साक्षात्कारः केंद्रीय मंत्री नकवी ने कहा- अधिकारों के प्रति मुस्लिम महिलाएं खुलकर बोलने लगी हैं

mukhtar abbas naqvi

तीन तलाक गैरकानूनी प्रथा रही है। इसे अब अपराध की श्रेणी में ला दिया है। कुछ राज्यों से ऐसे मामले सामने आए हैं, उन्हें केंद्र सरकार की तरफ से कार्रवाई करने की खुली छूट दी गई है। इस कृत्य में शामिल किसी को बख्शा नहीं जाएगा। चाहे फिर कोई आम हो या खास।

मुस्लिम महिलाओं के अधिकार के प्रति समाज पहले से सजग हुआ है, ये सजगता तीन तलाक के खत्म होने के बाद आई। तीन तलाक के खिलाफ कानून को बने दो साल पूरे हुए हैं। एक अगस्त को कानून बनाया गया था। हिंदुस्तान के विभिन्न संगठन इस दिन को ‘मुस्लिम महिला अधिकार दिवस’ के रूप में मनाते हैं। रविवार को यानी एक अगस्त को केंद्रीय अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी के घर पर एक बड़ा कार्यक्रम आयोजित हुआ जिसमें तमाम प्रतिष्ठित मुस्लिम महिलाओं ने भाग लिया। ‘मुस्लिम महिला अधिकार दिवस’ के मूल मकसद को जानने के लिए डॉ. रमेश ठाकुर ने केंद्रीय मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी से विस्तृत बातचीत की। पेश हैं बातचीत के मुख्य अंश।

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प्रश्न- ट्रिपल तलाक पर बने कानून के बाद कितना कुछ बदला मुस्लिम महिलाओं का जीवन?

उत्तर- एक रूढ़िवादी परंपरा से मुक्ति मिली है, जिसमें काफी विलंबता हुई। उन्हें ये आजादी कई साल पहले मिल जानी चाहिए थी। देखिए, हिंदुस्तान संविधान और कानून से चलता है जिसमें ऐसी गैरकानूनी हरकतों की कोई जगह नहीं? कायदे से देखें तो हिंदुस्तान में ये कानून अब बना है, इस्लामिक देशों में पहले से है। कानून बनने के बाद मुस्लिम महिलाओं से तीन तलाक से जुड़े मामलों में एकदम गिरावट आई है। अब वक्त बदल गया है। मुंह जुबानी तलाक बोलने से पहले इंसान सौ बार सोचेगा। उसको पता है बोलने से उसे जेल की हवा भी खानी पड़ सकती है।

प्रश्न- नेशनल क्राइम ब्यूरो के मुताबिक छुटपुट तरीके से तलाक के मामले अब भी कई जगहों पर रिपोर्ट हो रहे हैं?

उत्तर- अगर ऐसा है तो पीड़ितों को आगे आना चाहिए, कानून का सहारा लेना चाहिए। तीन तलाक कहकर रिश्ता तोड़ने वालों के खिलाफ कठोरतम कार्रवाई का प्रावधान बना है। बिना हिचक, बिना डरे मुस्लिम महिलाओं को आवाज बुलंद करनी चाहिए। तीन तलाक गैरकानूनी प्रथा रही है। इसे अब अपराध की श्रेणी में ला दिया है। कुछ राज्यों से ऐसे मामले सामने आए हैं, उन्हें केंद्र सरकार की तरफ से कार्रवाई करने की खुली छूट दी गई है। इस कृत्य में शामिल किसी को बख्शा नहीं जाएगा। चाहे फिर कोई आम हो या खास। महिलाओं के अधिकारों से किसी को हम खेलने नहीं देंगे।

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प्रश्न- इसमें केंद्र किस तरह की भूमिका निभा रहा है?

उत्तर- ये पहली मर्तबा हुआ है जब मुस्लिम महिलाओं को उनका मुकम्मल हक दिलाने के लिए कोई सरकार सीना चौड़ा करके खड़ी हुई है। तीन तलाक को खत्म करना मोदी सरकार की प्राथमिकताओं में शामिल था। वरना आज तक महिलाएं अपने अधिकारों के लिए सिर्फ लड़ती थीं। पर, उन्हें न्याय नहीं मिलता था। तलाकशुदा महिलाओं को भी मौजूदा सरकार हर तरह की कानूनी सहायता दे रही है। अल्पसंख्यक आयोग और संबंधित मंत्रालय ऐसी पीड़ितों महिलाओं के साथ कंधे से कंधा मिलाकर आगे बढ़ता है। उन्हें उनका हक दिला रहा है।

प्रश्न- तलाक जैसे कानूनों को ओवैसी जैसे राजनेता अब भी नहीं मानते?

उत्तर- जब किसी कानून को सरकारी मान्यता मिल जाती है, तो उसे सभी को मानना पड़ता है। कानून के ऊपर कोई नहीं, फिर चाहें औवेसी हों या कोई और दूसरा नेता या व्यक्ति? दो वर्ष पूर्व जब तलाक का कानून बन रहा था तब भी इन्हीं लोगों ने विरोध किया था। कुछ कट्टरपंथी लोग तलाक को जायज बता रहे थे उसकी वकालत कर रहे हैं। पर, अब सभी नदारद हैं। तलाक का खेल खेलने वाले अब गायब हैं। उनकी दुकानें बंद हो चुकी हैं।

प्रश्न- लेकिन महिलाओं में डर अभी भी व्याप्त है?

उत्तर- मैं ऐसा नहीं मानता। हमने महिलाओं से कहा है, उन्हें डरने की जरूरत नहीं? तलाक जैसे मुद्दों पर खुलकर आवाज उठानी चाहिए, सरकार का सहयोग लेना चाहिए, हम उन्हें कानूनी सहायता और सुरक्षा दोनों दे रहे हैं। कई राज्यों से महिलाओं ने मदद मांगी भी, उन्हें केंद्र सरकार की तरफ से सुरक्षा भी दी गई और कानूनी सहारा भी। कुछ साल पहले तक मोबाइल से तलाक देने का चलन जारी था, उसे भी ध्वस्त किया गया। मुझे लगता है कानून बनने के बाद खासकर मुस्लिमओं में निडरता आई है। सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ आवाजें उठाने लगी हैं।

प्रश्न- कानून के दो साल की सफलता को आप कैसे देखते हैं?

उत्तर- अच्छा अनुभव रहा है, रिजल्ट बेहतर रहा। तलाक के मामलों में नब्बे फीसदी कमी आई है, अगले एकाध वर्षों में दस फीसदी भी कवर होगा। जिन राज्यों में तलाक के मामले सबसे ज्यादा होते थे, वहां कि लगातार निगरानी की जा रही है। इसके लिए केंद्र की कई टीमों को लगाया हुआ है। हालांकि विरोध की ऐसी कोई घटना सामने नहीं आई है अभी तक।

प्रश्न- आजम खान ने भरी संसद में कानून को मानने से इनकार किया था?

उत्तर- हाँ, पर उनकी बातों पर तवज्जो किसने दिया, कितने लोगों ने अमल किया। शायद किसी ने नहीं? दरअसल ईमानदारी से कहूँ तो ऐसे लोगों के चलते ही ये क्षेत्र फलाफूला। अब स्थिति सामान्य है। ऐसे लोगों को खुदा सद्बुद्धि दे और समाज की भलाई के लिए अच्छा सोचने की ताकत प्रदान करें।

-जैसा डॉ. रमेश ठाकुर से केंद्रीय मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी ने कहा।

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