प्रभारी तो महाराष्ट्र के थे लेकिन वह मध्य प्रदेश से निकल ही नहीं पा रहे थे। जब आप उनके सोशल मीडिया अकाउंट्स पर नजर डालेंगे तो मध्य प्रदेश के मामले में वह ज्यादा एक्टिव नजर आए। इसी के साथ अगर हम बात मल्लिकार्जुन खड़गे की करें तो उन्होंने साफ शब्दों में यह कह दिया था कि पार्टी के नेता तो उनकी बात सुनते ही नहीं है। इसके अलावा पार्टी नेताओं और खड़गे के बीच कई मुद्दों को लेकर सहमति भी नहीं बन पाई थी और वह पार्टी से अलग अपने बयान दे रहे थे। 

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मुंबई कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष संजय निरुपम ने भी खड़गे पर आरोप लगाया था कि मैंने जिन नेताओं के नाम सुझाए थे उनकी तरफ तो इन्होंने देखा तक नहीं। साथ ही उन्होंने जमीनी हकीकत पर भी ध्यान नहीं दिया था। निरुपम के अलावा भी कई नेताओं ने इस तरह के बयान खड़गे के खिलाफ दिए थे। विशेषज्ञों ने कहा कि कांग्रेस को भाजपा से सीख लेनी चाहिए कि किस तरह से चुनावों की तैयारियां करते हैं क्योंकि चुनावों के समय पर तो सिर्फ कांग्रेस में आपसी फूट की ही बात चलती रहती है। 

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