उत्तर प्रदेश के चुनाव प्रचार में छाया SCAM और जन्मकुंडली

शुरू में लगा था कि अखिलेश यादव ''काम बोलता है'' के नारे पर ही चुनाव लड़ेंगे, लेकिन कांग्रेस से गठबन्धन के बाद स्थिति बदल गयी है। सपा को एहसास हुआ कि उनका अपना नारा जमीनी स्तर पर लोगों को प्रभावित नहीं कर रहा है।

कुछ दिन पहले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने उत्तर प्रदेश में स्कैम का मुद्दा उठाया था। उन्होंने दो रूप में इसकी व्याख्या की थी। बदले में राहुल व अखिलेश ने 'एएम' को हटाने की बात कही। इसके भी अपने ढंग से अर्थ बताये गये। यह प्रकरण चल ही रहा था कि मोदी ने एक अन्य सभा में जन्मकुंडली के रूप में पुनः घोटालों का मुद्दा उठाया। उनका कहना था कि कांग्रेसी दिग्गजों की कुंडली उनके पास है। इसका सीधा तात्पर्य है कि मोदी उत्तर प्रदेश में भ्रष्टाचार को भी चुनावी मुद्दा बनाना चाहते हैं। सपा और कांग्रेस का प्रयास यह रहा है कि उनके ऊपर लगे आरोपों की चर्चा न हो। यही स्थिति बसपा की रही है। ये सभी दल मोदी सरकार पर तो हमला बोलते हैं, उनसे उनसे तीन वर्ष का हिसाब मांगते हैं, लेकिन अपनी सरकार के क्रियाकलापों को मुद्दा नहीं बनाना चाहते।

शुरू में लगा था कि अखिलेश यादव 'काम बोलता है' के नारे पर ही चुनाव लड़ेंगे, लेकिन कांग्रेस से गठबन्धन के बाद स्थिति बदल गयी है। सपा को एहसास हुआ कि उनका अपना नारा जमीनी स्तर पर लोगों को प्रभावित नहीं कर रहा है। मोदी ने बदायूं की सभा में खासतौर पर भ्रष्टाचार का मुद्दा उठाया। उन्होंने कहा कि पांच वर्ष पहले अखिलेश बोलते थे कि मायावती सरकार भ्रष्ट थी और वह भ्रष्ट लोगों को जेल भेजेंगे, लेकिन सरकार बनते ही उन्होंने तमाम भ्रष्ट लोगों को उच्च पदों पर बैठा दिया। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने स्कैम के खिलाफ अपनी लड़ाई का ऐलान किया। इसके दो अर्थ उन्होंने बताये। इसमें सन्देह नहीं कि मोदी सरकार ने इस स्कैम के खिलाफ कारगर कदम उठाये हैं। स्पेक्ट्रम, कोयला आदि के अभूतपूर्व रकम वाले स्कैम इस सरकार ने रोक के दिखाये। हजारों करोड़़ रूपये के अन्य लीकेज पर भी नियंत्रण किया गया।

स्कैम की दूसरी व्याख्या ने सपा, बसपा, कांग्रेस को नाराज कर दिया। वैसे इस व्याख्या में राहुल शामिल नहीं थे लेकिन सपा से उसकी ताजी−ताजी दोस्ती हिलोरें ले रही है। इसलिये मोदी को जवाब देने के लिये राहुल ने अखिलेश यादव के साथ स्वर मिलाया। इसी तरह मायावती भी पीछे नहीं रहीं। मोदी ने स्कैम का दूसरा मतलब बताया था− एस से सपा, सी से कांग्रेस, ए से अखिलेश और एम से मायावती। राहुल, अखिलेश और मायावती इस पर चुप कैसे रहते। राहुल ने कहा कि जो गलत करता है, उसे हर जगह स्कैम नजर आता है। अच्छा हुआ कि यह कहते समय राहुल ने संप्रग सरकार के समय हुये स्कैम को नजरअन्दाज कर दिया। अखिलेश ने एएम से सावधान रहने को कहा, उनका इसारा ए से अमित शाह व एम से मोदी था। अखिलेश ने बात कह तो दी लेकिन यह कहां तक जाएगी इसका अनुमान नहीं लगाया। एम से केवल मोदी ही नहीं होता इससे मुलायम सिंह यादव का नाम भी शुरू होता है कुछ लोगों को इसे सपा को पिछले दिनों चली कलह से जोड़ने का मौका मिला। कहा गया कि इस पार्टी में एम अर्थात मुलायम सिंह को सक्रिय भूमिका से पूरी तरह मुक्त कर दिया गया है। उनका नाम अब मात्र औपचारिकता के निर्वाह तक सीमित है। यदि राहुल व अखिलेश की इस बात को माना जाये कि उन्होंने एम को अलग रूप अर्थात ए व एम कहा था। इसका अर्थ उन्होंने अमित शाह व मोदी बताया, लेकिन मोदी के लिये एम शब्द प्रयुक्त होगा, तो मुलायम को कैसे अलग रखा जायेगा। तब तो मुख्यमंत्री पद की दूसरी दावेदार मायावती को भी अलग ही रखना होगा।

क्या अखिलेश व राहुल की मायावती के प्रति सहानुभूति है, यह कैसे हो सकता है कि वह एम अर्थात मोदी को हटाना चाहते हैं, लेकिन इस एम में मायावती को शामिल नहीं करना चाहते। जाहिर है कि स्कैम का जवाब राहुल व मोदी ने जिस प्रकार दिया, उसमें ये युवा खुद ही उलझ गये हैं जबकि नरेन्द्र मोदी ने स्कैम को जिस रूप में उठाया, उसका घोटालों व उत्तर प्रदेश की राजनीति दोनों से संबंध है। स्कैम अपने वास्तविक अर्थ में प्रभावी लगता है क्योंकि संप्रग सरकार स्कैम के लिये याद की जाती है। सपा और बसपा दोनों एक दूसरे पर स्कैम का आरोप लगाते रहे हैं। दोनों सत्ता में आने पर दूसरे को जेल भेजने का दावा करते रहे हैं, लेकिन पांच−पांच वर्ष शासन करने के बावजूद ऐसा कुछ नहीं किया गया। यह संयोग था कि जिस समय स्कैम व एम की बात चल रही थी, लगभग उसी समय संप्रग के एक बड़े स्कैम की नए सिरे से चर्चा शुरू हुयी।

यह तथ्य उजागर हुआ कि मनमोहन सिंह तक को कोयला स्कैम से बचाने का प्रयास किया गया था। इसके लिये तत्कालीन कोयला राज्यमंत्री संतोष बगरोडि़या को सीबीआई ने क्लीन चिट दी थी। यदि उनके खिलाफ चार्जशीट दायर की जाती तो कोयला मंत्रालय के मुखिया मनमोहन सिंह को भी आरोपी बनाना पड़ता। ये तथ्य पूर्व सीबीआई निदेशक रंजीत सिन्हा ने डायरी प्रकरण की जांच करने वाले एम.एल. शर्मा को बताए। सुप्रीम कोर्ट ने डायरी की जांच सीबीआई के वरिष्ठ अधिकारी एम.एल. शर्मा को सौंपी थी। रंजीत सिन्हा से उनके आवास पर मिलने वाले लोगों की विजिटर डायरी वकील प्रशान्त भूषण ने सुप्रीम कोर्ट को सौंपी थी। उनसे मुलाकात करने वालों में कोयला घोटालों के आरोपी भी शामिल थे। संतोष बागरोडिया ने छियालिस बार रंजीत सिन्हा से मुलाकात की थी।

संप्रग पर लगने वाले आरोप पुराने हैं, लेकिन यह खुलासा सामयिक है। सुप्रीम कोर्ट की निगरानी है अतः इसमें राजनीति की संभावना भी नहीं है। यह मानना चाहिये कि जांच निष्पक्ष व सही दिशा में आगे बढ़ रही है। संप्रग के दस वर्षों में सपा और बसपा उसका समर्थन करती रहीं। कई बार इन्हीं पार्टियों ने संप्रग सरकार को गिरने से बचाया था। वहीं प्रदेश में बसपा व सपा को पूर्ण बहुमत की सरकार चलाने का अवसर मिला, लेकिन इनमें से किसी ने भी भ्रष्टाचार रोकने का प्रयास नहीं किया, वरन् दागी लोगों के बचाव पर सहमति दिखाई दी। ऐसे में मोदी ने जिस प्रकार भ्रष्टाचार का मुद्दा उठाया, उसका चुनाव में असर होगा।

- डॉ. दिलीप अग्निहोत्री

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