अभिभाषण पर चर्चा के दौरान सामने आईं संप्रग की खामियाँ

कुल मिलाकर विपक्ष की दलीलें उसी दिशा में चल रही थीं जिस पर कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी अमल करते रहे हैं। वह यह साबित करना चाहते थे कि संप्रग सरकार गरीबों, किसानों, मजदूरों की भलाई के लिए समर्पित थी।

राष्ट्रपति के अभिभाषण पर संसद में चर्चा का विशेष महत्व होता है। संसद में इस पर व्यापक विचार विमर्श होता है। अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव का पारित होना सत्ता पक्ष के लिए सुखद माना जाता है। क्योंकि इसमें प्रायः सरकार के कार्यों, योजनाओं व उपलब्धियों का उल्लेख होता है। हमेशा की तरह इस बार भी धन्यवाद प्रस्ताव पर पहले विपक्ष मुखर था। सत्ता पक्ष पर बहुत हमले किए गए। उसे विफल, नाकाम बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी गई। राष्ट्रपति ने अभिभाषण में नोटबंदी के अलावा किसानों, गरीबों, वंचितों आदि के लिए सरकार द्वारा किए गए कार्यों का विशेष उल्लेख किया था। विपक्ष ने इन्हीं पर निशाना लगाया था। इसमें वही बातें शामिल थीं जो पहले से कही जा रही थीं। नोटबंदी के समय भी यही बातें कही जा रही थीं। उन्हीं को दोहराया गया। विपक्षी सदस्य बताना चाहते थे कि सरकार ने लोगों को लाईन में लगवा दिया। बिना तैयारी के इसे लागू किया गया। कांग्रेस के एक नेता तो इसकी तुलना विज्ञापन से कर दी। कहा कि मोदी ने कुछ तूफानी हो जाए की तर्ज पर नोटबंदी लागू कर दी थी। इसी के साथ विपक्षी नेता यह साबित करना चाहते थे कि गरीब व किसान के वही हमदर्द हैं। मोदी सरकार ने उनके लिए कुछ नहीं किया।

कुल मिलाकर विपक्ष की दलीलें उसी दिशा में चल रही थीं जिस पर कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी अमल करते रहे हैं। वह यह साबित करना चाहते थे कि संप्रग सरकार गरीबों, किसानों, मजदूरों की भलाई के लिए समर्पित थी। उसने सड़क, रेल सहित तमाम ढांचागत सुविधाओं का विकास किया। अपनी सरकार को ईमानदार बताने में उन्हें संकोच नहीं था। जाहिर है अभिभाषण पर बहस के बड़े हिस्से का विपक्ष ने जमकर उपयोग किया। उसने खूब भड़ास निकाली। यह समय विपक्ष का था, लेकिन जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने बहस का जवाब देना शुरू किया तो विपक्ष के कुछ पल पहले तक मुखर नेताओं की दशा देखने लायक थी। प्रधानमंत्री ने आंकड़ों के आधार पर पूरी स्थिति साफ कर दी। यह अच्छा संयोग था कि विपक्ष की ओर से जिन नेताओं ने सरकार पर हमला बोला था, उनमें से अधिकांश संप्रग सरकार में मंत्री थे।

प्रधानमंत्री ज्यों−ज्यों संप्रग से अपनी सरकार की तुलना रहे थे, पूर्व मंत्रियों की शर्मिंदगी बढ़ती जा रही थी। मोदी के जवाब के एक वाक्य में ही सभी बातें समाहित होती चली गयीं। इनसे साबित हुआ कि यदि संप्रग सरकार ने अपनी जिम्मेदारियों का उचित निर्वाह किया होता तो आज मोदी को इतना परेशान ना होना पड़ता। पहला तो यही कि संप्रग सरकार ने स्पेक्ट्रम या कोयला आवंटन पारदर्शी तरीके व ईमानदारी से किया होता तो देश को लाखों करोड़ रूपए का लाभ होता। यही आवंटन मोदी ने ईमानदारी व पारदर्शी तरीके से किये। सरकारी खजाने में लाखों करोड़ रुपए जमा हो गए।

दूसरा संप्रग सरकार के समय अनेक योजनाओं में हजारों करोड़ रूपए का लीकेज होता था। यह नहीं माना जा सकता कि शासन−प्रशासन को इसकी जानकारी नहीं थी। फिर भी भ्रष्टाचार को रोकने का प्रयास जानबूझ कर नहीं किया गया। इससे संप्रग की नीयत का अनुमान लगाया जा सकता है। यदि संप्रग सरकार ने यह लीकेज रोकने का प्रयास किया होता, तो यह काम मोदी को नहीं करना पड़ता। ना मोदी को इसका श्रेय मिलता। गरीबों की योजनाओं में भी घोटाले, लीकेज होते थे उन्हें रोकने का कोई प्रयास नहीं हुआ। मोदी सरकार ने करोड़ों फर्जी कार्ड निरस्त कराए। गैस सब्सिडी के लीकेज से हजारों करोड़ रूपए की बचत हुई। यह पैसा सरकार गरीबों के हित में लगा रही है।

तीसरा अर्थशास्त्री समय−समय पर नोटबंदी की पैरवी करते रहे हैं। डॉ. अंबेडकर ने तो प्रत्येक दस साल में नोटबंदी का सुझाव दिया था। वह बड़े अर्थशास्त्री थे। बहुत विचार−विमर्श के बाद उन्होंने यह सुझाव दिया था। यदि पहले की सरकारों ने सही रूप में नोटबंदी की होती, तो मोदी को आज यह करने की आवश्यकता नहीं थी। नोटबंदी तभी कारगर होती है, जब उसमें अधिकतम गोपनीयता हो। मोदी सरकार इस मामले में सफल रही। राष्ट्रपति ने भी कहा था कि नोटबंदी से कुछ दिन परेशानी रहेगी। बाद में इससे अर्थव्यवस्था को गति मिलेगी।

चौथा, अर्थव्यवस्था को डिजिटल बनाने की पहल मोदी को करनी पड़ी। इससे अर्थव्यवस्था के साथ−साथ छोटे व्यापारियों को भी लाभ होगा। कालाधन रोकने में सफलता मिलेगी। डिजिटल की शुरूआत भले ही राजीव गांधी ने की हो, लेकिन इसको इतनी व्यापकता मोदी के समय मिली। पांचवां जनधन खाता खोलने की योजना भी पहले की है, लेकिन संप्रग व मोदी सरकार की तुलना इस मामले में भी हो सकती है। मोदी सरकार ने एक डेढ़ साल में जितने जनधन खाते खुलवा दिए उसकी कल्पना संप्रग के लोग नहीं कर सकते। दोनों सरकारों की कार्य संस्कृति को देखने का यह अद्भुत आधार है।

संप्रग नेता अपने को किसानों का रहनुमा बता रहे थे। लेकिन उस समय यूरिया के लिए लाईन लगती थी, लाठीचार्ज होता था। नोटबंदी की लाइन के लिए परेशान नेताओं को यूरिया की लाइन से कभी बैचेन नहीं देखा गया। मोदी ने कहा कि संप्रग सरकार ने केवल 20 प्रतिशत नीम कोटेड कराके कालाबाजारी व घोटाले का रास्ता छोड़ दिया। मोदी सरकार ने आते ही शत प्रतिशत नीम कोटेड करा दिया। इसमे उत्पादन भी बढ़ा। किसानों को राहत मिली।

बिजली के उत्पादन व बचत में भी कार्य संस्कृति का असर दिखायी देता है। मोदी सरकार इसमें बहुत आगे है। इसका लाभ आम उपभोक्ताओं को मिला। सड़क, रेल क्षेत्र आदि में भी दोनों सरकारों की कार्य संस्कृति में बड़ा अंतर रहा है। यह जमीन पर दिखायी दे रहा है। पहले के मुकाबले दुगनी−तिगनी सड़कों का निर्माण हुआ। राजीव गांधी के समय में संसद बेनामी संपत्ति कानून पास कर चुका था। इसके बावजूद इसे 26 सालों तक लागू नहीं किया गया। मोदी सरकार ने इसे और कड़ा बनाते हुए लागू कर दिया है और किसी को भी बख्शा नहीं जाएगा।

कांग्रेस के समय बनाई गई नीतियों और योजनाओं को आगे बढ़ाने के आरोपों पर सरकार ने कहा कि अंतर नीति में नहीं, नीयत में है। नेशनल ऑप्टीकल फाइबर, मोबाइल फोन के इस्तेमाल, नीम कोटिंग यूरिया, मनरेगा, एलईडी बल्ब, बिजली पहुंचाने, डीबीटी जैसी योजनाओं का उल्लेख करते हुए सरकार ने कहा कि यूपीए सरकार के दौरान इन्हें आधा−अधूरा लागू किया गया। लेकिन, एनडीए सरकार ने इसे लागू करने में पूरी ताकत झोंक दी और इसका नतीजा दिखने लगा है। नोटबंदी के दौरान एक ओर तो देश को लूटने वाले थे, दूसरी ओर ईमानदारी की राह पर चलने वाले। यही वजह है कि सरकार ने नियमों में बार−बार बदलाव किया। मनरेगा जैसी योजना में भी 1035 बार नियम बदले गए, जबकि यह योजना शांति से चल रही थी। कार्य संस्कृति में परिवर्तन ने ढाई वर्षों में ही रिकार्ड कायम किया। इसमें गरीब किसान को ही सर्वाधिक लाभ हुआ। इस तुलना ने विपक्ष को शर्मिन्दा किया है।

- डॉ. दिलीप अग्निहोत्री

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