फटा कुर्ता दिखाकर राहुल गांधी ने की बचकाना हरकत

क्या कोई कल्पना कर सकता है कि इन्दिरा गांधी के पौत्र और राजीव-सोनिया गांधी के पुत्र की आज यह हालत हो गई है। वह फटा कुर्ता पहनने को विवश हैं। लेकिन फटे कुर्ते वाले छुटि्टयां मनाने विदेश कैसे चले जाते हैं।

अभिनय जगत में किसी पात्र को जीवंत बनाने के लिए अनेक जतन किये जाते हैं। मांग के अनुरूप व्यवस्था की जाती है। उसी हिसाब से ड्रेस व डॉयलाग की रचना होती है। ड्रेस से ही पता चल जाता है कि पात्र धनी है या निर्धन। धनवान की चमक दमक अलग दिखायी देती है। जबकि निर्धन को फटे वस्त्रों में दिखाया जाता है। नाट्य क्षेत्र में फटी जेब का भी एक संदेश होता है। कहानी के अनुरूप इसको पेश किया जाता है कि व्यक्ति निर्धन है। उसके पास खर्च करने के लिए कुछ भी नहीं बचा है। अथवा वह पात्र फटे कपड़ों की जगह नया वस्त्र नहीं खरीद सकता। कई बार इस फटी जेब से संबंधित पात्र की लापरवाही भी दिखाई जाती है। जेब फटी है तो उसे सिला जा सकता है। इसमें किसी हुनर कि भी जरूरत नहीं होती, लेकिन कहानी के अनुरूप यह दिखाया जाता है कि वह पात्र फटी जेब सिलने की जहमत नहीं उठाना चाहता। वह उसी वेश−भूषा में यहां वहां घूमा करता है।

कई बार रीयल लाइफ में बड़े स्टार को गरीब का रोल दिया जाता है। वह फटे वस्त्र पहनता है। वहीं जूनियर स्टार को सेठ बना कर पेश किया जाता है। यह फर्क रियल व रील लाइफ में दिखाई देता है। कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने उत्तराखंड में अपने फटे हुए कुर्ते का प्रदर्शन किया। उन्होंने कहा कि मुझे देखो, मैं फटा हुआ कुर्ता पहनता हूं। नरेन्द्र मोदी फटे कपड़े वालों कि राजनीति करते हैं। राहुल गांधी उत्तराखंड में कांग्रेस कार्यकर्ताओं के एक प्रदेश स्तरीय सम्मेलन को संबोधित करने गए थे। लेकिन कार्यकार्ताओं को संदेश देने की जगह उन्होंने लगभग पूरे भाषण में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर ही हमला बोला। मीडिया में भी फटे कुर्ते में हाथ डाले हुए उनकी फोटो चर्चित हुई। यह कॉमेडी शो होता तो ऐसा करने वाले को खूब वाहवाही मिलती। तब यह माना जाता कि अभिनय करने वाला वाकई अपनी गरीबी दिखा रहा है।

इसके विपरीत राजनीति के मंच व सार्वजनिक जीवन की मर्यादा अलग होती है। इसमें अभिनय जगत की भांति अमीरी या गरीबी का प्रदर्शन हो जाता, लेकिन सार्वजनिक जीवन में ईमानदारी का अभिनय कोई प्रभाव नहीं छोड़ता। ईमानदारी छवि का निर्माण लगन−साधना से होता है। जांच एजेंसियों की रिपोर्ट पर अविश्वास हो सकता है, लेकिन आमजन की नजरें कभी गलत नहीं होतीं। वह ईमानदार व बेईमान नेताओं को बखूबी पहचानते हैं। इनकी नजरों से सच्चाई नहीं छिपती। ज्यादा समय नहीं हुआ जब कांग्रेस के प्रवक्ता मनीष तिवारी ने समाजसेवी अन्ना हजारे को सिर से पांव तक भ्रष्टाचार में डूबा करार दिया था। इस बयान के बाद क्या हुआ सब जानते हैं। कई दिनों तक मनीष तिवारी और उनकी बात का समर्थन करने वाले कांग्रेसियों को मुंह छिपाकर रहना पड़ा।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से किसी की असहमति हो सकती है। उनका विरोध करने का भी लोगों का अधिकार है, लेकिन उन्होंने अपने आचरण से विशिष्ट ईमानदार छवि बनाई है। उनका परिवार किस आर्थिक स्थिति में है यह सबके सामने है। आमजन का यह विश्वास है कि मोदी को अपने या अपने परिजनों के लिए कुछ नहीं चाहिए। 

पहले मुख्यमंत्री और अब प्रधानमंत्री के रूप में उन्हें वेतन मिलता है। लेकिन मोदी को कभी फटा कुर्ता पहनकर ईमानदारी का प्रदर्शन नहीं करना पड़ा। क्या राहुल गांधी के विषय में भी यह माना जाता है? क्या देश में कोई कल्पना कर सकता है कि इन्दिरा गांधी के पौत्र और राजीव-सोनिया गांधी के पुत्र की आज यह हालत हो गई है। वह फटा कुर्ता पहनने को विवश हैं। जो वकाई गरीब हैं वह अचरज में हैं। सवाल यह है कि फटे कुर्ते वाले छुटि्टयां मनाने विदेश कैसे चले जाते हैं। ऐसा नहीं है कि खादी ग्रामोद्योग के कैलेण्डर में पहली बार महात्मा गांधी की तस्वीर दिखाई नहीं दे रही है। 2005, 2008, 2011 और 2013 में काग्रेस नेतत्व वाली संप्रग सरकार थी। इस दौरान कैलेण्डर में महात्मा गांधी की फोटो नहीं थी। यह वह समय था जब सरकार में राहुल गांधी की बड़ी अहमियत हुआ करती थी। यदि एक बार भी उन्होंने महात्मा गांधी का चित्र ना होने पर आपत्ति दर्ज कराई होती तो सरकार उसमें सुधार करती।

तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह में राहुल की इच्छा को नजर अन्दाज करने का साहस नहीं था। आज गांधी जी की फोटो क्या हटी, राहुल इसे रामलीला तक ले गए। वह कहते हैं कि अगली बार रामलीला में मोदी का मुखौटा लगाया जायेगा। लेकिन उन्हें यह बताना चाहिए कि संप्रग सरकार के समय जब गांधी जी की फोटो हटाई गयी थी तब तब रामलीला में किसके मुखौटे लगाए गए थे। इसके अलावा राहुल को यह भी बताना चाहिए कि कांग्रेस शसन में खादी उद्योग घाटे में क्यों चल रहा था। जबकि नरेन्द्र मोदी के प्रयासों से इसके लाभ में चौंतीस प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई। राहुल गांधी पिछले ढाई वर्षों से नरेन्द्र मोदी के कपड़ों पर तंज कसते आ रहे हैं। मौका कोई भी हो कपड़े संबंधी अपनी घिसी−पिटी टिप्पणी दोहराना नहीं भूलते। क्या राहुल ने एक बार भी यह विचार किया कि मोदी के कपड़ों ने देश में खादी को कितना बढ़ावा दिया है। राहुल गांधी का ऐसा प्रदर्शन और लगातार चल रहे बिल्कुल एक जैसी मोदी विरोधी बयान कांग्रेस के लिए चिन्ता की बात होनी चाहिए।

फटा कुर्ता दिखाने मात्र से किसी कि छवि निखार नहीं आता। इसके विपरीत राहुल ने अपने विरोधियों को ही मौका दिया है। उनके विषय में कई बातें कही गयीं। गरीब व्यक्ति के लिए यह बातें चिढ़ाने वाली हो सकती हैं। शीर्ष नेतृत्व के ऐसे आचरण से किसी पार्टी का ग्राफ नहीं बढ़ता है। इसके विपरीत नेतृत्व की विशसनीयता व गंभीरता कम होती है। यदि राहुल गांधी यह सब किसी की सलाह पर करते हैं तो उन्हें तत्काल बदलाव करना चाहिए। यह सब वह अपनी प्रेरणा से करते हैं तो कांग्रेस के लिए चिन्ता की बात है।

- डॉ. दिलीप अग्निहोत्री

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