मजहबी वोट के लिए गठबंधन और खुद को कहते हैं धर्मनिरपेक्ष

विडम्बना देखिये कि मोदी के कथन को वह लोग साम्प्रदायिक बता रहे हैं, जिन्होंने मजहबी वोट के लिये गठबंधन किया है, वह लोग जो बुकलेट जारी करके वर्ग विशेष के लिये किये गये कार्यों को गर्व से बता रहे हैं।

पंथनिरपेक्षता पर संविधान निर्माताओं का दृष्टिकोण पूरी तरह स्पष्ट था। इस संबंध में किसी को कोई गलतफहमी नहीं थी। इसके अनुसार माना गया कि पहला− राज्य अथवा राजसत्ता का कोई पंथ नहीं होगा, दूसरा− पंथ के आधार पर राज्य किसी के साथ भेदभाव नहीं करेगा। संविधान में नागरिकों को धार्मिक स्वतंत्रता का मूल अधिकार दिया गया। बाद में सेक्यूलर शब्द को संशोधन के माध्यम से संविधान की प्रस्तावना में जोड़ा गया। तत्कालीन प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी ने प्रसिद्ध विधि विशेषज्ञ लक्ष्मीमल्ल सिंघवी की अध्यक्षता में एक समिति बनाई थी। इस समिति ने सेक्यूलर शब्द का हिंदी अनुवाद पंथनिरपेक्ष बताया था। इसी को मान्यता मिली। इसका निहितार्थ यह था कि धर्म से निरपेक्ष होना न संभव होता है, न इसे उचित माना जा सकता है जबकि पंथनिरपेक्षता अवश्य होनी चाहिये। राजसत्ता के साथ−साथ समाज को भी इसका सम्मान करना चाहिये। भारत जैसे विविधताओं से भरे देश में इसकी बहुत आवश्यकता भी है। इसीलिये संविधान निर्माताओं ने इसे महत्व दे दिया था। बाद में राजनेताओं ने इसे धर्मनिरपेक्षता मान लिया। यह राजनीति का बड़ा प्रचलित शब्द बन गया। इसे वोटबैंक की राजनीति से जोड़ दिया गया।

अपने को धर्मनिरपेक्ष बताने का बहुत आसान और शार्टकट तरीका भी ईजाद कर लिया गया है। केवल वर्ग विशेष के पक्ष में बयान देकर कोई भी नेता धर्मनिरपेक्ष बन जाता है जो ऐसा नहीं करता उसे साम्प्रदायिक मान लिया जाता है जबकि यह विचार संविधान की व्यवस्था व भावना दोनों के खिलाफ है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के उत्तर प्रदेश में दिये गये बयान को संविधान की कसौटी पर देखना होगा। उन्होंने देश में मजहबी आधार पर भेदभाव ना करने का आह्वान किया था। बिजली की आपूर्ति और चहारदीवारी निर्माण में भी पंथनिरपेक्षता की संवैधानिक व्यवस्था पर ही अमल होना चाहिये। ऐसा भी नहीं है कि मोदी ने यह मुद्दे अपने मन से या अप्रत्याशित रूप से उठाये हों, ये विषय उत्तर प्रदेश विधानसभा में कई बार उठ चुके हैं और इनको उठाने का आधार भी था। मजहब विशेष से संबंधित स्थल की चहारदीवारी बनवाने का फैसला सपा सरकार ने लिया था यदि वह बहुसंख्यकों से संबंधित ऐसे स्थलों में भी चहारदीवारी बनाने का फैसला भी उसी के साथ करती तो किसी प्रकार का विवाद उत्पन्न नहीं होता। तब सरकार का फैसला संविधान में उल्लिखित पंथनिरपेक्षता के दायरे में माना जाता।

इसी प्रकार त्योहारों पर विद्युत आपूर्ति में भी सरकार पर भेदभाव करने के आरोप लगते रहे हैं। मोदी ने ठीक कहा कि रमजान की भांति दीवाली पर भी बिजली आपूर्ति सुनिश्चित होनी चाहिये। मोदी केवल यही बात कहते तो आपत्ति हो सकती थी। लेकिन उन्होंने आगे कहा कि यदि होली पर बिजली मिलती है, तो ईद पर भी मिलनी चाहिये। इस प्रकार मोदी के बयान को सम्पूर्णता में देखना चाहिये। वैसे त्योहारों पर बिजली आपूर्ति में भेदभाव का आरोप भी सपा सरकार पर लगता रहा है। ऐसा भी नहीं कि सपा पर ऐसे आरोप पहली बार लगे हों, जब मुलायम सिंह यादव मुख्यमंत्री हुआ करते थे, उस समय ही ऐसी छवि बन चुकी थी। यह आज तक कायम है। बिजली आपूर्ति में पक्षपात का विषय भी विधानसभा और विधान परिषद में उठ चुका है। कुछ सदस्यों ने तो तथ्यों के आधार पर अपनी बात रखी थी। ऐसे में पहली बात तो यह माननी होगी कि मोदी ने कोई नया विषय नहीं उठाया। दूसरी बात यह कि जवाबदेह तो उनको होना चाहिये, जिन्होंने पक्षपात किया क्योंकि ऐसा करना संविधान की व्यवस्था के प्रतिकूल था। बहस उस समय होनी चाहिये। मोदी ने तो पुरानी बातों के आधार पर पक्षपात ना करने को कहा, इसका तो स्वागत होना चाहिये।

मोदी यह भी बताना चाहते थे कि भाजपा की यहा सरकार बनी तो पंथनिरपेक्षता पर अमल होगा। यदि होली में बिजली आपूर्ति होगी, तो ईद को भी उतना ही महत्व मिलेगा, लेकिन अपने को धर्मनिरपेक्ष बताने वाले नेताओं ने मोदी की केवल एक लाइन लपक ली। पूरे बयान की बात करते तो वह खुद कटघरे में नजर आते। कांग्रेस के नेता मीम अफजल ने इसी एक लाइन के आधार पर बयान को साम्प्रदायिक घोषित कर दिया। यह सबसे पुरानी राष्ट्रीय पार्टी उत्तर प्रदेश में एक क्षेत्रीय दल की पिछलग्गू बनी है। अब उसे इस दल के कार्यकाल की बेहाली दिखाई देना बंद हो गया है वैसे भी वोटबैंक की राजनीति का कोई मौका कांग्रेस अपने हाथ से जाने नहीं देती।

विडम्बना देखिये कि मोदी के कथन को वह लोग साम्प्रदायिक बता रहे हैं, जिन्होंने मजहबी वोट के लिये गठबंधन किया है, वह लोग जो बुकलेट जारी करके वर्ग विशेष के लिये किये गये कार्यों को गर्व से बता रहे हैं, वह लोग जो बता रहे हैं कि वर्ग विशेष के इतने लोगों को टिकट दी है, इसलिये उन्हीं को वोट दें। वोट बैंक की राजनीति पुरानी है, लेकिन उत्तर प्रदेश के चुनाव में मजहबी वोट के लिये इस बार जैसी खुली जोर आजमाइश चल रही है, वह साम्प्रदायिक सियासत का उदाहरण है। मोदी के बयान में अपरोक्ष रूप से इसकी निन्दा भी समाहित है। यह मानना होगा कि उनका बयान संविधान के अनुरूप है। राजनीति व शासन में इस विचार को आगे बढ़ाने की आवश्यकता है।

डॉ. दिलीप अग्निहोत्री

वरिष्ठ स्तंभकार

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