नहीं हुई कर्जमाफी, मध्य प्रदेश के किसान कांग्रेस सरकार से खुश नहीं

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विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के अध्यक्ष राहुल गांधी के मुताबिक सरकार बनते ही 10 दिनों के भीतर ही किसानों का कर्जा माफ कर दिया जाना था मगर तीन महीने होने को हैं किसानों का कर्जा माफ नहीं किया जा सका है। सिर्फ कागजी कार्यवाही से किसान खुश नहीं हैं।

आम चुनाव के शंखनाद के साथ ही मध्य प्रदेश की कमलनाथ सरकार मध्य प्रदेश में अधिक से अधिक सीटें जीतने की कवायद तो कर रही है, मगर वह अपने ही बुने जाल में बुरी तरह से उलझ गई है। किसानों की कर्जमाफी, युवाओं को बेरोजगारी भत्ता, कर्मचारियों को डीए में 2 प्रतिशत की बढ़ोतरी और अन्य मुद्दों के दम पर चुनाव जीतने वाली कांग्रेस को लोकसभा चुनाव में विरोधी भाजपा ने घेर लिया है। सोशल मीडिया में कांग्रेस को वायदे न निभाने पर जमकर घेरा जा रहा है और उसे इसका जवाब नहीं सूझ रहा है। लोकसभा चुनाव की घोषणा के दो दिन पहले ही कमलनाथ सरकार को पिछड़ों के लिए आरक्षण का दायरा 14 से 27 प्रतिशत बढ़ाने का अध्यादेश लाना पड़ा, ताकि डैमेज कंट्रोल किया जा सके। अपने अनुकूल वातावरण बनाने के लिए कमलनाथ सरकार ने प्रिंट और इलेक्टानिक मीडिया को सिर से पांव तक विज्ञापनों से लाद दिया, बावजूद इसके वह अपने खिलाफ पनपे एंटी इनकंबैंसी फैक्टर को कंट्रोल नहीं कर पा रही है।

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10 दिनों में पूरा करना था वादा

विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के अध्यक्ष राहुल गांधी के मुताबिक सरकार बनते ही 10 दिनों के भीतर ही किसानों का कर्जा माफ कर दिया जाना था मगर तीन महीने होने को हैं किसानों का कर्जा माफ नहीं किया जा सका है। सिर्फ कागजी कार्यवाही से किसान खुश नहीं हैं। बता दें कि किसानों को दो लाख रूपए तक कर्जा माफ किया जाना था। अभी तक सिर्फ बैंकों से डिफाल्टर किसानों की सूची ही जारी की गई है और जो किसान सूचियों में स्थान नहीं पा सके उनसे आवेदन भरवाए गए हैं। कई किसानों को कार्यक्रमों के जरिए कर्जमाफी के प्रमाणपत्र दिए तो गए हैं, मगर वास्तविकता इससे एकदम उलट है, क्योंकि कर्जमाफी की राशि किसानों के केसीसी खातों में स्थानांतरित नहीं की गई है। समय पर कर्जमाफी न होने से किसान खफा हैं। राजनीति विश्लेषक मानते हैं कि ये किसान भाजपा के पाले में जा सकते हैं, जिससे कांग्रेस को अत्यधिक नुकसान हो सकता है। भाजपा ने मध्य प्रदेश में इसे चुनावी मुद्दा बना लिया है और उसने प्रदेश स्तर पर धिक्कार दिवस का आयोजन करके कांग्रेस को घेरने की कोशिश की है। हालांकि कमलनाथ ने किसानों को शांत करने के लिए लोकसभा चुनाव की घोषणा के दिन मोबाइल फोन पर मैसेज करके वादा किया है कि आदर्श आचार संहिता लगने के कारण कर्जमाफी चुनाव के तत्काल बाद की जाएगी, लेकिन कांग्रेस के हाथों से किसानों का बड़ा मुद्दा भाजपा ने एक तरह से लपक ही लिया है।

युवा और कर्मचारी भी रूठे

कमलनाथ और कांग्रेस ने विधानसभा चुनाव के दौरान युवाओं और कर्मचारियों को बेरोजगारी भत्ता और 2 प्रतिशत महंगाई भत्ता देना का वायदा किया था, जिसे अभी तक पूरा नहीं किया गया है। यह मुद्दा भी कमलनाथ सरकार के लिए गले की फांस की तरह बन गया है। अभी तक न तो बेरोजगार युवाओं को 4 हजार रूपए बेराजगारी भत्ता दिया गया है और न ही कर्मचारियों को 2 प्रतिशत डीए।

पिछड़ों को साधने की कोशिश

हालांकि डैमेज कंट्रोल के लिए कांग्रेस की कमलनाथ सरकार ने किसानों की नाराजगी से बचने के लिए पिछड़ों को 27 प्रतिशत आरक्षण की सौगात देकर साधने की कोशिश जरूर की है, लेकिन चुनाव में कांग्रेस को इसका फायदा कम ही मिलने की उम्मीद नजर आ रही है। जिस तरह से किसानों के साथ कमलनाथ सरकार ने वादाखिलाफी की है उसका खामियाजा उसे भुगतने के लिए तैयार रहना ही होगा और इसका सीधा फायदा भाजपा को मिलेगा। मप्र में अभी तक पिछड़ों को 14 प्रतिशत आरक्षण दिया जा रहा है जिसे अब अध्यादेश लाकर 27 प्रतिशत कर दिया गया है। इसके साथ ही मोदी सरकार द्वारा लाए गए गरीब सवर्ण आरक्षण के तहत 10 प्रतिशत आरक्षण को भी मंजूरी दे गई है, इस पर भी कांग्रेस ने मतदाताओं को अपनी ओर आकर्षित करने की कोशिश की है।

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ब्यूरोक्रेसी भी नाराज

अहम् बात यह भी है कि कमलनाथ सरकार ने जिस तरह से पदारूढ़ होते ही ताबड़तोड़ तबादलों की झड़ी लगा दी है, उससे भी ब्यूरोक्रेसी नाराज देखी जा रही है, जिसका नुकसान कांग्रेस को होगा। अफसरशाही इस बात को लेकर नाराज है कि बदले की भावना से तबादले किए जा रहे हैं। कमलनाथ को लगता है कि पूर्ववर्ती शिवराज सरकार ने हर जगह अपने आदमी बैठा रखे थे, जिन्हें चुन-चुनकर स्थानांतरित किया जा रहा है। अफसरों का कहना है कि वे तो सरकार के आदमी हैं, जैसा सरकार चाहेगी वैसा वे काम करेंगे, ऐसे में उनका क्या दोष। नतीजतन, कांग्रेस को तीन महीने के कार्यकाल में ही एंटीइनकंबैंसी का सामना करना पड़ रहा है। ऐन चुनाव के मौके पर और उस पर आदर्श आचार संहिता लग जाने की वजह से वह कोई निर्णय भी नहीं ले पा रही है जिससे वह धर्मसंकट में है कि किसानों व प्रदेश की जनता से किए गए वायदों को किस तरह निभाए।

-राजेन्द्र तिवारी

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