उद्योगपतियों की कर्जमाफी पर राहुल गांधी की गलतबयानी
कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी का हर चुनावी सभा में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को बड़े उद्योगपतियों का हिमायती और अपने को गरीबों, किसानों का मसीहा साबित करने पर ही पूरा जोर होता है।
27 साल यूपी बेहाल की खटिया सभा से लेकर गठबंधन तक राहुल गांधी उद्योगपतियों की कर्जमाफी का मुद्दा उठाते रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को बड़े उद्योगपतियों का हिमायती और अपने को गरीबों, किसानों का मसीहा साबित करने पर ही उनका पूरा जोर होता है। प्रत्येक जनसभा में वह नरेन्द्र मोदी पर आरोप लगाते हैं कि उन्होंने चुनिंदा 50 उद्योगपतियों का एक लाख करोड़ से ज्यादा का ऋण माफ कर दिया। इस आरोप के माध्यम से वह नरेन्द्र मोदी की नकारात्मक छवि बनाने का प्रयास करते हैं, वह बताना चाहते हैं कि मोदी को गरीबों व किसानों की चिंता नहीं है वह केवल 50 बड़े उद्योगपतियों की परवाह करते हैं।
इस आरोप के दूसरे पहलू में राहुल अपरोक्ष रूप से आत्म प्रशंसा करते हैं। वह कहते हैं कि मैं किसानों के ऋण माफ करने की बात करता हूँ। राहुल अपने को भी गरीबों की श्रेणी में दिखाना चाहते हैं। इसीलिये उन्होंने अपना फटा कुर्ता दिखाया था। केवल उत्तर प्रदेश ही नहीं अन्य राज्यों में ऐसी कोई जनसभा नहीं हुई, जिसमें राहुल ने मोदी पर कर्जमाफी का आरोप ना लगाया हो। यह मानना होगा कि भाजपा ने राहुल के इस आरोप का जवाब देने में विलम्ब किया। राहुल पिछले कई महीनों से प्रत्येक अवसर पर यह आरोप दोहराते रहे हैं लेकिन भाजपा प्रवक्ताओं ने इसका माकूल जवाब नहीं दिया। इसलिये सैकड़ों बार दोहराने से एक गलत बात भी सच जैसी दिखाई देने लगती है, राहुल के आरोप पर यह कहावत चरितार्थ हो रही थी।
अंततः केन्द्रीय वित्तमंत्री ने कमान संभाली। देर से ही सही राहुल को ऐसा जवाब मिला कि वह खुद कटघरे में आ गये। अरूण जेटली ने दावे के साथ कहा कि 26 मई 2014 अर्थात जिस दिन मोदी सरकार ने शपथ ली थी, तब से लेकर आज तक देश में किसी भी उद्योगपति का एक रूपया कर्ज भी माफ नहीं किया गया। राहुल को या तो जानकारी नहीं है, या सब कुछ जानते हुये भी गलत बयानी कर रहे हैं। जेटली के अनुसार यह मामला बिल्कुल उल्टा है। संप्रग सरकार ने चुनिंदा बड़े उद्योगपतियों पर बेहिसाब मेहरबानियां कीं। उनको बड़े कर्ज दिये गये, कर्ज पर ब्याज बढ़ता जा रहा है, यह कर्ज किसानों की कर्जमाफी से बहुत ज्यादा था। इसका मतलब है कि संप्रग के कारनामों की परेशानी वर्तमान सरकार को उठानी पड़ रही है। अब यह तथ्य भी उजागर हुआ है कि भगोड़े विजय माल्या पर भी संप्रग सरकार बड़ी मेहरबान थी। उसका आर्थिक साम्राज्य उसी दौरान बना था। बताया जाता है कि मेहरबानियों के लिये माल्या ने तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और वित्तमंत्री चिदंबरम को धन्यवाद का पत्र भी लिखा था।
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलश यादव ने आगरा एक्सप्रेस वे पर विश्वास किया है। वह प्रत्येक भाषण में इसका उल्लेख करते हैं। पांच वर्षों की अपनी उपलब्धि गाथा में इसका उल्लेख सबसे ऊपर होता है। अखिलेश का दावा रहता है कि रिकार्ड समय में एक्सप्रेस वे बनवा दिया। यह बात अलग है कि कुछ दिन पहले एक नागरिक ने इसे लेकर न्यायपालिका में याचिका दायर की थी। इसमें कहा गया था कि उस एक्सप्रेस वे का काम बहुत अधूरा है, उसे उपलब्धि के रूप में पेश करना गलत है। न्यायपालिका ने इसे चुनाव आयोग को देने का निर्देश दिया था क्योंकि यह चुनाव से संबंधित मसला था। यदि मान भी लें कि एक्सप्रेस वे अखिलेश सरकार की उपलब्धि है, तो वर्तमान केन्द्र सरकार तो इस मामले में बहुत आगे है। ढाई वर्ष में उसकी दो सौ चालीस एक्सप्रेस वे पूरी होने को हैं। सड़कों का निमार्ण पिछली सरकार के मुकाबले दो−तीन गुना बढ़ गया है।
मुख्यमंत्री अखिलेश यादव केन्द्र सरकार पर पर्याप्त आर्थिक सहायता ना देने का आरोप लगाते रहे हैं लेकिन वित्त मंत्री इस आरोप को सिरे से खारिज करते हैं। अरूण जेटली के जवाब में दम भी नजर आता है। एक तो उनकी सरकार ने केन्द्रीय सहायता में पहली बार राज्यों का हिस्सा बढ़ाया है। अब 42 प्रतिशत पर राज्यों का हक दिया गया है। दूसरी बात यह कि सरकार वित्त आयोग की सिफारिशों के आधार पर राज्यों को हिस्सा देती है। एक रुपया भी नहीं रोका जाता। केन्द्र पर आरोप लगाना गलत है ऐसा आरोप लगाने वाले अपनी विफलता छिपाना चाहते हैं। केन्द्रीय ऊर्जा मंत्री पीयूष गोयल भी कहते हैं कि राज्य सरकार को जितनी सहायता दी गयी वह उसका अधिकांश हिस्सा खर्च ही नहीं कर सकी।वैसे चुनाव में इस प्रकार के मुद्दे अवश्य उठने चाहियें। इससे एक तो विकास को प्राथमिकता मिलेगी दूसरा जाति−मजहब के मुद्दे स्वतः पीछे हो जायेंगे।
डॉ. दिलीप अग्निहोत्री
(लेखक वरिष्ठ स्तंभकार हैं)
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