हॉकी खरीदने तक के पैसे नहीं थे, अब पेरिस ओलंपिक की टीम में जगह बनाने में कामयाब रहे Lalit Upadhyay
भारतीय हॉकी के चमकते सितारे ललित उपाध्याय पेरिस जाने वाली टीम में अपनी जगह सुनिश्चित करने में कामयाब रहे हैं। ललित उपाध्याय आज पूर्वांचल के लिए हॉकी खिलाड़ी का चेहरा बन चुके हैं। कभी बचपन के वो दिन थे कि ललित के पास हॉकी खरीदने के पैसे नहीं होते थे। पिता सतीश उपाध्याय प्राइवेट नौकरी करते हैं।
वाराणसी के रहने वाले भारतीय हॉकी के चमकते सितारे ललित उपाध्याय पेरिस जाने वाली टीम में अपनी जगह सुनिश्चित करने में कामयाब रहे हैं। ललित उपाध्याय आज पूर्वांचल के लिए हॉकी खिलाड़ी का चेहरा बन चुके हैं। कभी बचपन के वो दिन थे कि ललित के पास हॉकी खरीदने के पैसे नहीं होते थे। पिता सतीश उपाध्याय प्राइवेट नौकरी करते हैं और परिवार की स्थिति ठीक न होने से पिता अक्सर निराश रहते थे। ललित दो भाई हैं। बड़े भाई अमित उपाध्याय भी हॉकी खेलते थे और बड़े भाई को देखकर हॉकी को जीवन का लक्ष्य बनाया। आज ललित इंडियन ऑयल में ग्रेड ए आफिसर पर काम करते हैं।
ललित का जन्म 1 दिसंबर 1993 में उत्तर प्रदेश के वाराणसी में हुआ था। ललित उपाध्याय वाराणसी हॉकी स्कूल से आते हैं, जिसने अतीत में मोहम्मद शाहिद जैसे दिग्गज खिलाड़ी दिए हैं, जिन्होंने 1980 के ओलंपिक में भारत को स्वर्ण पदक दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। ललित कुमार ने 2014 में भारत के लिए पदार्पण किया था और तब से वे भारत के लिए कई अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में भाग ले चुके हैं। टोक्यो ओलंपिक 2020 में कांस्य पदक जीतने वाली भारतीय टीम के सदस्य भी थे, जिसे भारत ने 41 वर्षों के अंतराल के बाद जीता था।
उपाध्याय ने एक मीडिया आउटलेट से बात करते हुए कहा, "मैं छठी कक्षा में था और अपने बड़े भाई को हॉकी खेलते हुए देखता था क्योंकि वह भी हॉकी खिलाड़ी है। चोटों के कारण उसने खेलना छोड़ दिया, लेकिन हॉकी खेलकर उसे नौकरी मिल गई। चूँकि मेरा पढ़ाई में ज़्यादा मन नहीं लगता था, इसलिए मैंने भी हॉकी को अपना करियर बनाने का फैसला किया।" ललित कुमार उपाध्याय ने 2010 में हांगकांग आमंत्रण टूर्नामेंट में भाग लिया। इसके बाद उन्होंने 2013 में आयोजित मस्कट (ओमान लीग) और उसके बाद हॉलैंड में आयोजित यूरोप इंटरनेशनल टूर में भाग लिया। उनकी पेशेवर यात्रा अगले स्तर पर पहुंच गई जब उन्होंने 2017 में बांग्लादेश के ढाका में आयोजित हॉकी पुरुष एशिया कप में भारत के लिए कई गोल किए और फाइनल में मलेशिया के खिलाफ 22वें मिनट में उनके शानदार गोल ने भारत के लिए स्वर्ण पदक सुनिश्चित कर दिया। उन्हें 2010 में कोलकाता में आयोजित बीटन कप में टूर्नामेंट का सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी भी चुना गया था।
अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में अपनी उपलब्धियों के अलावा, ललित का घरेलू सर्किट में भी शानदार रिकॉर्ड है, जिसमें 2012 में आयोजित ओबैदुल्ला गोल्ड कप और सुरजीत सिंह हॉकी टूर्नामेंट जैसे घरेलू हॉकी टूर्नामेंट शामिल हैं। ललित कुमार उपाध्याय ने हॉकी के प्रति रुझान विकसित करने के लिए अपने बड़े भाई अमित से प्रेरणा ली और उनके कोच परमानंद मिश्रा ने भी खिलाड़ी के रूप में उनके विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
उन्हें वर्ष 2021 में अर्जुन पुरस्कार मिला और वह 2018 में भुवनेश्वर में आयोजित हॉकी पुरुष हॉकी विश्व कप टीम के सदस्य भी थे। बनारस का हॉकी को लेकर बड़ा इतिहास रहा है। विवेक सिंह ,मोहम्मद शाहिद और अब ललित उपाध्याय। यूपी कालेज के मैदान में सबने हाॉकी का हुनर सीखा। ललित उपाध्याय ने अपनी प्रैक्टिस केडी सिंह से शुरू की। ललित बनारस के एक छोटे से गांव भगवानपुर से हैं। वह लखनऊ साई की ओर से सीनियर ऑल इंडिया केडी सिंह बाबू प्रतियोगिता में भी हिस्सा ले चुके हैं। युवा खिलाड़ी सफलता को लेकर कहते नजर आते हैं कि, सफलता का कोई शॉर्टकट नहीं होता, अपनी मेहनत से देश का नाम रौशन करने वाले खिलाड़ी की सफलता का गुणगान आज हर कोई कर रहा है। ऐसे मेहनतकश के जज्बे को हम सबका सलाम।
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