अब ''मूडीज'' को भी ''भक्तों'' की सूची में गिन रही है कांग्रेस
कांग्रेस को आत्मविश्लेषण करना चाहिए कि उक्त अंतरराष्ट्रीय एजेंसियां उसके नेतृत्व वाली ''मौनमोहन'' सरकार के कार्यकाल के दौरान मौन क्यों रहीं जिसका नेतृत्व खुद विश्व स्तर के अर्थशास्त्री स. मनमोहन सिंह कर रहे थे।
देश की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी कांग्रेस में सीधा सिद्धांत काम करता रहा है कि जो नमस्ते करे उसे बिस्कुट खिलाओ और कोई ऐसी बात करे जो रुचिकर न हो तो उसे लांछित करो। अपने विरोधियों व आलोचकों का 'मोदी भक्त' कह कर उपहास उड़ाने वाली सोनिया गांधी की पार्टी ने 'भक्तों' में अंतरराष्ट्रीय रेटिंग एजेंसी 'मूडीज' का नाम भी जोड़ दिया है। आर्थिक हालात में सुधार पर भारत की रेटिंग बढ़ाने के बाद कांग्रेस के लिए 'मूडीज' का अर्थ भी मोदी हो गया है। मूडीज द्वारा भारत की रेटिंग में सुधार का यह कदम विश्व बैंक द्वारा भारत को कारोबार सुगमता के मामले में 30 पायदान ऊपर उठाकर शीर्ष 100 देशों में शामिल करने के कुछ ही सप्ताह बाद आया है। रोचक बात है कि उक्त अंतरराष्ट्रीय एजेंसी ने 13 सालों बाद भारत को लेकर अपना मुंह खोला है और सभी जानते हैं कि उस समय केंद्र में अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की ही सरकार सत्तारूढ़ थी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी व वित्त मंत्री अरुण जेटली के नेतृत्व में भारत को मिली इस आंशिक उपलब्धि से कांग्रेस तिलमिलाई हुई है, इसके प्रवक्ता इन रिपोर्टों को नकार रहे हैं। संयुक्त प्रगतिशील सरकार में वित्त मंत्री रह चुके पी. चिदंबरम का अर्थज्ञान ज्वार पर है जो हर समाचारपत्रों से लेकर चैनलों को यह समझाने में जुटे हैं कि देश के आर्थिक हालात अब भी बद से बदतर हैं।
विगत दिनों अंतरराष्ट्रीय क्रेडिट रेटिंग एजेंसी 'मूडीज' ने भारत की रेटिंग एक पायदान ऊपर उठाते हुए 'बीएए-2' कर दी है। रेटिंग एजेंसी ने कहा है कि भारत में लगातार आर्थिक और संस्थागत सुधारों से वृद्धि संभावनाएं बेहतर हुई हैं। इस पर कांग्रेस मूडीज और नरेंद्र मोदी सरकार दोनों पर हमलावर हो गई है। भारत की वित्तीय साख में सुधार को देश की जमीनी सच्चाई से दूर बताते हुए कांग्रेस ने कहा कि मोदी सरकार विदेशी रेटिंग एजेंसियों की रिपोर्ट की आड़ में देश का मूड नहीं समझ पा रही है। रिपोर्ट आते ही कांग्रेस के प्रवक्ता राजीव शुक्ला ने संवाददाताओं से कहा कि देश में चुनावों से पहले किसी विदेशी एजेंसी की क्रेडिट रेटिंग जारी हो जाती है, लेकिन अब तक किसी भारतीय एजेंसी की कोई रेटिंग नहीं आई है जो देश की वास्तविक आर्थिक स्थिति को उजागर कर सके। अगर इन रेटिंग रिपोर्टों को सही मान भी लिया जाए तो आर्थिक विकास दर और सकल घरेलू उत्पाद में लगातार गिरावट क्यों आ रही है।
कांग्रेस को आत्मविश्लेषण करना चाहिए कि उक्त अंतरराष्ट्रीय एजेंसियां उसके नेतृत्व वाली 'मौनमोहन' सरकार के कार्यकाल के दौरान मौन क्यों रहीं जिसका नेतृत्व खुद विश्व स्तर के अर्थशास्त्री स. मनमोहन सिंह कर रहे थे। वाजपेयी सरकार के समय भी 'मूडीज' ने भारत को कबाड़ा अर्थव्यवस्था से क्रमोन्नत कर ऊपर का पायदान दिया था। इसका अर्थ है कि वाजपेयी सरकार को विरासत में कांग्रेस व कांग्रेस के प्रभाव वाले तरह-तरह के गठजोड़ों की सरकारों से कबाड़ अर्थव्यवस्था मिली परंतु उन्होंने परिश्रम व विद्वता से इसमें सुधार किया। इसके विपरीत दूसरी ओर, साल 2004 में बनी मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली सरकार को सुधरती हुई अर्थव्यवस्था विरासत में मिली। अगले दस साल तक केंद्र में कांग्रेस की सरकारें रहीं परंतु अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं ने इस काल में भारत की रेटिंग में कोई सुधार नहीं किया। दावा तो यह किया जा रहा है कि मनमोहन सरकार में सकल घरेलू उत्पादन की दर 7 प्रतिशत से अधिक थी परंतु फिर क्या कारण है कि 'मूडीज' मनमोहन की इस उपलब्धि पर मौन रही। अब केंद्र में राजग की सरकार है तो 'मूडीज' ने नोटबंदी, जीएसटी, मौद्रिक नीति की रूपरेखा, बैंकों की गैर-निष्पादित राशि का निपटान और अर्थव्यवस्था के ज्यादा से ज्यादा क्षेत्रों को औपचारिक तंत्र के दायरे में लाने के प्रयासों जैसे कड़े कदमों व इससे पैदा हुई सामयिक मंदी के बावजूद भारत की रेटिंग में सुधार कर दिया।
स्मरण रहे कि वाजपेयी व मोदी की सरकारों में मनमोहन सिंह, पी. चिदंबरम, प्रणब मुखर्जी जैसे मंझे हुए अर्थशास्त्री भी नहीं रहे। देश की आर्थिक छवि सुधर रही है तो इसका दलगत राजनीति से ऊपर उठ कर स्वागत होना चाहिए न कि इतना अंध विरोध कि अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों को भी 'भक्तों' की श्रेणी में डाल दिया जाए। सभी जानते हैं कि गुजरात चुनाव से पहले आई इस तरह की सकारात्मक रिपोर्टें कांग्रेस का जायका बिगाड़ने वाली हैं परंतु क्या चुनाव जीतना ही किसी राजनीतिक दल का अंतिम उद्देश्य होना चाहिए, इसके बारे में नया सबक सीखने की बारी कांग्रेस की है।
देश की इस उपलब्धि पर मनमोहन सिंह ने कहा है कि इस रेटिंग से यह साबित नहीं होता कि सब कुछ अच्छा हो गया है। ये वो ही मनमोहन हैं जो मौनी बाबा बन कर अपने दस सालों के कार्यकाल के दौरान भ्रष्टाचारियों, दलालों, घोटालेबाजों, कमीशनखोरों का 'मन' मोहते रहे हैं। वैश्विक संस्थाओं द्वारा रेटिंग बढ़ाने से दुनिया में भारत की साख बढ़ी है। इससे निवेशकों का विश्वास बढ़ेगा और भारतीय कंपनियों की देनदारी को लेकर विश्वसनीयता में भी इजाफा होगा। स्वाभाविक है कि बढ़ा निवेश अंतरराष्ट्रीय व्यापार में संतुलन लाएगा, रुपया मजबूत होगा और नए रोजगार के अवसर पैदा होंगे। इन सभी तथ्यों का असर देश के सकल घरेलू उत्पादन पर पड़ेगा जो स्वभाविक रूप से बढ़ेगी। आखिर नई नौकरियों व जीडीपी को लेकर ही तो कांग्रेस की मोदी सरकार के प्रति नाराजगी है और जब उसकी यही परेशानी दूर हो रही है तो इस पर इतना क्रंदन ठीक नहीं। लोकतंत्र में विरोधी दलों का काम सरकार की कमियों को जनता के सामने लाना है परंतु केवल विरोध के लिए विरोध करना और कमियों के नाम पर असत्य बोल कर देश को बहकाना किसी भी तरीके से जनतांत्रिक नहीं कहा जा सकता।
-राकेश सैन
अन्य न्यूज़